Rajasthan

राहुल गांधी ने टीकाराम जूली प्रकरण पर भाजपा को घेरा, दलित अपमान का मुद्दा उठाया

Last Updated:April 10, 2025, 14:27 IST

Rajasthan LoP Tikaram Jully Mandir Row: राहुल गांधी ने अहमदाबाद में टीकाराम जूली का जिक्र कर भाजपा को घेरा. दलित नेता टीकाराम के मंदिर जाने पर उसे गंगाजल से शुद्ध किया गया. इस घटना के बहाने आज दलितों के साथ हुए…और पढ़ेंटीकाराम जूली, मंदिर और गंगाजल... इस कहानी में छिपा है इतिहास का जख्म

राहुल गांधी ने दलित नेता टीकाराम जूली का जिक्र कर भाजपा पर हमला बोला

हाइलाइट्स

राहुल गांधी ने टीकाराम जूली का जिक्र कर भाजपा पर हमला बोला.टीकाराम जूली के मंदिर जाने पर उसे गंगाजल से शुद्ध किया गया.संविधान ने छुआछूत को गैरकानूनी घोषित किया है.

नई दिल्ली: गुजरात के अहमदाबाद में कांग्रेस का अधिवेशन हुआ. राहुल गांधी ने बुधवार को अपने संबोधन में एक नाम पुकारा. वह नाम था टीकाराम जूली का. राहुल गांधी ने टीकाराम जूली का जिक्र कर भाजपा को घेरा. कारण कि वह एक दलित नेता हैं. रामनवमी वाले दिन वह एक मंदिर गए थे. मंदिर से वापस जाने के बाद उसे गंगाजल से शुद्ध किया गया. बात राजस्थान से उठी पर केंद्र की सियासत तक पहुंच गई. टीकाराम जूली के बहाने राहुल गांधी ने दलितों के साथ अपमान का मुद्दा उठाया. लगे हाथ उन्होंने कह दिया कि यह हमारा धर्म नहीं है, क्योंकि हमारा धर्म किसी के साथ भेदभाव करना नहीं सिखाता है.

टीकाराम जूली प्रकरण अब चर्चा में है. भाजपा ने ज्ञानदेव आहूजा को कारण बताओ नोटिस जारी किया. इस बीच सबसे बड़ा सवाल है कि क्या दलित के साथ यह पहली घटना है? आखिर कब तक दलितों के मंदिर जाने पर उसे गंगाजल से धोया जाएगा, क्या भगवान ने दलितों को मंदिरों में प्रवेश पर बैन लगाया है, क्या दलित होना गुनाह है? इस विवाद के बहाने अगर इतिहास में झाकेंगे तो आपको दलितों का दर्द पता चलेगा. देश में ऐसे कई मंदिर रहे हैं, जहां सालों तक दलितों के लिए दरवाजे बंद थे. राजस्थान ही नहीं, देश के अलग-अलग कोनों में दलितों के साथ ऐसी घटनाएं आम हैं. टीकाराम जूली नेता हैं तो मामला मीडिया में आ गया. मगर आज भी दलितों को बहुत से मंदिरों में जाने की मनानी है.

इतिहास का जख्मअब इसके पीछे की कहानी को जानते हैं. भारत में मंदिरों में दलितों की एंट्री पर बैन का इतिहास भयावह रहा है. इसका इतिहास वर्ण व्यवस्था और सामाजिक भेदभाव की जड़ों से जुड़ा रहा है. सामाजिक वर्ण व्यवस्था में चार जातियां थीं- ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र. इस व्यवस्था में शूद्र यानी दलितों को सबसे नीचे रखा गया और उन्हें अछूत कहा गया. वर्ण व्यवस्था ने धार्मिक शुद्धता का हवाला देकर दलितों को मंदिरों और धार्मिक स्थलों से दूर रखा. यह सब ब्राह्मणवाद का नतीजा था. समाज में शुरू से ही ऐसा ताना-बाना बूना गया कि दलितों को मंदिरों और धार्मिक स्थानों से दूर रखा गया. मंदिर तो छोड़ दीजिए आलम तो यह था कि समाज में दलित किसी बड़ी जाति के कुएं के पानी भी नहीं पी सकते थे. दशकों से छुआछूत ने दलितों को बहुत दर्द दिया.

संविधान से बदली तस्वीरहमारे संविधान निर्माताओं ने दलितों के साथ हो रहे इस अत्याचार की पीड़ा समझी. संविधान में छुआछूत को खत्म करने के लिए मजबूत कदम उठाए गए. संविधान के अनुच्छेद 17 ने छुआछूत को गैरकानूनी घोषित किया. इसे दंडनीय अपराध बनाया. यह जातिगत भेदभाव और दलितों के सामाजिक बहिष्कार को समाप्त करने की दिशा में ऐतिहासिक कदम था. अनुच्छेद 25(2)(b) ने सभी हिंदुओं को मंदिरों में प्रवेश का अधिकार दिया. इसमें बीआर अंबेडकर की बड़ी भूमिका रही. हालांकि, कानून बनने के बाद भी दलितों के साथ अत्याचार कम नहीं हुए. आज भी कई जगहों पर मंदिरों में दलितों को नहीं जाने दिया जाता. घोड़ी पर चढ़ने का विवाद तो आज भी आम है.

कहने को हिंदू मगर नहीं जाने देते मंदिरदलित कहने को तो हिंदू हैं, मगर उन्हें सामाजिक तौर पर मंदिरों में जाने की मनाही है. अव्वल तो उन्हें समाज में अलग रखा जाता रहा है. जब सियासत की बात हो तो सभी दलित हिंदू हैं, मगर सामाजिक रहन-सहन में ये हिंदू नहीं रहते. वो दलित ही रहते हैं. वह दलित, जिन्हें बड़ी जातियों के साथ उठने-बैठने, खाने-पीने की इजाजत नहीं है. एजुकेशन और संविधान की बदौलत अब तस्वीर बदलने लगी है. अब दलितों के साथ अन्याय कम हुआ है. दलितों के साथ अन्याय की बात अब खबरों की हेडलाइन बनने लगी हैं.

अब भी जारी है अत्याचारहालांकि, हकीकत आज भी कमोबेश वैसी ही है. आज जब राजस्थान के नेता प्रतिपक्ष के जाने के बाद मंदिर को धोया गया तो समझिए आम दलित के साथ क्या ही होता होगा. देश में ऐसे कई मंदिर हैं, जहां कभी दलितों की एंट्री बैन थी. केरल के वैकम स्थित महादेव मंदिर, नासिक के कालाराम मंदिर, मदुरै के मीनाक्षी मंदिर, पुरी के जगन्नाथ मंदिर और सबरीमाला जैसे कुछ मंदिरों में एक सयम तक दलितों का प्रवेश बैन था. हालांकि, वक्त के साथ हालात बदले और धीरे-धीरे दलितों के प्रवेश होने लगे. हालांकि, इसके लिए समाज में खूब पापड़ बेलने पड़े. हालांकि, आज भी दलितों के साथ होने वाले इस भेदभाव से बरबस वो जख्म याद आ ही जाते हैं.

Location :

Delhi Cantonment,New Delhi,Delhi

First Published :

April 10, 2025, 14:27 IST

homeknowledge

टीकाराम जूली, मंदिर और गंगाजल… इस कहानी में छिपा है इतिहास का जख्म

Source link

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button

Uh oh. Looks like you're using an ad blocker.

We charge advertisers instead of our audience. Please whitelist our site to show your support for Nirala Samaj