जो खेल बना था द्रोपदी के चीर हरण का कारण, राजस्थान के इस गांव में आज भी उसके खिलाड़ी

नरेश पारीक/चूरू. कहते हैं बच्चों और बुजुर्गों के ख्यालात एक जैसे होते हैं. कुछ ऐसा ही देखने को मिल रहा है मरुधरा के गांवों में. जहां आज भी गांव की ग्वाड़ में एक जाजम पर महाभारत काल से खेला जा रहा चौपड़ खेला जा रहा है. ग्रामीण बताते है कि महाभारत काल में कौरवों और पांडवों के बीच अक्सर चौपड़ की बाजी लगती थी और आज ये बाजी गांव के बुजुर्गों के बीच लग रही है. इसी खे
दिलचस्प बात ये है कि इस खेल को खेलने वाले ये सभी खिलाड़ी 50 साल से 80 साल की उम्र के है और ठहाके लगाते हुए गांव के ग्वाड़ में बिछाई जाजम पर चौसर की चाल चलते हैं. चूरू का गांव म्हरावन्सर जहां आज भी आपको महाभारत काल का ये खेल खेलते गांव के बुजुर्ग मिल जाएंगे. कौड़िया फेंककर अपनी चाल चलते इन खिलाड़ियों का उत्साह देखते ही बनता है जो जीवन की भाग दौड़ और तनाव से परे अपनी,अपनी चाल चलते हैं.
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महाभारत काल में खेला जाता था चौपड़
गांव के किशनलाल बताते है किआजकल की तरह, चौपड़ उस दौर में भी अलग-अलग रंग की 16 गोटों से खेला जाता था. एक रंग की चार गोटें होती थी. आमतौर पर चार खिलाड़ी दो-दो की जोड़ी बनाकर खेलते हैं. हर खिलाड़ी चार गोटों से खेलता है. जिन्हें वह पासा फेंकने के बाद चौपड़ के नक्शे पर चलता है. किशनलाल बताते है कि आजकल कौड़ियां फेंकी जाती हैं.
गोटियां काली, पीली, हरी और लाल रंग की होती थी. काली-पीली और हरी-लाल का जोड़ा होता था, यानी दो साथी काली-पीली गोटें रखते थे और दूसरे दो हरी-लाल चार अलग-अलग आदमी भी चौपड़ खेल सकते थे. इस खेल में जोड़ो के आधार पर खिलाड़ियों की संख्या निर्धारित होती है. जिसमे 4,8 या फिर 16 खिलाड़ी एक साथ ये खेल, खेल सकते हैं.
एक जाजम पर बैठते हैं ग्रामीण
म्हरावन्सर निवासी किशनलाल बताते हैं कि वह पिछले 30 सालों से ग्रामीणों के साथ चौपड़ खेल रहे है. एक जाजम पर एक साथ बैठने से न सिर्फ प्यार बढ़ता है बल्कि मनोरंजन भी खूब होता है और वह सारी चिंता और तनाव भूल जाते है. किशनलाल बताते हैं कि वर्षों पुराना ये हिंदुस्तानी खेल वह अब गांव की युवा पीढ़ी को भी सीखा रहे हैं.
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FIRST PUBLISHED : August 23, 2023, 15:23 IST