Rajasthan Politics: धोरों की तरह बदलती है मारवाड़ की राजनीति, आसान नहीं है इसका मिजाज भांपना

हाइलाइट्स
राजस्थान विधानसभा चुनाव
कांग्रेस बीजेपी दोनों को आता है यहां खासा जोर
सूबे के सीएम अशोक गहलोत भी मारवाड़ के रहने वाले हैं
जयपुर/ जोधपुर. मारवाड़ के मकराना के सफेद पत्थरों का इस्तेमाल किया गया तो दुनिया को ताजमहल के तौर पर एक अजूबा मिल गया. ये मकराना राजस्थान के मारवाड़ इलाके में पड़ने वाले नागौर जिले में स्थित है. यही नागौर जिला है, जहां जन्मी मीरा ने कृष्ण के प्रेम में डूबकर ऐसी रचनाएं की जो साहित्य की थाती और भक्तों के लिए भगवान को पाने का माना जरिया बन गया. इसी मारवाड़ क्षेत्र का हिस्सा जोधपुर है जिसे घूमने और निहारने के लिए दुनिया भर से सैलानी आते है. यहां के भित्तिचित्र और दूसरी कलाकृतियां भारत की शानदार रचनात्मकता की प्रतीक मानी जाती है. इस मारवाड़ की राजनीतिक लड़ाई भी अपने इन्ही पहचानों की तरह बहुत गूढ़ और जटिल है.
राज्य के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत इसी इलाके से चुनाव लड़ते हैं. ये अलग बात है कि उनके बेटे को इसी क्षेत्र में बीते लोकसभा चुनावों में हार का मुंह देखना पड़ गया था. बीजेपी को भी यहां की सीटें जीतने के लिए थोड़ी अधिक ताकत लगानी पड़ती है. ये राजस्थान का वो हिस्सा है जहां बीजेपी और कांग्रेस के अलावा एक तीसरा दल भी कुछ विधानसभा सीटों पर वोटों में अपनी हिस्सेदारी दिखाता रहा है.

सीटों के हिसाब से नागौर जिला है ताकतवर
सीटों की बात की जाए तो ये इलाका राज्य को कुल 43 विधायक देता है. इसमें जोधपुर जैसलमेर, बाड़मेर, पाली, जालोर, सिरोही और नागौर जिले आते हैं. सीटों की संख्या के हिसाब से नागौर जिला सबसे ज्यादा ताकतवर है. यहां विधानसभा की 10 सीटें हैं. आजादी के कुछ ही समय बाद से यहां राजपूत और जाट समुदाय के बीच राजनीतिक वर्चस्व की लड़ाई शुरू हो गई. यही इस पूरे इलाके में राजनीति का सबसे अहम और निर्णायक मुद्दा भी बन गया.
मिर्धा परिवार का वर्चस्व रहा है यहां की राजनीति में
नागौर इलाके का जिक्र मिर्धा परिवार की चर्चा के बगैर पूरा नहीं हो सकता. इस परिवार के बलदेवराम मिर्धा जोधपुर के तत्कालीन घराने के बड़े ओहदेदार थे. बाद में वे राजनीति में आए और कांग्रेस से जुड़ने के बाद उन्होंने अपने छोटे भाई नाथूराम मिर्धा को पार्टी का टिकट दिलाया. इसी नाथूराम मिर्धा ने राज्य का पहला बजट भी पेश किया था. बाद में उनके भतीजे रामनिवास मिर्धा कांग्रेस से उनके विरोध में लड़े और उन्हें लोकसभा के चुनाव में हरा दिया. अब इसी परिवार की ज्योति मिर्धा मैदान में हैं लेकिन कांग्रेस की जगह बीजेपी से. बहरहाल, इस परिवार की नागौर की राजनीति में अच्छी भली पकड़ मानी जाती है. ज्योति मिर्धा की रिश्तेदारी हरियाणा के हुडा परिवार से भी है.
मदरेणा परिवार की भी तूती बोलती रही है यहां
अगर इस इलाके के दूसरे महत्वपूर्ण और प्रभावशाली परिवार का जिक्र करना हो तो वो परसराम मदेरणा का परिवार है. मदेरणा परिवार के कई सदस्य चुनाव लड़ चुके हैं. इस चुनाव में उनकी पोती दिव्या मदेरणा कांग्रेस से मैदान में हैं. दिव्या की मां लीला मदेरणा जिला प्रमुख हैं. कांग्रेस के ही हरीश चौधरी का भी इस इलाके में और जाटों पर तगड़ा असर है. हरीश गहलोत सरकार में मंत्री भी रहे हैं और वे राहुल गांधी के नजदीकी माने जाते हैं. राहुल गांधी ने उन्हें पंजाब में चुनावों के देखरेख का जिम्मा भी सौंपा था. पंजाब प्रभारी बनने के बाद हरीश ने मंत्री पद छोड़ दिया. कहा जाता है कि संगठन के कामकाज में लगने के साथ उन्होंने गहलोत का सिरदर्द बढ़ाने वाले कई काम भी किए. कई मसलों पर वे सरकार को घेर चुके हैं.
बेनीवाल भी बना चुके हैं यहां अपना मुकाम
नगौर से राज्य की राजनीति का फिलहाल एक कोना हनुमान बेनीवाल बने हुए हैं. राजस्थान विश्वविद्याल की राजनीति से निकलकर राज्य की राजनीति में उतरने वाले बेनीवाल ने युवा शक्ति को जोड़ कर अलग पार्टी राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी का गठन कर लिया. उनकी आरएलपी ने वर्ष 2018 में विधानसभा की चार सीटें भी जीत लीं. उनकी इस जीत के बाद बीजेपी ने बेनीवाल की पार्टी को एनडीए में शामिल कर लिया. लोकसभा चुनाव में भी ये गठजोड़ कायम रहा.
आरएलपी ने बनाया है नया गठबंधन
वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में राजस्थान की कुल 25 सीटों में से 24 बीजेपी और नागौर सीट आरएलपी के खाते में आ गई. उस पर हनुमान बेनीवाल जीत गए. लेकिन दिल्ली में किसान आंदोलन के दौरान बेनीवाल ने एनडीए से नाता तोड़ लिया. बेनीवाल की पार्टी इस बार का चुनाव यूपी के दलित नेता चंद्रशेखर की पार्टी के साथ मिलकर लड़ने की घोषणा कर चुकी है. फिलहाल दोनों ने प्रत्याशियों की सूची जल्द ही जारी करने की बात कही है.
इलाके की प्रमुख सीटें और उनके प्रत्याशी
जोधपुर शहर राजस्थान के राजपूताना के दूसरे शहरों की ही तरह दिखता है. इसका मिजाज भी कम सामंती नहीं रहा है. लेकिन यहां की राजनीति में मुख्यमंत्री गहलोत ने अपनी एंट्री के साथ ही ऐसा जादू किया कि यहां की सियासत भी उलट गई. इसी तरह से पाकिस्तान की सीमा से लगती हुई जैसलमेर-बाड़मेर सीट से जसवंत सिंह सांसद हुआ करते थे. वहां बीजेपी नेता वसुंधराराजे ने दखल दिया और बीजेपी के कद्दावर नेता एवं पूर्व केन्द्रीय मंत्री जसवंत सिंह को बेदखल कर 2008 में कर्नल सोनाराम को पार्टी टिकट दिला दिया. उस दौर में जसंवत सिंह को निर्दलीय मैदान में उतरना पड़ा था लेकिन वे जीत नहीं पाए.
पीएम मोदी के नजदीकी हैं शेखावत
इसके साथ ही वसुंधरा राजे के मुख्यमंत्री काल में कुख्यात गैंगस्टर आनंदपाल का एनकाउंटर किया गया. आनंद भी रावणा राजपूत थे. इन सब घटनाओं को लेकर वसुंधरा का राजपूताना में विराध भी हुआ. लेकिन इसका नतीजा ये निकला कि इलाके में जाट राजनीति ताकतवर होती गई. यहां बीजेपी के ताकतवर और संगठन में पकड़ वाले नेताओं की बात की जाए तो गजेंद्र सिंह का नाम प्रमुखता से आता है. केंद्रीय जलशक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह भी छात्र राजनीति की उपज हैं और उन्होंने अपनी राजनीति की शुरुआत एबीवीपी से की. इस लिहाज से उन्हें संघ का भरपूर समर्थन हासिल है. साथ ही पीएम मोदी के भी वे नजदीकी है.
पोकरण में दिलचस्प हो सकता है मुकाबला
जालोर जिले के टूटकर नए जिले बने सांचौर में इस बार भी कांग्रेस की ओर से बिश्नोई समुदाय के सुखराम विश्नोई मैदान में हैं. उनके सामने बीजेपी ने अपने सांसद देवजी पटेल को उतारा है. बहरहाल, राजस्थान में बिश्नोई और जाट समुदाय को एक तरह से देखा जाता है. पोकरण से बीजेपी ने महंत प्रतापपुरी को टिकट दिया है. माना जा रहा है कि कांग्रेस उनके सामने जसवंत सिंह के बेटे मानवेंद्र सिंह को टिकट दे सकती है. मानवेंद्र 2018 में वसुंधरा राजे के खिलाफ चुनाव लड़ चुके हैं और वे वर्तमान सैनिक कल्याण बोर्ड के अध्यक्ष भी हैं. लिहाजा माना जा रहा है कि इस पर सीट पर वे पुरी को टक्कर दे पाएंगे.
हेमाराम पायलट के समर्थक और गहलोत के विरोधी माने जाते हैं
वहीं मारवाड़ के दिग्गज कांग्रेसी नेता बाड़मेर जिले के गुढ़ामालानी से सात बार विधायक रह चुके हैं. लेकिन अब हेमाराम चौधरी ने बढ़ती उम्र के कारण खुद ही चुनाव लड़ने से मना कर दिया है. उन्होंने पार्टी अध्यक्ष को इस बारे में पत्र भी लिखा है और खास बात है कि उन्होंने अपने किसी परिजन के लिए टिकट भी नहीं मांगा है. वे पायलट के कट्टर समर्थक और गहलोत के विरोधी माने जाते हैं.
ये हैं मारवाड़ के मुद्दे
देश के दूसरे हिस्सों की तरह ही यहां भी बीजेपी का मकसद मोदी की सफलता को भुनाने की है. बार बार पार्टी नेता मोदी सरकार की सफलताओं का हवाला देते हैं. हालांकि ये भी हकीकत है कि इस इलाके में जाट बनाम राजपूत का पत्ता अभी भी चलने की उम्मीद जताई जा रही है. इलाके में बांसवाड़ा रिफाइनरी ने बहुत सारा रोजगार सृजन किया है. इसका क्रेडिट लेने में दोनो पार्टियां जुटी हुई हैं लेकिन राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी यानि आरएलपी गठबंधन की चुनौती से भी दोनों पार्टियों को निपटना है.
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FIRST PUBLISHED : October 28, 2023, 14:19 IST