Right to health | एक अप्रेल से पहले धरातल पर नाकाफी रहे इंतजाम, पूरे महीने अस्पतालों के भरोसे छोड़ा कैशलेश इलाज
दो महीने तक अस्पतालों में फौरी तैयारियां
जयपुर
Published: April 25, 2022 04:44:19 pm
विकास जैन जयपुर. प्रदेश के सरकारी अस्पतालों में संपूर्ण कैशलेश इलाज की घोषणा को एक अप्रेल से लागू करने से पहले चिकित्सा विभाग ने पुख्ता तैयारियां ही नहीं की। फरवरी माह में मुख्यमंत्री ने यह बड़ी घोषणा राज्य के बजट में की। इसके बाद दो महीने तक अस्पतालों में फौरी तैयारियां ही चलती रही।
योजना शुरू करने से एक दिन पहले विभाग ने 31 मार्च को आदेश निकाला, जिसमें सभी अस्पतालों को अपने स्तर पर इसके पुख्ता इंतजाम करने के लिए कहा गया।

विभाग ने इसे एक महीने ड्राय रन नाम दिया गया, लेकिन मरीजों के लिए यह योजना पूरी तरह एक अप्रेल से ही जारी कर दी गई। योजना शुरू होने के कुछ दिन बाद ही मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ट्रोमा सेंटर पहुंचे और यहां शिकायतें सामने आने पर चिकित्सा मंत्री और आला अधिकारी सक्रिय हुए। चिकित्सा मंत्री ने कई बैठकें की। जिसमें दोष अस्पतालों के इंतजामों पर थोपने की कोशिश शुरू हो गई।
डीडीसी पर दवा नहीं मिली तो ढूंढते रहो नोडल अधिकारी एसएमएस अस्पताल के ओपीडी में रोजाना करीब 8 हजार मरीज आते हैं। यहां डॉक्टर ने नि:शुल्क दवा की सूची में शामिल दवा लिखी और वह काउंटर पर नहीं मिली तो उसे लोकल परचेज से हासिल करना मरीज के लिए बेहद चुनौती भरा है। इसके लिए पहले उसे नोडल अधिकारी को ढूंढना होगा, जो कि हर मरीज के लिए संभव ही नहीं है।
इस एक फरमान से एक महीने सब कुछ छोड़ा अस्पतालों के भरोसे आदेश का बिंदू संख्या 4 : राजकीय अस्पतालों में कार्यरत चिकित्सक यह सुनिश्चित करेंगे कि अस्पताल में उपलब्ध दवाइयां ही लिखें, विशेष परिस्थिति में खरीदकर उपलब्ध कराई जाए।
किरकिरी हुई तो संभालना हुआ मुश्किल, फिर दोष अस्पतालों पर — चिकित्सा मंत्री : परिजनों के पास बाहर की दवा पर्ची मिली और बाहर जाते हुए मिले तो संबंधित यूनिट हैड पर कार्यवाही होगी, सभी दवाओं की व्यवस्था करना अस्पताल प्रशासन की ही जिम्मेदारी
वास्तविकता : काउंटर पर कई दवाएं उपलब्ध ही नहीं, तत्काल हर मरीज को किस तरह खरीदकर उपलब्ध कराई जाए, इसका कोई सिस्टम नहीं बताया, जबकि रोजाना अकेले एसएमएस का ओपीडी करीब 8 हजार मरीजों का है
— चिकित्सा मंत्री : निकम्मे कार्मिकों को हटाया जाएगा
वास्तविकता : दवा अनुपलब्धता के दोषियों पर कार्यवाही के लिए कुछ नहीं कहा
— चिकित्सा मंत्री : मुख्यमंत्री के सामने किरकिरी होने के बाद चिकित्सा मंत्री अस्पताल पहुंचे और कहा कि अस्पतालों में ईडीएल दवाओं की सूची बढ़ाई जाएगी। अभी तक इसमें करीब 950 दवाइयां ही शामिल थीं।
वास्तविकता : यह काम योजना शुरू करने से एक महीने पहले ही पूरा हो जाना चाहिए था। दवा काउंटरों की संख्या भी नहीं बढ़ाई गई। योजना शुरू होने पर खामियां सामने आई तो मंत्री ने कहा..20 काउंटर एसएमएस में बढ़ाए जाएंगे।
मंत्री ने पिछले दिनों बैठकों व निरीक्षण के बाद यह सब कुछ कहा..
लोकल परचेज : अस्थायी व्यवस्था को ही बना लिया आधार दरअसल, राज्य में नि:शुल्क दवा योजना चलते 11 वर्ष होने को है। योजना की शुरूआत के बाद दवाओं की अनुपलब्धता को देखते हुए लोकल परचेज की व्यवस्था सीमित स्तर पर आपात स्थिति के लिए शुरू की गई। लेकिन अब पूरा महीना इसी व्यवस्था पर छोड़ दिया गया। इससे सरकार को भी अधिक दाम की खरीद से फटका लगने की आशंका है।
वास्तविकताएं यह भी मिली एक अप्रेल से योजना शुरू होने के बाद भी अस्पताल में महंगी दवाएं तो दूर, अभी बुखार, खांसी, विटामिन बी कॉम्पलेक्स, यूरो बैग, हाई फ्लो मास्क, पेन किलर जैसी सामान्य दवा भी आसानी से उपलब्ध नहीं मिली।, 10 एमएल की सीरिंज—एनएस की बोतल भी मरीज बाजार से लाने को मजबू रहे।
राजस्थान पत्रिका ने राजधानी जयपुर के 10 बड़े सरकारी अस्पतालों के प्रमुख चिकित्सकों व अन्य डॉक्टरों से योजना की तैयारियों के संबंध में सवाल किए। दरअसल, इलाज के साथ ही योजना के सफल संचालन की जिम्मेदारी भी अस्पतालों में डॉक्टरों के पास ही है। इनका कहना था कि एक महीने तक संपूर्ण कैशलेश शुरू करने के बजाय इस अवधि के लिए कुछ विभागों या सुविधाओं में संपूर्ण कैशलेश का पायलट प्रोजेक्ट शुरू होना चाहिए था। उसी के आधार पर अन्य विभागों के लिए भी रणनीति बनाई जा सकती थी। इनका यह भी कहना था कि एक अप्रेल से योजना शुरू होने का आधिकारिक आदेश 31 मार्च को जारी हुआ। इससे पहले ईडीएल दवा सूची को बढ़ाने पर कागजी काम तो हुआ, लेकिन काउंटरों पर अभी भी यह नहीं बढ़ी है। अभी सबसे बड़े चुनौती ओपीडी मरीजों को सभी दवाएं नि:शुल्क उपलब्ध कराने की बनी हुई है। इनडोर मरीजों के लिए वार्ड में ही दवाएं उपलब्ध कराने की व्यवस्थाएं अब की जा रही हैं।
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