Rajasthan

Sachin Pilot and Ashok Gehlot political career Comparison | गहलोत-पायलट के बीच उम्र के साथ अनुभव का सफरनामा, अनुभव की कसौटी कमोबेश बराबरी पर

न केवल कांग्रेस पार्टी बल्कि प्रमुख प्रतिपक्ष दल भाजपा का समर्थन करने वाले और नौकरशाही में सियासी बयानों की चीर-फाड़ करने वाले अशोक गहलोत के रगड़ाई, फितूरबाजी जैसे शब्दों की मीमांसा अपने तरीके से कर रहे हैं। सीएम साफ कह रहे हैं कि रगड़ाई नहीं होने से फितूरबाजी वे ही कर रहे हैं जिन्हें जल्दी मौका मिल गया।

यह बात सही है कि राजनीति में उम्र के मुकाबले अनुभव का अपना महत्व है। जब बात सचिन पायलट की होती है तो ऐसे बयानों का यही मतलब निकाला जाने लगा है कि सचिन पायलट को अभी अधिक अनुभव नहीं है। यह भी कहा जाने लगा है कि ऐसे बयान देकर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत सचिन को सीएम पद पर इतना जल्द बैठने योग्य भी नहीं मानते। सियासी तंज के अपने निहितार्थ होते हैं। ऐसे में दोनों नेताओं की उम्र व अनुभव की पड़ताल भी जरूरी हो जाती है।

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अतीत के पन्नों को पलटें तो अशोक गहलोत 1980 में पहली बार जोधपुर से लोकसभा का चुनाव जीते। 1998 में वे राजस्थान के मुख्यमंत्री बन गए। यानी 18 साल बाद। इस बीच वे कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष रहे, केंद्र में चार साल मंत्री भी रहे। सिक्के के दूसरे पहलू पर गौर करें तो सचिन के सियासी अनुभव को भी कसौटी पर कसना होगा।

सचिन 2004 में पहली बार सांसद बने। 2009 में फिर सांसद बने। मनमोहन सिंह सरकार में पांच साल मंत्री भी रहे। फिर कांग्रेस के साढ़े छह साल तक प्रदेशाध्यक्ष भी रहे। 2018 में पहली बार विधायक बने। राज्य सरकार में पंचायत राज व पीडब्ल्यूडी जैसे विभागों को संभालने के साथ उपमुख्यमंत्री भी रहे। यानी पहली बार मुख्यमंत्री बनने तक गहलोत की जितनी ‘रगड़ाई’ हुई थी, मुख्यमंत्री पद के दावेदार सचिन की भी उतनी ही ‘रगड़ाई’ हो चुकी है।

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