भाई-बहन के अनूठे प्यार की कहानी बयां करता है राजस्थान का यह मंदिर, आज भी जाती है भाई हर्ष को राखी-This temple of Rajasthan tells the story of the unique love between brother and sister

सीकर. रक्षाबंधन का त्योहार 19 अगस्त को मनाया जाएगा, यह त्योहार भाई-बहन के प्रेम का प्रतीक है. इस दिन बहन अपने भाई की कलाई पर राखी बांधती है और भाई अपनी बहन को रक्षा का वचन देता है. आज हम आपको एक ऐसे मंदिर के बारे में बताएंगे, जहां मान्यता है कि अगर भाई-बहन जाकर इस मंदिर में एक साथ पूजा और अर्चना करें तो दोनों भाई बहनों में कभी झगड़ा नहीं होगा और वे हमेशा सुखी रहेंगे.
जीण माता और हर्ष भैरव का है मंदिरराजस्थान के सीकर जिला मुख्यालय से लगभग 30 किलोमीटर दूर जीण माता का मंदिर मौजूद है. जीण माता का यह मंदिर पहाड़ी की तलहटी में है. इसके अलावा जीण माता मंदिर से 14 किलोमीटर दूर हर्ष पहाड़ की चोटी पर हर्षनाथ का मंदिर मौजूद है. मान्यता है कि इन दोनों के दर्शन करने पर भाई बहनों के झगड़े दूर हो जाते हैं. रक्षाबंधन और नवरात्रि के समय जीण माता मंदिर में लाखों श्रद्धालु और भाई-बहन आते हैं और मन्नत मांगते हैं.
औरंगजेब भी बन गया था जीण माता का भक्तस्थानीय निवासी नरेश कुमावत बताते हैं कि औरंगजेब की सेना ने मंदिर तोड़ो नीति के तहत जीण माता मंदिर पर हमला किया था. तब जीण माता ने मधुमक्खियां की अपनी सेना को औरंगजेब की सेना से लड़ने के लिए भेजा था. माता रानी की सेना ने औरंगजेब की सेना के हाल बेहाल कर दिए थे. आज भी माता की सेना इस मंदिर में रहती है और मंदिर की रक्षा करती है.
आज भी भाई हर्ष के यहां जाती है बहन जीण की राखीजीण माता मंदिर मुख्य पुजारी विनय ने बताया कि आज भी बहन जीण माता की राखी भाई हर्ष के यहां भिजवाई जाती है. जीण माता के द्वारा भेजी गई राखी हर्ष पर्वत पर मौजूद हर्ष भैरव के हाथ पर बांधी जाती है. मंदिर के पुजारी माता की राखी हर्षनाथ भैरव मंदिर में पहुंचाते हैं. वहां पर भैरव मंदिर के पुजारी उनके यहां राखी बांधते हैं.
यह है मंदिर का इतिहासइतिहासकार ईश्वर चंद्र राठौर ने बताया कि जीण और हर्ष दो भाई बहन थे. ये दोनों चूरू जिले के घांगू गांव के रहने वाले थे. दोनों भाई-बहनों के बीच बहुत प्रेम था. उनके माता-पिता की मौत बचपन में ही हो गई थी, दोनों में हर्ष बड़ा था और जीण छोटी थी. जीण के पालन पोषण की संपूर्ण जिम्मेदारी हर्ष पर थी. ऐसे में खेलते कूदते दोनों बड़े हुए, बड़े होने पर हर्ष की शादी हो गई. भाई और बहन के बीच प्रेम को देखकर हर्ष की पत्नी बहुत चिढ़ती थी.
एक दिन जीण और उनकी भाभी के बीच हर्ष किससे ज्यादा प्रेम करते हैं, इसको लेकर बहस हो गई. इसके बाद दोनों ने शर्त लगाई की सरोवर से पानी लाने के बाद घर पर हर्ष सबसे पहले जिसका मटका उतारेंगे वे उसी से सबसे ज्यादा प्रेम करते हैं. इसके बाद जीण की भाभी ने हर्ष को अपनी बातों में बहला फुसला कर पहले ही बता दिया कि जब, मैं कल सरोवर से पानी लेकर आऊं तो सबसे पहले आप मेरा मटका उतारना. इसके बाद दूसरे दिन ऐसा ही हुआ.
इससे नाराज होकर जीण सीकर जिले के रैवासा गांव की पहाड़ियों में आ गई और यहां आकर तपस्या की, जब इस बात का पता हर्ष को चला तो वे भी उसके पीछे आ गया और जीण के साथ खुद भी तपस्या करने लगे. बताया जाता है कि कई साल तपस्या करने के बाद जीण माता को माता दुर्गा ने दर्शन दिए और उन्हें देवी होने का वरदान दिया और हर्ष को भगवान शंकर ने दर्शन दिए और उन्हें भैरव होने का वरदान दिया था.
माता दुर्गा और भगवान शंकर के वरदान के बाद जीण को माता जीण भवानी और हर्ष को हर्षनाथ भैरव के नाम से पूजा जाता है. इस कारण मानता है कि भाई बहन के इस मंदिर में आकर अगर कोई सच्चे मन से पूजा अर्चना करता है तो उनकी अरदास जरूर पूरी होती है.
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FIRST PUBLISHED : August 18, 2024, 16:16 IST