सर्दियों की बादशाह है यह मिठाई…तिली, गुड़ और नारियल से होती है तैयार, स्वादिष्ट के साथ-साथ फायदेमंद भी

मोहित शर्मा/करौली. सर्दियों में तिली से तैयार होने वाले तरह-तरह के और अपना स्वाद भी अलग-अलग रखने वाले कई जायके तो आपने अवश्य ही खाए होंगे. लेकिन ठंड के इसी मौसम में क्या कभी आपने तिली का हलवा खाया है. अगर नहीं खाया तो आज हम आपको तिली के उसी खास हलवे के बारे में बताने जा रहे हैं. जो खासतौर से तिल को कूटकर और नारियल को अच्छी तरह पीसकर गुड़ की मिठास से बनाया जाता है.
तिलकुटा के नाम से मशहूर यह हलवा खाने में जितना स्वादिष्ट, उससे कई गुना शरीर के लिए भी इस मौसम में फायदेमंद रहता है. इसे खाने के बाद ठंड का तो एहसास तक नहीं होता है. नए लोग चाहे इस तिल के हलवे से वाकिफ ना हो लेकिन पुराने जमाने के लोग आज भी इसे सर्दियों के मौसम में सबसे ज्यादा खाना पसंद करते हैं.
पहले यह हलवा सर्दियों के मौसम में घर-घर में बनाया जाता था लेकिन मेहनत ज्यादा लगने के कारण और बाजारों में तीली के कई तरह के व्यंजन मिलने के कारण लोगों ने इससे दूरी बना ली है. इन दिनों तिली का यह खास जायका राजस्थान की करौली में एक मेले में हाथों हाथ आंखों के सामने बनाकर चित्तौड़गढ़ की लोगों द्वारा बेचा जा रहा है. कड़ाके की सर्दी के इसे हर कोई खरीदना भी बेहद पसंद कर रहा है.
दशकों पहले राजस्थान की हर घर में था इसका स्वाद
मेले में इस तिलकुटा को खरीदने आए नीरज व्यास ने बताया कि आज से दशकों पहले राजस्थान के हर घर में यह हलवा बनाया जाता था, सारी महिलाएं भी इसे बनाना जानती थी. पहले इसे महिलाएं सर्दियों में घर पर ही पत्थर की ओखली में कुटकर बनाया करती थी. देशी भाषा में इसे तिलकुटा या कच्ची घाणी के नाम से जाना जाता था. उन्होंने बताया कि आजकल मेहनत ज्यादा लगने के कारण इसका घरों में बनना बंद हो गया है.
खाने में स्वादिष्ट और बॉडी को रखता है गरम
इसे खरीदने आए लोगों का कहना है कि सर्दियों में यह शरीर को एकदम गरम और इसमें तिली और गुड़ के अलावा किसी भी प्रकार के अन्य पदार्थ का उपयोग नहीं किया जाता है. तिली – गुड़ से बनने वाला यह तिलकुटा खाने में स्वादिष्ट और हलवे से भी अच्छा लगता है. केवल प्राकृतिक चीजों से बनने के कारण यह शरीर को भी एकदम गर्म रखता है.
ऐसे बनकर होता है तैयार
राजस्थान के चित्तौड़गढ़ से करौली में लगने वाले मेले में तिलकुटा बेचने आए व्यापारी देवीकिशन कुशवाहा ने बताया कि इसमें तिल, गुड़ और नारियल मिक्स रहता है. यह स्पेशल सर्दियों में ही बनाया और खाया जाता है. कुशवाहा ने बताया कि इसे हम करौली मेले में कच्ची घाणी मशीन के द्वारा तैयार कर रहे हैं. सबसे पहले इसे बनाने के लिए नारियल पीसा जाता है उसके बाद अच्छी तरह पीसने के बाद इसमें तिली मिलाई जाती है. करीब आधे घंटे तक अच्छी तरह नारियल और तिल पीसने के बाद जैसे ही तिली में से तेल निकलता है इसमें मिठास के लिए गुड़ मिलाया जाता है. तब जाकर यह हलवा तैयार होता है.
कुशवाहा का कहना है कि ज्यादा मेहनत लगने के कारण अब लोग इसे घर पर बनना पसंद नहीं करते है. राजस्थान के जिलों में इसे अलग-अलग नाम से जाना जाता है. कहीं पर तिलकुटा, कहीं कच्ची घाणी और कहीं पर इसे कचरिया के नाम से जाना जाता है. करौली में लगने वाले मेले में तिलकुटा का स्वाद लेकर आए ने कुशवाह यह भी बताया कि यह तिलकुटा देसी तिली में देसी गुड़ से और धुली हुई सफेद तिली में सफेद गुड़ के साथ-साथ ड्राईफ्रूट से बनाया जाता है. मेले में यह खास तिली का हलवा ₹300 से लेकर 350 किलो तक काफी ज्यादा मात्रा में बिक रहा है.
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FIRST PUBLISHED : January 3, 2024, 19:22 IST