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Shri Hari Stotram: ये है शक्तिशाली श्री हरि स्तोत्रम्, एकादशी पर पाठ से छूट जाता है नशा और बुरी संगति

Shri Hari Stotram Path Rules On Vijaya Ekadashi: सबसे प्राचीन ग्रंथ वेदों में भगवान विष्णु के स्वरूप का काफी वर्णन किया गया है। लेकिन इसके बाद की रचनाओं में श्री हरि स्त्रोतम का विशेष स्थान है। इसकी रचना श्री आचार्य ब्रह्मानंद ने की है। मान्यता है कि श्री हरि स्तोत्र के पाठ से भगवान विष्णु के साथ मां लक्ष्मी का भी आशीर्वाद मिलता है। इसीलिए इस स्तोत्र को भगवान श्री हरि की उपासना के लिए सबसे शक्तिशाली मंत्र कहा जाता है। हालांकि इसके लिए कुछ चीजों का ध्यान रखना चाहिए। नित्यक्रिया और स्नान के बाद श्री गणेश का ध्यान कर ही इसका पाठ शुरू करना चाहिए। साथ ही पाठ को शुरू करने के बाद बीच में रुकना या उठना नहीं चाहिए।

श्री हरि स्तोत्रम् पाठ के फायदे (Shri Hari Stotram Benifit)

मान्यता के अनुसार श्री हरि स्तोत्र के मंत्र जाप से मनुष्य को तनाव से मुक्ति मिलती है। इसके साथ ही जाप से जीवन में आगे बढ़ने की शक्ति मिलती है और बुरी लत या गलत संगत में फंसे हैं तो भी इससे छुटकारा मिलता है। इसके अलावा भगवान हरि का यह अष्टक जो कि मुरारी के कंठ की माला के समान ही है, सच्चे मन से पढ़ने वाले को वैकुण्ठ लोक प्राप्त करने का फल देता है। यह दुख, शोक, जन्म-मरण के बंधन से भी मुक्त करता है।

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श्री हरि स्तोत्रम् (Shri Hari Stotram)

जगज्जालपालं चलत्कण्ठमालंशरच्चन्द्रभालं महादैत्यकालं

नभोनीलकायं दुरावारमायंसुपद्मासहायम् भजेऽहं भजेऽहं॥1॥

सदाम्भोधिवासं गलत्पुष्पहासंजगत्सन्निवासं शतादित्यभासं

गदाचक्रशस्त्रं लसत्पीतवस्त्रंहसच्चारुवक्त्रं भजेऽहं भजेऽहं॥2॥

रमाकण्ठहारं श्रुतिव्रातसारंजलान्तर्विहारं धराभारहारं

चिदानन्दरूपं मनोज्ञस्वरूपंध्रुतानेकरूपं भजेऽहं भजेऽहं॥3॥

जराजन्महीनं परानन्दपीनंसमाधानलीनं सदैवानवीनं

जगज्जन्महेतुं सुरानीककेतुंत्रिलोकैकसेतुं भजेऽहं भजेऽहं॥4॥

कृताम्नायगानं खगाधीशयानंविमुक्तेर्निदानं हरारातिमानं

स्वभक्तानुकूलं जगद्व्रुक्षमूलंनिरस्तार्तशूलं भजेऽहं भजेऽहं॥5॥

समस्तामरेशं द्विरेफाभकेशंजगद्विम्बलेशं ह्रुदाकाशदेशं

सदा दिव्यदेहं विमुक्ताखिलेहंसुवैकुण्ठगेहं भजेऽहं भजेऽहं॥6॥

सुरालिबलिष्ठं त्रिलोकीवरिष्ठंगुरूणां गरिष्ठं स्वरूपैकनिष्ठं

सदा युद्धधीरं महावीरवीरंमहाम्भोधितीरं भजेऽहं भजेऽहं॥7॥

रमावामभागं तलानग्रनागंकृताधीनयागं गतारागरागं

मुनीन्द्रैः सुगीतं सुरैः संपरीतंगुणौधैरतीतं भजेऽहं भजेऽहं॥8॥

॥ फलश्रुति ॥
इदं यस्तु नित्यं समाधाय चित्तंपठेदष्टकं कण्ठहारम् मुरारे:
स विष्णोर्विशोकं ध्रुवं याति लोकंजराजन्मशोकं पुनर्विन्दते नो॥9॥

विजया एकादशी मुहूर्त (Vijaya Ekadashi Muhurt)

एकादशी तिथि प्रारंभः 6 मार्च 2024 को सुबह 06:30 बजे
एकादशी तिथि समापनः 7 मार्च 2024 को सुबह 04:13 बजे
(नोटः गृहस्थ लोगो 6 मार्च को विजया एकादशी व्रत रखेंगे, जबकि संन्यासी 7 मार्च को विजया एकादशी व्रत रखेंगे। )
गृहस्थों के पारण का समयः 7 मार्च को दोपहर 01:28 बजे से दोपहर 03:49 बजे तक
संन्यासियों के पारण का समयः 8 मार्च को सुबह 06:23 बजे से 08:45 बजे तक

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विजया एकादशी पूजा विधि (Vijaya Ekadashi Puja Vidhi)

1. सुबह दैनिक क्रिया और स्नान ध्यान के बाद मंदिर की साफ-सफाई करें, व्रत का संकल्प लें और भगवान श्री हरि विष्णु को गंगाजल से स्नान कराएं।
2. भगवान का वस्त्र बदलें, उन्हें पंचामृत अर्पित करें। धूप-दीप, चंदन, पीले फूल, फल, मिष्ठान्न अर्पित करें।
3. भगवान विष्णु के मंत्र ॐ नमो भगवते वासुदेवाय का जाप करें, श्री हरि स्तोत्र का पाठ करें।
4. माता लक्ष्मी और अन्य देवताओं की भी पूजा करें।

5. विजया एकादशी की व्रत कथा का पाठ करें, पूरी श्रद्धा से भगवान श्री हरि विष्णु और लक्ष्मी जी की आरती करें।
6. दिनभर व्रत रखें, रात में जागरण कर भगवान का ध्यान करें, भजन-कीर्तन करें।
7. अगले दिन पूजा-पाठ के बाद, ब्राह्मण भोजन कराकर दान पुण्य करने के बाद खुद का व्रत तोड़ें।

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