इस शहर में 100 साल से नहीं निकला ताजिया, राजाशाही जमाने की एक घटना से लगी रोक

मोहित शर्मा/करौली: मातम के पर्व मोहर्रम को लेकर देशभर में ताजिया के जुलूस की तैयारीयां शुरू हो गई. इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार इस साल मोहर्रम का त्यौहार 17 जुलाई के दिन मनाया जाएगा. इस दिन मुस्लिम समुदाय के लोग मिलकर, परंपरा अनुसार ताजिया का जुलूस निकालते है.
इस जुलूस को लेकर राजस्थान के अधिकांश शहरों में ताजियों का बनना और संवरना भी शुरू हो गया है. कई जगहों पर तो ताजिया जुलूस के लिए एकदम बनकर तैयार खड़े भी हैं. लेकिन, राजस्थान में एक शहर ऐसा भी है जहां पर राजाशाही जमाने से ही ताजिया कभी खड़ा नहीं हो पाया. इस शहर में सैकड़ों साल पहले हुई एक घटना ने मोहर्रम के पर्व पर निकलने वाले ताजिये के जुलूस पर हमेशा के लिए रोक लगा दी. इस वजह से राजस्थान के करौली में मोहर्रम पर निकलने वाले ताजिया की परंपरा गायब नजर आती है.
लगभग 100 साल पहले हुई एक अप्रिय घटना के बाद यहां मोहर्रम का ताजिया आज तक खड़ा नहीं हो पाया और ना ही उस घटना के बाद करौली में किसी भी प्रकार का ताजिया का जुलूस निकल पाया. यहां के मुस्लिम समुदाय के लोगों ने भी ताजिया से अपनी दूरी बना ली है और मोहर्रम पर ताजिया का जुलूस निकालना शुभ नहीं मानते हैं. वहां के लोग इस मातम के त्यौहार को अलग रीति रिवाज से मनाते हैं.
करौली में रियासत काल से ही बंद है ताजियामुस्लिम समुदाय के बुजुर्ग हाफिज खलील बताते हैं कि यहां ताजिया का जुलूस शाही समय से ही बंद है. सैकड़ों साल पहले यहां ताजिए के जुलूस को लेकर आपस में झगड़ा हो गया था. उस समय रामलीला बैठी हुई थी. रामलीला के आयोजकों ने ताजिए को बाजार से नहीं निकलने दिया. उस घटना के बाद ताजिया का जुलूस करौली में कभी नहीं निकला और न ही आने वाले समय में निकलेगा. खलील बताते हैं कि उस समय ही हमारे यहां एक मीटिंग हुई थी जिसमें समाज के लोगों ने ताजिया नहीं निकालने का निर्णय लिया था.
अब गरीबों को खाना खिलाकर मनाते हैं मोहर्रमअब मोहर्रम के त्योहार को करौली के मुस्लिम समुदाय के लोग अलग ढंग से मनाते हैं. मुस्लिम समुदाय के हाफिज खलील बताते हैं कि अब वहां के लोग मोहरम पर गरीबों को सिर्फ खाना खिलाते हैं और जितना भी हो सकता है उतना दान करते हैं.
100 साल पहले तक जीवित थी यह परंपराजानकारी के अनुसार पहले करौली में ताजिया का जुलूस मोहर्रम के त्योहार पर निकलता था. 100 साल पहले तक करौली में ताजिया निकालने की परंपरा भी जीवित थी. इसको लेकर लोकल 18 ने करौली के वरिष्ठ इतिहासकार वेणुगोपाल शर्मा से बात की. शर्मा ने बताया कि ताजिया पहले तो करौली में निकलते थे. लेकिन आज से वर्षों पहले राजा भौमपाल के समय में करौली के बाजार में रामलीला का मंचन हो रहा था और उस समय ही ताजिया निकालने का समय था. उस वक्त मुस्लिम समुदाय के लोग भी ताजिया निकालने के लिए अमादा थे. रामलीला के चलते वहां लोगों की भारी भीड़ थी और रास्ता भरा हुआ था. ऐसे में ताजिए के लिए रास्ता खोलना काफी कठिन था और फिर बात झगड़े की नौबत तक पहुंच गई.
झगड़े के बाद राज दरबार में हुआ समझौताइतिहासकार वेणुगोपाल शर्मा ने बताया कि इस झगड़े के बाद स्टेट टाइम में राज दरबार में दोनों समुदायों के बीच वार्ता हुई. इस वार्ता में काफी मंथन के बाद एक सहमति बनी. उस समय करौली मुस्लिम समुदाय के बड़े लोग भी राज दरबार में आते-जाते रहते थे. ऐसे में ताजिये को लेकर उनसे भी समझाइस की गई और आखिर में दोनों समुदाय के लोगों की सहमति बनी. दोनों पक्षों की सहमति के बाद करौली में ताजिया नहीं निकालने का निर्णय लिया गया जिससे, आगे सांप्रदायिक सौहार्द ना बिगड़े. शर्मा ने बताया कि तभी से करौली में ताजिया का जुलूस निकलना बंद हो गया.
अब ना तो करौली में ताजिया को लेकर किसी भी प्रकार की विचारधारा होती है ना ही इसकी तैयारी होती हैं. इतिहासकार वेणुगोपाल शर्मा बताते हैं कि राजा शाही जमाने से ही करौली में ताजिया के निकलने पर रोक है. हालांकि यह परंपरा करौली में 100 साल पहले तक तो जीवित थी लेकिन अब खत्म हो गई.
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FIRST PUBLISHED : July 16, 2024, 19:39 IST