किसानों के जीवन में मिठास घोल रही श्रीगंगानगर की मीठी गाजर, सालाना 100 करोड़ का है कारोबार
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Agency: Rajasthan
Last Updated:February 23, 2025, 19:02 IST
Ganganagar Carrot Farming: राजस्थान का गंगानगर लाल गाजर की खेती के लिए जाना जाता है. यहां बलुई दोमट मिट्टी और गहरी जुताई के कारण गाजर की लंबाई अधिक रहती है. गंगानगर की गाजर का बिजनेस 80 से 100 करोड़ रुपए तक का …और पढ़ेंX
श्री गंगानगर में गाजर की खेती
हाइलाइट्स
गंगानगर की गाजर का सालाना कारोबार 100 करोड़ तक पहुंचता है.गंगानगर की गाजर की लंबाई अधिक और मिठास ज्यादा होती है.गाजर की खेती से किसान तीन महीने में लाखों का मुनाफा कमाते हैं.
श्रीगंगानगर. राजस्थान के श्रीगंगानगर जिला कोअन्न का कटोरा भी कहा जाता है. श्रीगंगानगर नरमा-कपास, किन्नू ही नहीं बल्कि अपनी मीठी गाजर की मिठास के कारण भी देशभर में फेमस है. प्रदेश में सबसे ज्यादा गाजर का उत्पादन गंगानगर में ही होता है. यही वजह है कि ये जिला उपजाऊ मिट्टी और पानी की उपलब्धता के कारण खेती के मामले में अच्छी पैदावार के लिए जाना जाता है. इस समय श्रीगंगानगर की गाजर मंडी में गाजर का कारोबार पीक पर चल रहा है. यहां की गाजर देशभर में मशहूर है. आम गाजर से अधिक लंबाई, गहरा लाल रंग और अधिक मिठास इस गाजर की पहचान है.
यही कारण है कि यहां की गाजर राजस्थान के अन्य जिलों के साथ-साथ पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, हिमाचल, जम्मू, बिहार और पश्चिम बंगाल तक पहुंच रही है. बंगाल-बिहार में तो यहां की गाजर की इतनी भारी डिमांड है कि 90 फीसदी गाजर इन्हीं दो राज्यों में खप जाती है. श्रीगंगानगर की इंदिरा गांधी नहर और 6 मासी नहर के किनारे इन दिनों गाजरों से लबालब हैं. यहां गाजर की खेती करने वाले किसान गाजरों को धोकर बेचते हुए बड़ी संख्या में दिख जाएंगे.
सीजन में 100 करोड़ तक का होता है कारोबार
कृषि विभाग की रिपोर्ट के मुताबिक 3 महीने के सीजन में गंगानगर की गाजर का बिजनेस 80 से 100 करोड़ रुपए तक का होता है. गंगानगर मंडी में 15 हजार क्विंटल गाजर रोजाना आ रही है. गुरप्रीत सिंह ने बताया कि यहां बलुई दोमट मिट्टी और गहरी जुताई के कारण गाजर की लंबाई अधिक रहती है. शहर की गाजर मंडी में इस वक्त पूरे जिले से गाजर आ रही है. किसान का कहना है कि वह तीन महीने के लिए गाजर की खेती करते हैं और सीजन में 10 लाख तक की इनकम हो जाती है. किसान बताते हैं कि साल की शुरुआत में गेहूं लेते हैं. गेहूं की फसल अप्रैल में पकती है. इसके बाद जुलाई तक जमीन को खाली छोड़ना पड़ता है. अगस्त में गाजर बोई जाती है जो नवंबर तक पक कर तैयार हो जाती है. नवम्बर से दिसंबर तक पककर तैयार हो जती है. इसके बाद वे मक्का या चारे की फसल ले लेते हैं. इस तरह से गाजर उनके लिए आय का अतिरिक्त स्रोत बन जाता है.
मशीनों पर होती है गाजर की धुलाई
किसान ने बताया कि 10 साल पहले 2013 में पहली बार 5 बीघा में गाजर बोई तो 500 क्विंटल गाजर पैदा हुई. प्रति किलो 10 रुपए तक का फायदा हुआ. तीन महीने में 2 लाख की शुद्ध इनकम हुई तो फिर अगले साल से गाजर का रकबा बढ़ा दिया. वहीं गाजर की प्रोसेसिंग नहर किनारे लगी धुलाई यूनिटों पर होती है. खेत से निकालकर गाजर लाते हैं तो इस पर मिट्टी लगी होती है. रंग भी सुर्ख लाल नजर नहीं आता है. यहां गाजर मंडी गांव साधुवाली में है. इलाके के गांव साधुवाली, तीन पुली से साधुवाली की तरफ आने वाली नहर, गांव कालूवाला के पास गंगनहर सहित गंगनहर के कई हिस्सों के पास लोगों ने मशीनें (धुलाई यूनिट) लगा रखी है. इन मशीनों पर गाजर की धुलाई की जाती है. धोने के बाद गाजरों का रंग निखर जाता है. मशीन से बाहर आते ही इन्हें बोरियों में पैक करवा दिया जाता है. मौके पर ही किसान इसकी बोली करवाने के बाद लोडिंग भी करवा देते हैं.
Location :
Ganganagar,Rajasthan
First Published :
February 23, 2025, 19:02 IST
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गाजर की खेती का हब है राजस्थान का यह जिला, सालाना 100 करोड़ का है कारोबार