Rajasthan

beyond caste and religion 12 friends started the barah bhai ka mela

Last Updated:March 19, 2025, 15:34 IST

धौलपुर के बाड़ी कस्बे में 167 वर्षों से बारह भाई मेले के 12 संस्थापक एक बार उत्तर प्रदेश के जगनेर कस्बे में ग्वाल बाबा के मेले में गए. वहां स्थानीय लोगों ने उनकी परीक्षा लेने के लिए शर्त रखी कि अगर वे एक लोटे स…और पढ़ेंX
आज
आज सांप्रदायिक सौहार्द का प्रतीक है यह 167 साल पुराना मेला

हाइलाइट्स

बारह भाई मेला 167 वर्षों से धौलपुर में आयोजित हो रहा है.लैला-मजनू की सवारी मेले का मुख्य आकर्षण है.मेला हिंदू-मुस्लिम एकता और सामाजिक सौहार्द की मिसाल है.

धौलपुर:- जिले के बाड़ी कस्बे में हर साल निकलने वाला बारह भाई मेला सांप्रदायिक सौहार्द और भाईचारे की मिसाल बना हुआ है. यह ऐतिहासिक मेला 167 वर्षों से लगातार आयोजित हो रहा है और इस बार 22 मार्च को निकाला जाएगा. मेला कमेटी महासचिव पवन चंसौरिया ने Local 18 को बताया कि मेले के 12 संस्थापक एक बार उत्तर प्रदेश के जगनेर कस्बे में ग्वाल बाबा के मेले में गए. वहां स्थानीय लोगों ने उनकी परीक्षा लेने के लिए शर्त रखी कि अगर वे एक लोटे से पानी पिएंगे, तो उन्हें सच्चा भाई माना जाएगा.

भाईचारे की अनूठी मिसालसभी ने खुशी-खुशी एक ही लोटे से पानी पीकर अपनी एकता का परिचय दिया. इस मेले की परंपरा को बनाए रखने में कई बुजुर्गों ने महत्वपूर्ण योगदान दिया, जिनमें स्व. केदारनाथ मंगल, स्व. गोविंद गुरु कपरेला, स्व. छोटे खां, स्व. बाबूलाल चंसोरिया आदि प्रमुख थे. उन्होंने अपनी मेहनत और लगन से मेले की शान को बनाए रखा.

कैसे पड़ा ‘बारह भाई मेला’ नाम?1857 के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान जब पूरा देश अंग्रेजों से संघर्ष कर रहा था, तब बाड़ी शहर के 12 दोस्तों ने एक मेले की शुरुआत की. ये बारह दोस्त विभिन्न जातियों और समुदायों से थे- ब्राह्मण, राजपूत, वैश्य, कायस्थ, जाट, अहीर, प्रजापति, हरिजन, सुनार, कोली और एक मुसलमान मित्र भी इसमें शामिल था. जात-पात से परे इन सभी ने संकल्प लिया कि हर साल यह मेला निकाला जाएगा.

लैला-मजनू की सवारी है मुख्य आकर्षणइस मेले में प्रेम और सद्भाव का प्रतीक लैला-मजनू की सवारी निकलती है. पहले दोनों एक ही ऊंट पर बैठते थे, लेकिन अब अलग-अलग झांकियां सजाई जाती हैं. इस झांकी को देखने दूर-दूर से लोग आते हैं. बीते समय में इस मेले को देखने के लिए लोग अपने रिश्तेदारों और बहन-बेटियों को बुलाते थे. घरों की छतों से शोभायात्रा देखने की परंपरा थी. हालांकि, बदलते समय के साथ अब लोगों की संख्या में कमी देखी जा रही है.

आज भी कायम है मेले का उत्साहबारह भाई मेला आज भी बिना किसी भेदभाव के, सभी धर्मों और जातियों के सहयोग से निकाला जाता है. कोरोना काल को छोड़कर यह मेला कभी बंद नहीं हुआ. इसके आयोजन में राजा-महाराजा तक सहयोग देते थे और आज भी स्थानीय नागरिक इसे पूरे जोश और उत्साह से मनाते हैं. होली के दूसरे दिन श्री राधा-कृष्ण झांकी समिति शोभायात्रा निकलती है.

अंतिम दिन श्री राम, लक्ष्मण, माता सीता की सवारी पूरे नगर का भ्रमण करती है. श्रद्धालु कंधों पर झांकियां उठाकर जयघोष करते हैं, जिससे पूरा माहौल भक्तिमय हो जाता है. बारह भाई मेला सिर्फ एक आयोजन नहीं, बल्कि हिंदू-मुस्लिम एकता और सामाजिक सौहार्द की मिसाल है. यह परंपरा आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा बनी रहेगी.


Location :

Dhaulpur,Rajasthan

First Published :

March 19, 2025, 15:34 IST

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