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Jaipur News: गौ- तस्करी के लिए कुख्यात राजस्थान में गौवंश बढ़ा, राज्य पशु ऊंट में आई कमी

जयपुर. गायों (cows) और गौवंश की तस्करी के मामले में भले ही राजस्थान (Rajasthan) देश- विदेश में कुख्यात रहा हो, लेकिन 20वीं पशुगणना (Cattle Census) के आंकड़े प्रदेश की दूसरी तस्वीर पेश करते हैं. इस पशुगणना के मुताबिक, 2012 की तुलना में गौवंश में अब 4.41 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है. राज्य पशु ऊंट की गणना के आंकड़े चौंकाने वाले हैं. 2014 में राज्य पशु घोषित होने के बावजूद 2012 की तुलना में 34.69 प्रतिशत ऊंटों की संख्या में कमी आई है.

पशुधन में उत्तर प्रदेश पहले पायदान पर
पशुओं की संख्या की बात करें तो ऊंट व बकरी के मामले में राजस्थान देशभर में अव्वल और गायों की संख्या के मामले में छटवें नम्बर पर है. इस गणना के तहत भारत में कुल पशुधन आबादी 53.57 करोड़ है, जो वर्ष 2012 की तुलना में 4.6 प्रतिशत अधिक है. राजस्थान पशुधन के मामले में 56.8 मिलियन पशुओं के साथ देश में दूसरे नंबर है. पशुधन में पहले नम्बर पर उत्तर प्रदेश है.

प्रदेश में एक लाख से ज्यादा घट गए ऊंट रेगिस्तान का जहाज कहे जाने वाले ऊंटों के संरक्षण के लिए तत्कालीन सरकार ने 2014 में इसे राज्य पशु का दर्जा दिया, लेकिन यह भी लगातार कम होते ऊंटों के किसी काम नहीं आया है. ऊंटों की संख्या बढ़ाने के लिए ऊंट पालकों को अनुदान, प्रत्येक ऊंटनी के प्रसव पर दस हजार रुपए की धनराशि भी शुरू की गई. कई कारणों से ऊंटों की संख्या बढ़ने के बजाए घटती चली गई. वर्ष 2012 की पशु गणना में जहां राज्य में 3,25,713 ऊंट थे. वहीं अब 20 वीं गणना में यह कम होकर 2,12,739 रह गए हैं। यानी एक लाख से ज्यादा ऊंटों की संख्या में कमी आई है।

राज्य पशु बनाने का दर्जा काम न आया
पशुपालक इसके पीछे चारागाहों की कमी, ऊंटों की प्रजनन में कमी, नई पीढ़ी और युवा वर्ग में ऊंट पालन को लेकर अरुचि प्रमुख कारण हैं. इसके अलावा राज्य पशु बनने से भी ऊंटों का संरक्षण के बजाए नुकसान ही हुआ है. पहले ऊंट को बूढ़ा होने पर राज्य से बाहर ले जाकर बेचना आसान था. उसे बाहर भेजा जा सकता था, लेकिन अब यह संभव नहीं है. प्रदेश में सबसे ज्यादा ऊंट जैसलमेर में और सबसे कम प्रतापगढ़ में हैं.

इसलिए ऊंट है रेगिस्तान का जहाज
ऊंट एक हफ्ते से ज्यादा पानी पिए बिना और कई महीनों तक बिना खाने के रह सकता है. यह एक बार में 46 लीटर पानी पी सकता है. ऊंट अपनी पीठ पर कूबड़ में  फैट (वसा) इकट्ठा करके रखता है और इसी ऊर्जा से महीनों तक अपना काम चलाता है. इसके पैर चौड़े होते हैं, जो उसके वजन को रेत पर फैला देते हैं रेत में धंसते नहीं हैं. ऊंट के होठ मोटे होते हैं जिससे वह रेगिस्तान में पाए जाने वाले कांटेदार पौधे भी खा पाता है. इसके पेट और घुटनों पर रबर जैसी त्वचा होती है, जिससे बैठते समय रेत के संपर्क में आने पर भी इसका बचाव हो सके.

गाय 4.41 फीसदी व भैंस साढ़े 5 फीसदी बढ़ीं
दुधारू पशुओं की बात करें तो गाय और भैंस के मामले में गणना के परिणाम अनुकूल आए हैं. हालांकि विभिन्न प्रकरणों के चलते गौ- तस्करी के मामले में राजस्थान कलंकित हुआ है, लेकिन पशुधन गणना में गौवंश में 4.41 प्रतिशत की और भैंसों में 5.53 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. 2012 में प्रदेश में गोवंश 13.3 मिलियन था, जो अब बढ़कर 13.9 हो गया है. इसी प्रकार भैंस 13 मिलियन से बढ़कर 13.7 मिलियन हो गई हैं. गाय के मामले में प्रदेश छटवे और भैंसों के मामले में देशभर में दूसरे नम्बर पर है.

सबसे ज्यादा गाय उदयपुर व सबसे कम धौलपुर में
प्रदेश में सबसे ज्यादा गाय उदयपुर में और सबसे कम धौलपुर में हैं. राजस्थान के चित्तौड़, अजमेर, भीलवाड़ा में गिर गाय, जैसलमेर, गंगानगर, बीकानेर में सर्वाधिक दूध देने वाली राठी नस्ल की गाय, इसी प्रकार बाड़मेर में श्रेष्ठ नस्ल की थारपारकर गाय, जोधपुर, नागौर और बीकानेर में नागौरी गाय, जालौर, पाली, सिरोही में कांकरेज गाय और अन्य इलाकों में सांचौरी, मेवाती, हरियाणवी और मालवी गायों की नस्लें पाई जाती हैं. मेवात इलाका गौ- तस्करी के लिए सर्वाधिक चर्चित रहा है.

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