सत्ता की रार,रिश्तों में दरार

जयपुर : (प्रेम शर्मा)।राजनीति में संभावनाओं का कोई मोल नहीं है। कब क्या हो जाए किस को खबर का ही नाम राजनीति है। खेल के नियम होते है लेकिन राजनीतिक द्वंद बिना किसी नियमों के खेला जाता है। आजादी के बाद लम्बे अर्से तक शासन करने के बाद अर्श से फर्श पर आई कांग्रेस में भी इन दिनों हाईकमान के बीच सत्ता की ऐसी रार पनप रही है जो रिश्तों में दिन प्रति दिन दरार डालती नजर आ रही है। हाईकमान के नाम पर कांग्रेस में तीन मूर्ति सोनिया,प्रियंका और राहुल गांधी है। कहने को संगठन से लेकर सत्ता की भागीदारी में इनके ही निर्णय सर्वोपरिय होते हैं,लेकिन पिछले दिनों से देखने में आ रहा है कि शनै:शनै राहुल गांधी को दरकिनार करके एक तरफा निर्णय लेने में प्रियंका बाजी मार रही है।राहुल गांधी जो चाहते है प्रियंका एक दम उसके विपरित चलती नजर आ रही है और बड़ी सफाई से सोनिया गांधी का ठप्पा अपने निर्णय पर लगवाकर उसे अमल में ला रही है। राहुल गांधी इसे भाप भी रहे है लेकिन कशमसाहट के सिवा उनके पास और कोई रास्ता नहीं है। लम्बी रेस और दुरगामी सोच को लेकर पर्दे के पीछे सत्ता की इस रार में रिश्तों के बीच जो दरार पड रही है उसके मुख्य सुत्रधार है राबर्ट बाड्रा। कांग्रेस में जो परिदृश्य इन दिनों हाईकमान को लेकर देखने को मिल रहे हैं उसके आधार पर इस आशंका को नकारा नहीं जा सकता है कि आने वाले कल में राहुल और प्रियंका कांग्रेस की दो धुरी उसी तरह साबित हो जिस तरह से वर्तमान में राजीव और संजय गांधी का परिवार है।

पंजाब में अमरिन्दर सिंह और नवजोत सिद्धू के बीच की खाई पाटने की हाईकमान ने हरसंभव कोशिश की लेकिन खाई पटने की जगह इस कदर गहरी हो गई कि सिद्धू ने निर्णय लेने की स्वतंत्रता की अपील करते हुए हाईकमान के खिलाफ ही किसी भी हद तक जाकर कार्य करने की अपील कर डाली। अब कांग्रेस की हाईकमान रूपी त्रिमूर्ति में से जिसके भी निर्णय को लेकर सिद्धू की नियुक्ति की गई है उसे बाकी के दो तो कोसेगें ही।
छत्तीसगढ़ को लेकर देखा जाए तो सियासत का ड्रामा काफी समय से चल रहा है,कारण आज से ढाई साल पहले जब भूपेश बघेल को मुख्यमंत्री बनाया गया था तो उनका कार्यकाल ढाई वर्ष का ही निर्धारित किया गया था तब टीएस सिंह देव को यह कहकर संतुष्ट किया गया था कि ढाई साल बाद मुख्यमंत्री की कमान तुम्हारे हाथ होगी।
राहुल गांधी कहे वादे के अनुसार छत्तीसगढ़ की कमान टीएस सिंह देव को सौपना चाहते थे। सियासत की डोर परिवर्तन को लेकर छत्तीसगढ़ से दिल्ली हाईकमान तक विधायकों को भी दौड़ाया गया और हाईकमान के सामने बघेल ने यह साबित करना चाहा कि प्रदेश के अधिकांश विधायक उन्हीें को मुख्यमंत्री बनाए रखने को सहमत है ऐसे में सिंह को मुख्यमंत्री की कमान सौपी तो छत्तीसगढ़ में प्रदेश स्तर पर कांग्रेस पार्टी ही नहीं सत्ता के हालात भी बिगड सकते हैं।

यूपी चुनावों को लेकर इस बार ओबीसी कार्ड खेला जा रहा है जिसके मद्देनजर अगले साल उत्तर प्रदेश में होने वाले चुनावों में प्रियंका गांधी छत्तीस गढ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को कैश करना चाहती है। यह बात प्रियंका ने सोनिया गांधी के जहन में इस कदर डाली कि राहुल गांधी छत्तीसगढ़ मसले पर दर किनार कर दिए गए और कामयाबी के रूप में भूपेश बघेल की कुर्सी फिलहाल सलामत है। अब बात यह भी सामने आ रही है कि इस पृष्ठभूमि के पीछे प्रियंका गांधी के पति राबर्ट बाड्रा का हाथ बताया जा रहा है। उसी ने प्रियंका गांधी को तैयार किया था कि यूपी चुनाव को देखते हुए छत्तीसगढ़ में सत्ता परिवर्तन का उचित समय नहीं है,क्योंकि बघेल ओबीसी वर्ग से है और उनका बेखुबी इस्तेमाल आगामी वर्ष यूपी में हो रहे चुनावों में किया जा सकता है।
सर्वोपरिय सोनिया करे तो क्या करें पार्टी हाईकमान से पहले वह मां जो है। राहुल और प्रियंका में से किस को नजरअंदाज करें, किसे तब्बजो दे यह उनकी सबसे बड़ी समस्या बन गई है। खासकर प्रियंका के सक्रिय राजनीति में प्रवेश के बाद से। राहुल अपना मुकाम हासिल करने के लिए कडा सघर्ष कर रहे हैं लेकिन बाड्रा जिस तरह से प्रियंका के कंधे से निशाना साध रहे हैं उसके अनुसार अब राहुल के नेतृत्व पर सवाल खडे होने लग गए हैं।
अब राजस्थान को लेकर देखे तो गहलोत के खिलाफ चल रहे पूर्व उपमुख्य मंत्री सचिन पायलट अप्रत्यक्ष रूप से हाईकमान को तेवर दिखाने के लिए सड़क का दंद्व छेड चुके हैं। हाईकमान के समक्ष समर्थकों से खून भरे खत भिजवा रहे हैं,प्रदेश के हर जिले में जाकर अपने समर्थकों के साथ यह संदेश हाईकमान तक पहुंचा रहे हैं कि पूरे प्रदेश में उनके जैसा कोई ओर नेता कांग्रेस में नहीं है। गौरतलब है कि कुछ इसी तरह हाईकमान के खिलाफ बगावत स्व.राजेश पायलट ने की थी सीताराम केसरी के खिलाफ और जतिन प्रसाद के समर्थन में।ऐसे में हर बात के मद्देनजर दावे से कह सकते हैं कि हाईकमान ने गौर फरमाया तो पायलट को इस बार भी ठंडे पानी के छीटों के सिवा कुछ हासिल नहीं होना।