Used clothes choke both markets and environment in Ghana | घाना के तट पर पुराने कपड़ों का ‘पहाड़’, रोक रहा पर्यावरण की ‘सांसें’
‘फास्ट फैशन’ बन रहा बड़ी आफत
जेम्सटाउन में बीच के आसपास बड़ी संख्या में मछुआरे रहते हैं। तट पर कपड़ों के ढेर के कारण वे समुद्र में अपनी नाव नहीं उतार पाते। यहां जलीय जीवों को भी काफी नुकसान पहुंचा है। भारी तादाद में मछलियां घटने से मछुआरों के लिए जीवनयापन करना मुश्किल हो गया है। पश्चिमी अफ्रीकी तट पर लगा यह अंबार ‘फास्ट फैशन’ से उपजे वैश्विक व्यापार की कमियों का परिणाम है। ‘फास्ट फैशन’ में कंपनियां सस्ते और ट्रेंडिंग कपड़े बनाती हैं, ताकि बिक्री बढ़े और ज्यादा मुनाफा कमाया जा सके।
बीच पर पहुंच रहे बड़े-बड़े ब्रांड
मध्य अकरा स्थित कंटामेंटो मार्केट में पुराने कपड़े मिलते हैं। यहां लगभग 30,000 लोग हर महीने 2.5 करोड़ कपड़ों की छंटाई, धुलाई और बिक्री का काम करते हैं। स्थानीय लोग बाजार से निकलने वाले कचरे को ‘ओब्रुनी वावु’ कहते हैं, जिसका ट्वी भाषा में अर्थ है- ‘ए डेड वाइट मैंस क्लॉद्स’। बीच पर एक से बढ़कर एक बड़े ब्रांड के कपड़े मौजूद हैं, जिसमें एच एंड एम, नाइकी और मार्क्स एंड स्पेंसर शामिल हैं।

सेकंड-हैंड कपड़ों का व्यापार दान, रीसाइक्लिंग या अपशिष्ट प्रबंधन नहीं है, बल्कि यह एक आपूर्ति शृंखला है। विशेषज्ञों के मुताबिक इस संबंध में निर्माता कंपनी की जिम्मेदारी तय करनी चाहिए। निर्माता कंपनी पर अपने स्वयं के कचरे के लिए टैक्स लगाया जाए और बाद में इस धन को आयातक देश को अपशिष्ट प्रबंधन
के लिए भेज दिया जाए। लेकिन, समस्या यह है कि अधिकांश बड़ी कंपनियां यह स्वीकार नहीं करतीं कि वे कचरे का उत्पादन कर रही हैं। फ्रांस में ऐसा नियम है, लेकिन हर कपड़े पर एक छोटी राशि ही वसूली जाती है। ब्रिटेन भी ऐसी नीति बनाने पर विचार कर रहा है।
भारतीय ग्राहक हैं जागरूक
पिछले वर्ष आई मैकिंसे की रिपोर्ट के अनुसार भारत पहले से इस्तेमाल किए गए कपड़ों का प्रमुख आयातक है। वर्ष 2020 में यहां दो अरब रुपए से अधिक के सेकंड-हैंड कपड़ों का आयात किया गया। ये कपड़े पहनने योग्य नहीं होते। इन्हें धागे में बदलकर दुनियाभर में फिर से निर्यात कर दिया जाता है। वहीं भारतीय ग्राहक, फास्ट फैशन की पर्यावरणीय और मानवीय लागतों के बारे में जागरूक हैं।