चित्तौड़गढ़ दुर्ग पर गिरी आकाशीय बिजली नहीं पहुंचाती नुकसान, गर किया गया होता यह काम…

दरअसल यह ऐतिहासिक इमारत 1301 ईस्वी में बनी थी, जिसे प्रथम जैन तीर्थंकर भगवान आदिनाथ को समर्पित किया गया था. इसी के पास एक जैन मंदिर स्थित है, जिस का रखरखाव जैन मंदिर प्रबंध कारिणी समिति दुर्ग द्वारा किया जाता है. प्रबंध कारिणी समिति के अध्यक्ष महेंद्र टोंगिया कहते हैं कि दोनों ही इमारतें ऐतिहासिक महत्व की होने के साथ ही जैन समाज की आस्था का केंद्र हैं, लेकिन इसे लेकर लापरवाही बरती गई है.
महेंद्र टोंगिया के मुताबिक, सालों पहले खराब हुए तड़ित चालक को लेकर संस्था नया तड़ित चालक लगाने की मांग साल 2013 से लगातार उठा रही है, लेकिन पुरातत्व विभाग इसके प्रति कोई गंभीरता नहीं दिखा रहा. आलम यह है कि विभाग इमारतों को अपनी बताता है और लोगों को रखरखाव करने से रोकता है. इस कीर्ति स्तंभ को लेकर परिचालक लगाए जाने की मांग उठाए जाने के बाद बजट नहीं होने की स्थिति में समाज के लोग राशि भी खर्च करने को तैयार हैं और पहले भी गंदगी की समस्या के निदान के लिए समाज के लोगों ने राशि खर्च कर इस इमारत की खिड़कियों पर जालियां लगवाई थीं.
जैन आस्था का ऐतिहासिक कीर्ति स्तंभ लापरवाही के चलते आकाशीय बिजली का शिकार होकर टूट गया है. जो जाहिर करता है कि ऐतिहासिक इमारतों को लेकर भले ही भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग अपना होने के दावे करता है और लोगों को इन इमारतों को देखने के लिए मोटी राशि वसूल करता है, बावजूद अधिकारियों की लापरवाही चरम पर है और जवाबदेही उच्च अधिकारियों पर डालकर लापरवाही को छुपाने की कवायद की जा रही है.
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