स्कूल में बच्चों के बालों में जू ढूंढ रहे टीचर्स, पढ़ाना-लिखाना छोड़, कर रहे पेट के कीड़ों की जांच

कहते हैं कि जिसका जो काम होता है, उसे वही करना चाहिए. अगर अपने फील्ड को छोड़कर इंसान दूसरे काम करता है तो उसे नुकसान ही झेलना पड़ता है. लेकिन ऐसा लगता है कि राजस्थान सरकार इस बात को नहीं समझती. तभी तो जो काम डॉक्टरों की देखरेख में किया जाना चाहिए, उसे सरकारी स्कूल के टीचर्स को करना पड़ रहा है. सरकारी स्कूलों में चल रहे शाला स्वास्थ्य परीक्षण कार्यक्रम अब टीचर्स के लिए मुसीबत बन चुका है.
प्रदेश में 31 अगस्त तक शाला स्वास्थ्य परीक्षण कार्यक्रम चलाया जा रहा है. इसके तहत सैंकड़ों स्कूलों में बच्चों के बेसिक हेल्थ चेकअप किये जा रहे हैं. इसमें बच्चों के सिर में जूं, शरीर पर चकते और छात्राओं के पीरियड्स से जुड़े जांच करने की जिम्मेदारी दी गई है. आमतौर पर ये सारे जांच डॉक्टर्स की निगरानी में किये जाते हैं. लेकिन इस कार्यक्रम के तहत टीचर्स के ऊपर ही ये जिम्मेदारी डाल दी गई है. टीचर्स स्कूल में पढ़ाने की जगह बच्चों के सिर में जूं ढूंढ रहे हैं.
करने पड़ रहे ऐसे कामइस कार्यक्रम के तहत बच्चों का मेडिकल चेकअप करना है. इसमें बच्चों की पलकों को नीचे करके आंखों के सफेद भाग स्क्लेरा में पीलेपन और झिल्ली को देखकर पीलिया और खून की कमी है या नहीं, ये बताने को कहा गया है. इसके अलावा बच्चों की नजर कमजोर है या नहीं, उन्हें दिल की बीमारी है या नहीं, या फिर शरीर की गांठ का पता लगाने को भी कहा टीचर्स का कहना है कि ये सारे जांच एक्सपर्ट कर सकते हैं. टीचर्स को इसकी जानकारी कैसे हो पाएगी.
पढ़ाई पर पड़ रहा असरइस कार्यक्रम के तहत अगर जांच के दिन कोई बच्चा स्कूल नहीं आता तो शिक्षक को उसके घर जाकर जांच करनी है. टीचर्स का कहना है कि इन सभी चीजों से उनका समय बर्बाद हो रहा है. पढ़ाने की जगह इन गैर शैक्षणिक कार्यों में ही वो उलझकर रह जा रहे हैं. इस वजह से स्कूलों में नामांकन और पढ़ाई दोनों ही प्रभावित हो रही है. टीचर्स ने स्कूलों में स्वास्थ्य कैंप लगाकार इन जांचों को करवाने की मांग की है. उनका कहना है कि ये काम डॉक्टर्स का है ना कि टीचर्स का.
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FIRST PUBLISHED : August 24, 2024, 11:54 IST