मुफ्त में मिलने वाली इस घास के लिए अब खर्च करने पड़ रहे हैं लाखों रुपये, हैं कई फायदे

रिपोर्ट- कुलदीप छंगाणी
जैसलमेर: पश्चिम राजस्थान के जैसलमेर और बाड़मेर में होने वाली पशुओं के लिए उपयोगी सेवण घास बीते कुछ सालों से लुप्त होने के कगार पर आ गई है. करीब 15 साल पहले पशुओं के लिए प्रोटीन युक्त इस घास को चारागाह जैसलमेर के लाठी गांव सहित आस-पास के क्षेत्रों में आसानी से देखा जा सकता था. अब ऐसा नहीं है और बीते कुछ सालों से खेती में मशीनरी के प्रयोग और अतिक्रमण के कारण सेवण के चारागाह सिमटते जा रहे हैं. लुप्त हो रही मरुस्थल की इस वन संपदा को बचाने के लिए जैसलमेर की लाठी पंचायत ने मुहिम शुरू की है.
अब पंचायत की ही 200 बीघा गोचर भूमि पर सेवण घास के चारागाह को बीते तीन सालों से विकसित करने का प्रयास किया जा रहा है. तीन साल बाद अब इस घास का चारागाह फैलने लगा है और अब ये घास हरी-भरी दिखाई देने लगी है. जैसलमेर के लाठी ग्राम पंचायत की गोचर भूमि पर पंचायत ने दो चरणों में सेवण के 3,000 पौधों को विकसित किया है.
सेवण घास विकसित करने में आया इतना खर्चसेवण के इन पौधों को विकसित करने में पंचायत का 44.24 लाख रुपए खर्च हुआ है. पंचायत ने यह कार्य नरेगा योजना के अंतर्गत करवाया है. लाठी पंचायत के उप सरपंच 40 वर्षीय भारस खान लोकल 18 को बताते हैं कि “इस चारागाह को विकसित करने में कुल 46.6 लाख रुपए की लागत आई है, जिसमें 26 लाख रुपए केवल सेवण घास के पौधों को लगाने में खर्च हो गए हैं.
वे आगे बताते हैं कि कभी प्राकृतिक रूप से अपने आप उग आने वाली इस घास के बीज को अब खरीदना पड़ रहा है और वो बीज बाजार में बहुत मुश्किल से मिलता है. खान बताते हैं कि उन्होंने हाल ही में इसी चारागाह में एक पेड़ मां के नाम अभियान के अंतर्गत 1,500 पौधों को भी लगाया है जो अब बारिश के बाद बढ़ने लगे है.
सेवण घास की उपयोगिता को देखते हुए केंद्र और राज्य सरकार ने विगत सालों में इसके संरक्षण के लिए प्रयास भी शुरू किए हैं. हालांकि, ये प्रयास प्राकृतिक रूप से बने मैदानों में नहीं होने से पूरी तरह से सफल नहीं हो पा रहे हैं. सेवण को बचाने के लिए वन विभाग, कृषि अनुसंधान विभाग कृषि विभाग अब तक करोड़ों रुपए खर्च करने के बाद भी वो सफलता हासिल नहीं कर पाई है जो वर्षों पूर्व प्रकृति हमें निशुल्क प्रदान करती थी.
सेवण घास के लुप्त होने का कारणसेवण घास के लुप्त होने के कारणों पर बात करते हुए वन्य जीव विशेषज्ञ और नई दिल्ली के गुरु गोबिंद सिंह इंद्रप्रस्थ विश्विद्यालय में सहायक प्रोफेसर सुमित डूकिया बताते हैं कि जैसलमेर में गोचर और ओरण की भूमि पर अतिक्रमण, अकाल के दौर में पशुओं द्वारा इसकी अधिक चराई और बीते कुछ सालों से क्लाइमेट चेंज के कारण सेवण घास लुप्त होने लगी है. वे बताते हैं सेवण घास के लिए 200 एमएम से अधिक बारिश नहीं होनी चाहिए लेकिन, बीते कुछ सालों से जैसलमेर में बारिश अधिक होने लगी है जिस कारण प्राकृतिक रूप से भी सेवण घास खत्म हो रही है .
रेगिस्तान में वनस्पति बहुत ही कम मिलती हैं. जो भी होती हैं वो कंटीली होती हैं. पोषण लायक वनस्पति नहीं होने से रेगिस्तान में दूर-दूर तक जीव नहीं मिलते हैं लेकिन, सेवण घास सामान्य घास की तरह हरी व पौष्टिक होती हैं. यह दस साल तक भंडारण करके रखने के बावजूद खराब नही होती हैं और न ही इसके पोषक तत्वों में कमी आती है. इसलिए वनस्पति शास्त्र में इसे किंग ऑफ डेजर्ट नाम से पुकारते हैं. आपको बता दें कि सेवण घास की रेत के टीब्बों के स्थिरीकरण, चारागाह विकास कार्यक्रमों, रेगिस्तान के प्रसार को रोकने में तथा कच्चे झोंपों पर छत डालने में भी अहम भूमिका है.
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FIRST PUBLISHED : September 18, 2024, 21:33 IST