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जिस पर्व पर खिल उठता है उत्तराखंड, बच्चों की टोली गाती है ‘फूलदेई, छम्मा देई’! जानिए इस अनोखे पर्व की परंपरा

Last Updated:March 14, 2025, 15:41 IST

फूलदेई उत्तराखंड का पारंपरिक लोकपर्व है, जो चैत्र माह के पहले दिन मनाया जाता है. बच्चे रंग-बिरंगे फूल सजाते हैं और घर-घर जाकर फूलदेई, छम्मा देई गाते हैं.X
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उत्तराखंड में धूमधाम से मनाया जाता है लोकपर्व फूलदेई 

हाइलाइट्स

फूलदेई उत्तराखंड का पारंपरिक लोकपर्व है.बच्चे रंग-बिरंगे फूल सजाकर फूलदेई, छम्मा देई गाते हैं.यह पर्व वसंत ऋतु के आगमन का प्रतीक है.

नैनीताल: उत्तराखंड की सुरम्य वादियों में हर साल एक खास लोकपर्व मनाया जाता है, जिसे ‘फूलदेई’ के नाम से जाना जाता है. यह पर्व प्रकृति और संस्कृति को जोड़ता है और बच्चों के लिए बेहद खास होता है. फूलों की खुशबू से महकता यह त्योहार चैत्र माह के पहले दिन (संक्रांति) को मनाया जाता है, जो आमतौर पर मार्च के बीच में आता है. इस साल फूलदेई का त्योहार उत्तराखंड में 14 मार्च और कुछ स्थानों पर 15 मार्च को मनाया जाएगा. इतिहासकारों के अनुसार, यह पर्व प्राचीन काल से मनाया जाता रहा है और इसका संबंध उत्तराखंड के ग्रामीण समाज में सामूहिकता व प्राकृतिक संसाधनों के सम्मान से है.

उत्तराखंड की पारंपरिक धरोहर है फूलदेईनैनीताल निवासी डॉ. ललित तिवारी बताते हैं कि फूलदेई गढ़वाल और कुमाऊं क्षेत्रों में धूमधाम से मनाया जाने वाला पारंपरिक लोकपर्व है. इस दिन छोटे बच्चे सुबह जल्दी उठकर बगीचों और जंगलों से रंग-बिरंगे फूल तोड़ कर लाते हैं और उन्हें गांव व कस्बों के घरों की दहलीज पर सजाते हैं. यह परंपरा सुख-समृद्धि और मंगलकामना से जुड़ी होती है. बच्चे घर-घर जाकर “फूलदेई, छम्मा देई” गाकर आशीर्वाद मांगते हैं और बदले में उन्हें चावल, गुड़, पैसे या उपहार दिए जाते हैं.फूलदेई पर्व की जड़ें उत्तराखंड की कृषि परंपराओं से भी जुड़ी हुई हैं. यह त्योहार वसंत ऋतु के आगमन का प्रतीक है, जब पेड़-पौधे नई कोंपलों और फूलों से लद जाते हैं. इस दिन घरों की चौखट पर फूल सजाने का अर्थ होता है प्रकृति का स्वागत करना और अपने घर-परिवार के लिए खुशहाली की कामना करना.

क्या है फूलदेई के पीछे की कथा?फूलदेई पर्व से कई किवदंतियां जुड़ी हुई हैं. स्थानीय लोगों के अनुसार, इस पर्व की एक प्राचीन कथा है, जिसके अनुसार पहाड़ों में घोघाजीत नामक राजा का राज्य था. राजा की एक पुत्री थी, जिसका नाम घोघा था. घोघा प्रकृति प्रेमी थी, लेकिन एक दिन वह अचानक लापता हो गई. उसकी याद में राजा उदास रहने लगे. तब कुलदेवी ने राजा को सुझाव दिया कि वह गांव के बच्चों को चैत्र अष्टमी पर बुलाएं और उनसे फ्योंली (Pyoli) और बुरांस (Buransh) के फूल घर की देहरी पर चढ़वाएं. ऐसा करने से घर में खुशहाली आएगी. तब से फूलदेई पर्व मनाने की परंपरा शुरू हो गई।

कैसे मनाया जाता है यह पर्व?प्रोफेसर तिवारी बताते हैं कि फूलदेई के दौरान बच्चे टोलियों में घर-घर जाकर गीत गाते हैं और फूल बिखेरते हैं. दिनभर उत्सव का माहौल रहता है और पारंपरिक पकवान बनाए जाते हैं, जिनमें ‘साइत’ और ‘स्वाला’ प्रमुख हैं. इस पर्व की खास बात यह है कि यह पूरी तरह से बच्चों के उत्साह और खुशियों से जुड़ा होता है.आज के इस आधुनिक दौर में भी उत्तराखंड में यह पर्व पूरी श्रद्धा और खुशी के साथ मनाया जाता है. यही वजह है कि फूलदेई सिर्फ एक त्योहार नहीं, बल्कि पहाड़ों की सांस्कृतिक धरोहर है, जो आने वाली पीढ़ियों को प्रकृति से प्रेम करना सिखाती है.


Location :

Nainital,Uttarakhand

First Published :

March 14, 2025, 15:41 IST

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जिस पर्व पर खिल उठता है उत्तराखंड, बच्चे गाते हैं ‘फूलदेई, छम्मा देई’!

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