खुशखबरी! घर-घर पहुंचेगी पशुपालन विभाग की टीम, लाखों पशुओं को लगाई जाएगी वैक्सीन
पशुपालन विभाग की ओर से पशुओं को खुरपका और मुंहपका बीमारी से बचाने के लिए 26 अगस्त से एक अभियान शुरू किया जाएगा. इस दौरान पशुपालन विभाग की टीम घर-घर जाकर टीकाकरण करेगी. यह अभियान 25 अक्टूबर तक चलेगा. झुंझुनूं पशुपालन विभाग के उपनिदेशक सुरेश ने बताया कि जिले में 6 लाख 16 हजार 206 पशुओं का टीकाकरण किया जाएगा. इसके लिए 5 लाख 13 हजार 400 वैक्सीन पहले ही आ चुकी हैं. इस टीकाकरण के लिए पशुपालकों से कोई शुल्क नहीं लिया जाएगा, और यह अभियान दो महीने तक चलेगा.
टीकाकरण के साथ-साथ पशुओं के टैग लगाने का काम भी किया जाएगा. केंद्र सरकार ने पशुओं का ऑनलाइन डेटाबेस तैयार करने के लिए यह टैग लगाने की योजना शुरू की है. इस योजना के तहत पशुओं की नस्लों की पहचान कर उनके स्वास्थ्य कार्ड बनाए जा रहे हैं. पहचान के लिए पशुओं के कान पर पीले रंग का टैग लगाया जाता है. सरकार की विभिन्न योजनाओं का लाभ पंजीकृत पशुओं को प्राथमिकता के आधार पर दिया जाएगा.
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टैगिंग से होगी आसानी
टैग लगे पशुओं के लिए दवाओं की सुविधा भी मुहैया कराई जाएगी. इस योजना में फसल बीमा की तरह पशुओं का भी बीमा होता है, लेकिन इसके लिए टैगिंग अनिवार्य है. टैग लगे पशुओं की जन्म से लेकर मृत्यु तक की सारी जानकारी ऑनलाइन रहेगी, जिससे खोए या चोरी हुए पशुओं का पता लगाना आसान हो जाएगा. इसके साथ ही, पशुओं की ऑनलाइन खरीद-फरोख्त भी आसानी से संभव हो सकेगी.
गाय और भैंस में प्रमुख रूप से होने वाली खुरपका-मुंहपका बीमारी जानलेवा हो सकती है और यह एक पशु से दूसरे पशु में तेजी से फैलती है. इस कारण पशुपालन विभाग प्रदेश में इस बीमारी का पूरी तरह उन्मूलन करने के लिए प्रयासरत है. इस बीमारी से बचाव के लिए साल में दो बार टीकाकरण किया जाता है. पहले, इस बीमारी से पशुओं में जानलेवा समस्याएं उत्पन्न होती थीं, लेकिन अब इसका उन्मूलन हो चुका है.
क्या है लक्षण
इस बीमारी में गाय और भैंस के पैरों के खुर में सूजन आ जाती है, घाव हो जाते हैं, मुंह में छाले बन जाते हैं, और लार टपकना शुरू हो जाती है. इस बीमारी से ग्रसित पशु चारा-पानी छोड़ देता है और दूध देना बंद कर देता है. पशु लंगड़ा कर चलने लगता है और उसे तेज बुखार हो जाता है. फेफड़ों में संक्रमण के कारण सांस लेने में परेशानी होती है, जिससे मवेशी की मौत हो सकती है.
खेतों से सरसों और चने की कटाई के बाद फरवरी और मार्च माह में एफएमडी वायरस का प्रभाव अधिक होता है. गाय और भैंस के अलावा, भेड़ और बकरियों में भी यह रोग होता है, लेकिन उन पर इसका असर कम होता है. इस रोग से पीड़ित पशु को अन्य पशुओं से अलग रखना चाहिए. टीकाकरण के बाद भी, पशुओं में दो-तीन दिन तक दूध की मात्रा कम हो सकती है.
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Tags: Animal husbandry, Local18
FIRST PUBLISHED : August 21, 2024, 13:49 IST