शेयरधारकों ने रिजेक्ट कर दिया आईडीएफसी बैंक का प्रस्ताव, अपने निवेशक को बोर्ड में शामिल करना चाहती थी कंपनी

Last Updated:May 19, 2025, 12:13 IST
IDFC Bank Row : प्राइवेट सेक्टर के आईडीएफसी बैंक ने अपने एक बडे़ निवेशक को बोर्ड में शामिल करने का प्रस्ताव रखा, जिसे सार्वजनिक शेयरधारकों ने ठुकरा दिया है. मतदान में बहुमत न मिलने के कारण बैंक की मंशा भी पूर…और पढ़ें
आईडीएफसी बैंक के शेयरधारकों ने बोर्ड के प्रस्ताव को खारिज कर दिया है.
हाइलाइट्स
आईडीएफसी बैंक के प्रस्ताव को शेयरधारकों ने ठुकराया.वारबर्ग पिंकस को बोर्ड में शामिल करने का प्रस्ताव अस्वीकार.प्रस्ताव को पारित करने के लिए 75% वोटों की आवश्यकता थी.
नई दिल्ली. कॉरपोरेट जगत में ऐसा पहला उदाहरण है जब सार्वजनिक शेयरधारकों ने किसी कंपनी के इक्विटी निवेशकों को कोई पद हासिल करने से रोक दिया है. यह मामला पेश आया है आईडीएफसी बैंक में, जहां बैंक के शेयरधारकों ने ग्लोबल प्राइवेट इक्विटी प्रमुख वारबर्ग पिंकस को अपने सहयोगी करंट सी इन्वेस्टमेंट बीवी के जरिये बैंक के बोर्ड में शामिल करने प्रस्ताव को ठुकरा दिया है. इसका मतलब है कि बैंक के इक्विटी निवेशक को उसके बोर्ड में कोई जगह नहीं मिलेगी, जबकि बैंक में निवेश करने वाले मामूली निवेशकों यानी सार्वजनिक शेयरधारकों ने इसमें अड़ंगा लगा दिया है. १
इस पर फैसला करने के लिए हुई वोटिंग के दौरान IDFC फर्स्ट बैंक के केवल 64.10 फीसदी शेयरधारकों ने ही प्राइवेट इक्विटी फर्म वारबर्ग पिंकस को अपने सहयोगी करंट सी इन्वेस्टमेंट्स बीवी के जरिये बैंक के बोर्ड में एक गैर-सेवानिवृत्त, गैर-कार्यकारी निदेशक को नामित करने की अनुमति दी है. एक विशेष प्रस्ताव को पारित करने के लिए कम से कम 75 फीसदी वोटों की जरूरत होती है. ऐसे में फिलहाल वारबर्ग पिंकस अपने प्रतिनिधि को बैंक के बोर्ड में नियुक्त नहीं कर पाएगा, क्योंकि उसे पूर्ण बहुमत नहीं मिला है.
संस्थागत निवेशकों ने भी किया विरोधवोटिंग प्रक्रिया के दौरान संस्थागत निवेशकों ने भी इस प्रस्ताव के खिलाफ मतदान किया है. संस्थागत निवेशकों की ओर से डाले गए 76 फीसदी से अधिक वोटों में से 51 फीसदी से अधिक वोट विरोध में डाले गए. संस्थागत शेयरधारकों का यह विरोध निर्णायक साबित हुआ, भले ही खुदरा (गैर-संस्थागत) शेयरधारकों ने लगभग 99 फीसदी वोटों के साथ इस कदम का समर्थन किया था.
नियम बदलने की थी मांगप्रस्ताव में IDFC फर्स्ट बैंक के अनुच्छेदों में संशोधन करने की मांग की गई थी, ताकि Currant Sea Investments को औपचारिक रूप से एक बोर्ड सदस्य नियुक्त करने का अधिकार दिया जा सके. यह अधिकार आमतौर पर बड़े रणनीतिक या वित्तीय निवेशकों के लिए एक मानक अपेक्षा होती है, खासकर उन कंपनियों में जहां उन्होंने महत्वपूर्ण पूंजी निवेश की होती है. कहने का मतलब यह है कि बडे़ निवेशकों को कंपनी के बोर्ड में शामिल करने अधिकार मिल जाता है.
2 प्रस्तावों पर निवेशकों ने लगाई मुहरशेयरधारकों ने भले ही बोर्ड में शामिल करने के प्रस्ताव को खारिज कर दिया है, लेकिन दो अन्य प्रस्तवों को हरी झंडी भी दे दी है. इसमें से एक प्रस्ताव बैंक की अधिकृत शेयर पूंजी के पुनर्वर्गीकरण से संबंधित था, जबकि दूसरा प्रस्ताव 7,500 करोड़ रुपये के अनिवार्य रूप से परिवर्तनीय संचयी वरीयता शेयरों को प्राथमिकता के आधार पर जारी करने की मंजूरी के लिए था. इन दोनों प्रस्तावों को 99 फीसदी से अधिक वोट मिले.
इस अस्वीकृति के क्या हैं मायनेवॉरबर्ग के बोर्ड नामांकन की अस्वीकृति बैंक के भीतर निवेशकों की चिंताओं और निजी इक्विटी हितधारकों और सार्वजनिक शेयरधारकों के बीच पनप रहे अविश्वास को दर्शाता है. यह निजी बैंक में शेयरधारकों के बीच असहमति का पहला बड़ा उदाहरण भी है. इससे पहले साल 2018 में ऐसा ही मंजर एचडीएफसी बैंक में देखने को मिला था. तब बैंक के 22.64 फीसदी शेयरधारकों ने दीपक पारेख को गैर-कार्यकारी निदेशक के रूप में नियुक्त किए जाने के खिलाफ मतदान किया था.
Pramod Kumar Tiwari
प्रमोद कुमार तिवारी को शेयर बाजार, इन्वेस्टमेंट टिप्स, टैक्स और पर्सनल फाइनेंस कवर करना पसंद है. जटिल विषयों को बड़ी सहजता से समझाते हैं. अखबारों में पर्सनल फाइनेंस पर दर्जनों कॉलम भी लिख चुके हैं. पत्रकारि…और पढ़ें
प्रमोद कुमार तिवारी को शेयर बाजार, इन्वेस्टमेंट टिप्स, टैक्स और पर्सनल फाइनेंस कवर करना पसंद है. जटिल विषयों को बड़ी सहजता से समझाते हैं. अखबारों में पर्सनल फाइनेंस पर दर्जनों कॉलम भी लिख चुके हैं. पत्रकारि… और पढ़ें
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शेयरधारकों ने रिजेक्ट कर दिया आईडीएफसी बैंक का प्रस्ताव, क्या है इसका मतलब