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कहानी राजस्थान की उस ‘मोनालिसा’ की, जिसकी मोहब्बत की गाथा हुई अमर, 10 साल की दासी से बनी प्रेमिका

Agency: Rajasthan

Last Updated:February 14, 2025, 15:21 IST

राजस्थान की भूमि प्रेम से कभी बंजर नहीं रही. रेतीले धोरों पर प्रेम कथाओं का जन्म भी हुआ और यह प्रेम कहानियां परवान भी चढ़ी. कुछ इसी तरह की प्रेम कथा है जोधपुर रियासत का हिस्सा रहे किशनगढ़ के राजा सांवत सिंह और उन…और पढ़ेंX
बनी
बनी ठनी चित्रशैली 

हाइलाइट्स

किशनगढ़ के राजा सांवत सिंह और दासी बनी ठनी की प्रेम कथा प्रसिद्ध है.बनी ठनी को राजस्थान की मोनालिसा कहा जाता है.सावंत सिंह और बनी ठनी का प्रेम निश्चल और कृष्ण भक्ति पर आधारित था.

अजमेर:- प्यार सिर्फ आज ही नहीं, बल्कि इतिहास के पन्नों में भी देखने को मिलता है . इतिहास में कई ऐसे प्रेमी जोड़े हैं, जिनकी प्रेम कथाएं इतिहास के पन्नों में सिमटी हुई हैं और इतिहास के इन्हीं पन्नों में गवाही मिलती है. एक ऐसी प्रेम कथा है किशनगढ़ के नागरीदास और बनी ठनी की. यह एक ऐसी प्रेम कहानी है, जिसमें न केवल सौंदर्य बोध नजर आता है, बल्कि यह प्रेम कहानी साहित्य और कला प्रेम की अनोखी दास्तान भी है.

राजस्थान की वीरभूमि का नाम सुनते ही शौर्य गाथाएं जहन में उभर आती हैं. इस वीर धरा ने कई योद्धाओं को अपने आंचल में पाल कर बड़ा किया. लेकिन यह भी इतिहास का एक सच है कि राजस्थान की यह भूमि प्रेम से कभी बंजर नहीं रही. रेतीले धोरों पर प्रेम कथाओं का जन्म भी हुआ और यह प्रेम कहानियां परवान भी चढ़ी. कुछ इसी तरह की प्रेम कथा है जोधपुर रियासत का हिस्सा रहे किशनगढ़ के राजा सांवत सिंह और उनकी दासी बनी ठनी की.

एक 10 साल की दासी को लेकर आए महलचित्रकार मनोज लोकल 18 को बताते हैं कि इस कहानी की शुरुआत तब होती है, जब संवत सिंह के पिता राज सिंह किशनगढ़ के गद्दीनशी थे. उस समय वह दिल्ली से एक दस साल की दासी को लेकर आए थे. यह वो दौर था, जब दासी को पासवान कहा जाता था और राजाओं की कोशिश यही होती थी कि दासिया कम उम्र की हो, ताकि उन्हें राजभवन के माहौल के अनुरूप ढाला जा सके. राज सिंह ने भी बनी ठनी नाम की इस दासी को खरीद कर राजभवन पहुचाया.

तब किसी को पता नही था कि यह कम उम्र दासी युवराज के इतना निकट आएगी कि इसका नाम भले ही पासवान के रूप में पहचाना जाए, लेकिन यह भविष्य के राजा के दिल पर राज करेगी. राजभवन के माहौल में इस दासी को राजा के मनोरंजन के लिए साहित्य और गायन में पारंगत किया गया. अब इसे संयोग ही कहा जा सकता है कि युवराज सावंत सिंह की रूचि भी साहित्य और काव्य में थी. नतीजा ना जानें कब ठनी और सावंत सिंह के दिलों की दूरियां कम होती गई और दोनों एक दूसरे के प्रति आकर्षित हुए.

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वासना नहीं, केवल निश्चल प्रेमचित्रकार ने Local 18 को आगे बताया कि राजा सावंत सिंह ने ही दासी का चित्र बनवाया था, जो बणी ठणी के नाम से विख्यात हुआ. इसे राजस्थान की मोनालिसा भी कहा जाता है. सावंत सिंह और बनी ठनी की यह प्रेम कहानी एक चित्र के रूप में सदियों से सराही जा रही है. माना जाता है कि जब सावंत सिंह और बनी ठनी का प्रेम परवान चढ़ा, तो चर्चाएं होने लगी. लेकिन इस प्रेम कहानी की जड़ में वासना नहीं, केवल निश्चल प्रेम था. राजा सांवत सिंह जब वृंदावन गए, तब कृष्ण भक्ति के कारण ही बणी ठणी भी उनके साथ रही. वृंदावन में सावंत सिंह नागरीदास बन गए और उनके साथ कृष्ण भक्ति में बणी ठणी का जीवन भी सफल हो गया.


Location :

Ajmer,Rajasthan

First Published :

February 14, 2025, 15:21 IST

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दिल छूने वाली प्रेम कहानी; 10 साल की दासी बनी राजा की मोहब्बत, अमर हो गई गाथा

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