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Black Fungus: इन राज्यों में अब आंख और दिमाग के बाद जबड़े में भी हो रहा है ब्लैक फंगस, क्या कहते हैं एक्सपर्ट

नई दिल्ली. भारत के सभी 28 राज्यों और तकरीबन 5 केंद्रशासित प्रदेशों में अभी भी ब्लैक फंगस (Black Fungus) यानी म्यूकोरमाइकोसिस (Mucormycosis) के मामले आने बंद नहीं हुए हैं. हालांकि, दिल्ली-एनसीआर सहित देश के दूसरे कुछ हिस्सों में बीते कुछ दिनों में ब्लैक फंगस के मामले में कुछ कमी आई है. एम्स के रिसर्च में दावा किया गया है कि कोरोना से उबरे मरीज ही ब्लैक फंगस के चपेट में ज्यादा आए हैं. बता दें कि देश में कोरोना की दूसरी लहर कमजोर पड़ रही है, लेकिन ब्लैक फंगस के कई मरीजों का इलाज अभी भी देश के कई सरकारी और गैरसरकारी अस्पतालों में चल रहा है. डॉक्टरों के मुताबिक, ‘ब्लैक फंगस का इलाज लंबा चलता है. इसकी दवाई का डोज देने में ही मरीज को तकरीबन 20 दिन लग जाते हैं. इसी वजह से ब्लैक फंगस के मरीज ज्यादा दिन तक अस्पताल में रहते हैं. देश में अब तक तकरीबन 42, 000 ब्लैक फंगस के मामले सामने आ चुके हैं. इनमें से ज्यादातर मरीजों के दिमाग और नासिका तंत्र में संक्रमण हुआ है. लेकिन, बीते कुछ दिनों से यूपी, बिहार, मध्य प्रदेश, हरियाणा और हिमाचल प्रदेश जैसे राज्यों में लोगों के जबड़ों और शरीर के दूसरे अंगों में भी ब्लैक फंगस मिलने लगे हैं.

ब्लैक फंगस अब शरीर के दूसरे हिस्सों में भी फैलने लगा है

बता दें कि देश में ब्लैक फंगस के मरीजों का इलाज कुछ ही अस्पतालों में हो रहा है. ब्लैक फंगस को लेकर कई राज्य सरकारों ने कोई विशेष इंतजाम नहीं किया है. उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में तो स्थिति और भयानक है. अगर बिहार की बात करें तो सिर्फ पटना एम्स और आईजीआईएमस में ही ब्लैक फंगस के मरीजों का इलाज हो रहा है. यही हाल कमोबेश देश के दूसरे राज्यों का है. ब्लैक फंगस के मरीजों को इधर-उधर भटकने के अलावा दूसरा कोई चारा नहीं है.

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पिछले हफ्ते तक केंद्र सरकार के डेटा के मुताबिक देश में ब्लैक फंगस के 40, 845 मामले थे.

ब्लैक फंगस के कितने मरीज देश में हैं?
पिछले हफ्ते तक केंद्र सरकार के डेटा के मुताबिक देश में ब्लैक फंगस के 40, 845 मामले थे. इस डेटा के मुताबिक 31, 344 मामले दिमाग या फिर नासिका तंत्र में इन्फेक्शन से जुड़े थे. अगर बात दिल्ली करें तो एलएनजेपी अस्पताल में ब्लैक फंगस के तकरीबन 100 मरीज भर्ती हैं. बीते दो सप्ताह में इस अस्पातल से तकरीबन 15-20 मरीजों को छुट्टी मिल चुकी है. राजधानी दिल्ली में ब्लैक फंगस के लिए एम्स, आरएमएल, लेडी हार्डिंग और दिल्ली सरकार के अधीन एलएनजेपी, जीटीबी और राजीव गांधी सुपर स्पेशलिटी अस्पतालों में इलाज किया जा रहा है.

राज्यों के हालात क्या कहते हैं?
अगर बात बिहार की करें तो अब तक राज्य में ब्लैक फंगस से 80 से ज्यादा मरीजों की मौत हो चुकी है. तकरीबन 600 से अधिक मरीजों में ब्लैक फंगस की पुष्टि हो चुकी है. तकरीबन 200 मरीज ठीक हो चुके हैं और लगभग 330 मरीज अभी भी ब्लैक फंगस से जिंदगी के लिए जंग लड़ रहे हैं.

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कोरोना के बाद अब ब्लैक फंगस के मामले भी हरियाणा में तेजी से बढ़ रहे हैं. (सांकेतिक फोटो)

क्या कहते हैं एक्सपर्ट्स
ब्लैक फंगस के ज्यादातर मामले आंख और दिमाग में मिल रहे थे, लेकिन बीते कुछ दिनों से लोगों के जबड़ों और शरीर के दूसरे अंगों में भी ब्लैक फंगस मिलने लगे हैं. यूपी के गाजियाबद में तो बीते कुछ दिनों में जबड़े में ब्लैक फंगस के मरीजों की संख्या बढ़े हैं. ब्लैक फंगस की वजह से ज्यादातर मरीजों के जबड़े निकालने तक पड़े हैं. देश में डॉक्टरों की शीर्ष नियामक संस्था राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (NMC) बोर्ड के अध्यक्ष और ईएनटी डॉक्टर अचल गुलाटी कहते हैं, ‘ब्लैक फंगस होने के अलग-अलग कारण हैं. पहले नाक में होता है और फिर नाक से सायनेसज में फिर साइनेज से आंख और दिमाग में ब्लैक फंगस फैल जाता है. उपर का जबड़ा नीचे का जबड़ा, आंख, दिमाग सब एक दूसरे से जुड़े होते हैं. यही कराण है कि ये सारे भाग ब्लैक फंगस से प्रभावित हो जाते हैं. ब्लैक फंगस का यह नया रूप  काफी गंभीर है. फंगस फैल जाने के कारण कई मरीजों की आंख निकालनी पड़ रही तो कई मरीजों के जबड़े तक को निकाला जा रहा है. ब्लैक फंगस के कारण दांत, जबड़ों की हड्डी गलने लगती है. इसलिए इसे निकालना जरूरी हो जाता है.’

ये भी पढ़ें: दिल्ली के इन दो अस्पतालों में भी होगी COVID-19 Delta+ Variant की जांच

कितने लोगों की अब तक ब्लैक फंगस से मौत हो चुकी है
आंकड़ों की मानें तो देश में अब तक ब्लैक फंगस के चलते तकरीबन 3500 लोगों की मौत हो चुकी है. ब्लैक फंगस भी कोरोना की तरह ही हर आयु वर्ग के लोगों को अपना शिकार बना रहा है. केंद्र सरकार के मुताबिक ब्लैक फंगस की चपेट में आने वाले 32 प्रतिशत मरीजों की आयु 18 से 45 वर्ष तक थी. तकरीबन 17, 500 मरीज ऐसे रहे जिनकी आयु 45 से 60 साल के बीच भी थी. वहीं 60 साल से अधिक आयु वर्ग के तकरीबन 10, 100 लोग इसका शिकार हुए हैं.

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