किसानों के लिए किसी आतंक से कम नहीं है यह पौधा, बर्बाद कर देता है सारी फसल, भूलकर भी न जाएंगे इसके पास
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जयपुर. खेतों और बंजर जमीन पर उगने वाली गाजर घास एक आक्रामक खरपतवार है. यह खरपतवार घास कृषि, पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य पर हानिकारक प्रभाव डालती है. इस घास को किसानों की दुश्मन घास भी कहा जाता है. कृषि विशेषज्ञ के अनुसार यह घास भारत में 1950 के दशक में आए गेहूं के साथ आई थी. यह बहुत तेजी से फैलती है.
कृषि विशेषज्ञ बजरंग सिंह ने बताया कि गाजर घास फसलों के बीच उगकर उनके पोषक तत्वों को चुरा लेती है, जिससे फसल उत्पादन घटता है. इसके अलावा यह यह मिट्टी की उर्वरता को कम करती है और जैव विविधता को नुकसान पहुंचाती है. किसी व्यक्ति के संपर्क में आने से उसे एलर्जी, त्वचा रोग, सांस लेने में तकलीफ और बुखार जैसी समस्याएं हो सकती हैं.
गाजर घास के नियंत्रण का तरीकाबजरंग सिंह ने बताया कि गाजर घास की रोकथाम के लिए किसान को रबी फसल लेने के बाद में खाली खेतों में गर्मी की गहरी जुताई करनी चाहिए. इसके अलावा गाजर घास की पत्ती खाने वाली मैक्सिकन बीटल नाम के शत्रु कीट को पौधे पर छोड़ दें, घास को फूल आने से पहले उसे जड़ से उखाड़ फेंके, कंपोस्ट और वर्मी कंपोस्ट बनाने में प्रयोग करें. वहीं घास कुल की फसलों में गाजर घास के नियंत्रण को मेट्रिब्यूजिन नामक खरपतवार नाशक की तीन से पांच ग्राम मात्रा प्रति लीटर पानी की दर से मिलाकर फसल बुआई के 25 से 35 दिन पर छिड़काव करें. खाली खेतों एवं बंजर भूमि पर घास के समूल नष्ट को ग्लाइफोसेट नामक खरपतवार नाशी रसायन की 10 से 15 मिलीलीटर मात्रा को एक लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करने से निजात मिल सकती है.
FIRST PUBLISHED : December 12, 2024, 17:48 IST