This tradition of the royal family started again, after 40 years Jat and Rajput ate Khichra together – हिंदी

निखिल स्वामी/बीकानेर: देश में पहले रजवाड़े हुआ करते थे और राजा का शासन चलता था. अधिकतर एक ही परिवार और जाति के लोग पीढ़ी दर पीढ़ी राज करते रहते थे. हालांकि, लोकतंत्र में अब ऐसा कुछ भी नहीं है और किसी भी जाति-धर्म का व्यक्ति चुनाव लड़ सकता है और सत्ता में शामिल हो सकता है. सत्ता हासिल करने के लिए उन राज परिवार के लोगों को भी चुनाव लड़ना और जीतना पड़ता है जिनके पुरखे पीढ़ी दर पीढ़ी राज चलाते थे.
हालांकि, ऐसा नहीं है कि राजप्रथा के दौर में जातीय भेदभाव को दूर करने के प्रयास नहीं किए गए. कुछ राजाओं और रजवाड़ों ने इसे मिटाने के लिए अपने स्तर पर प्रयास किए थे. ऐसा ही एक प्रयास बीकानेर के राज परिवार ने शुरू किया था जो समय के साथ खत्म होता गया.
40 साल बाद शुरू हुई परंपराअब 40 साल बाद बीकानेर में एक बार फिर उस पुरानी परंपरा की शुरूआत हुई है जो दो समाजों में आई दूरियों को पाटने का काम करेगी. इस परंपरा के चालू रहने से सामाजिक सौहार्द भी मजबूत होगा. दरअसल, बीकानेर में 40 साल बाद एक बार फिर राजपूत और जाट समाज के लोगों ने एक जाजम पर बैठकर एक साथ मीठा खीचड़ा खाया.
जातीय बंधन की मुक्ति से जुड़ी थी परंपरामाना जाता है कि ये परंपरा बीकानेर की स्थापना से जुड़ी हुई है और इसका उद्देश्य ही जातीय बंधन की मुक्ति से जुड़ा हुआ था.
इन लोगों को किया गया आमंत्रितपूर्व उपराष्ट्रपति भैरोंसिंह शेखावत के नातिन और पूर्व विधायक नरपतसिंह राजवी के बेटे अभिमन्युसिंह राजवी ने बीकानेर राज परिवार की इस परंपरा को वापस शुरू करने का प्रयास किया है. इसमें जाट समाज की सात बिरादरी के लोगों के अलावा दोनों समाज के अन्य प्रमुख लोगों को भी न्यौता देकर बुलाया गया. इसके लिए लूणकरणसर तहसील के शेखसर और रुणिया बड़ा बास में रहने वाले पांडु गोदारों के अलावा, बेनीवाल, कस्वां, सहारण, सींवर, पूनिया और सियाग जातियों के लोगों को आमंत्रण दिया गया है.
ये था इतिहासइतिहास के पन्नों को खंगालें तो पता चला कि बीकानेर दुर्ग के नींव की ईंट करणी मां के अलावा गोदारा समाज ने रखी थी. बीकानेर के संस्थापक राव बीका और उनके समकालीन जाट सरदारों के बीच 1545 से पहले एक संधि हुई थी. इस संधि के कारण ही आगे जाकर राजपुताने में बीकानेर राज्य की स्थापना हुई जो आज विश्वभर में अपनी संस्कृति, इतिहास, शिल्पकला के लिए जाना जाता है.
इतिहासकार बताते हैं कि बीकानेर स्थापना के दिन दुर्ग के नींव की ईंट करणी माता के बाद, गोदारा जाटों ने रखी थी. उसी दिन राव बीका जी ने सभी जाट सरदारों को मीठा खीचड़ा खिलाकर अपने रिश्तों को और मजबूत करते हुए कहा था कि मेरे वंश में बीकानेर के आने वाले राजा का राजतिलक पांडुजी गोदारा के वंशजों के हाथ से ही होगा.
इसी रिश्ते की नींव के कारण सदियों तक बीकानेर के स्थापना दिवस, आखाबीज पर राव बीकाजी के वंशज अपने गांव के जाट सरदारों को अपने डेरे पर खीचड़ा जीमाते थे यानी खीचड़ा खिलाते थे.
संधि में हुई थी ये बातराव बीका और तत्कालिक जाट राजाओं के बीच हुई संधि में यह कहा गया था कि बीकाणे के राजसिंहासन पर विराजित होने वाले राजा का पहला तिलक करने का अधिकारी पांडु गोदारा के वंशजों का रहेगा. बताया जाता है कि राव बीकाजी से लेकर अंतिम शासक नरेंद्रसिंह का राजतिलक भी पांडु गोदारों ने ही किया था.
इसके बाद राजमाता के राजतिलक की परंपरा को ही बंद कर दिया गया था. विदित रहे कि 4 सितंबर 1988 को महाराजा करणीसिंह के देहांत के बाद महाराज कुमार नरेंद्रसिंह का राजतिलक किया गया था. महाराज कुमार नरेंद्रसिंह के बाद बीकानेर में किसी के राजतिलक को राजमाता सुशीला कुमारी ने मान्यता नहीं दी.
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FIRST PUBLISHED : May 10, 2024, 10:24 IST