मां की इच्छा पूरी करने के लिए बेटों ने तोड़े सारे रिवाज, गंगा नदी में नहीं…यहां किया अस्थियों का विसर्जन

दौसा:- सनातन संस्कृति में आमतौर पर किसी व्यक्ति की मौत के बाद अस्थियों का विसर्जन गंगा नदी में किया जाता है. लेकिन दौसा जिले के ठीकरिया गांव में एक किसान परिवार ने अनोखी पहल की है. यहां के एक किसान परिवार ने अपनी मां की अस्थियों का विसर्जन पारंपरिक तरीके से नहीं, बल्कि खेतों में किया. इस कदम के पीछे की वजह मां का खेती-बाड़ी से गहरा लगाव था और मां की इच्छा के अनुसार यह किया गया. मृतक महिला के बेटों ने बताया कि उनकी मां हमेशा कहती थीं कि मरने के बाद मेरी अस्थियों को खेतों में पानी बहाकर विसर्जित कर देना. मां का पूरा जीवन खेती-बाड़ी के बीच ही बीता था और वह चाहती थीं कि उनका शरीर उस मिट्टी का हिस्सा बने, जिससे उन्होंने अपना जीवन यापन किया.
खेत में अस्थियों का विसर्जन क्यों किया ?महिला के परिवार के सदस्य धर्म सिंह ने लोकल 18 को बताया कि किशोरी पटेल की धर्मपत्नी किशनी देवी का लगभग 85 वर्ष के अवस्था में 30 नवंबर 2024 को देहावसान हो गया था. किसान परिवार की महिला को खेती बाड़ी से बहुत लगाव था. उसने खेती के साथ-साथ अनेक फलदार तथा छायादार पेड़-पौधे लगाए. वह अपनी अस्थियों को उस मिट्टी का भाग बनाना चाहती थी, जिसका अन्न खाकर उसने अपने परिवार का भरण-पोषण किया था. बेटे जगनमोहन व विमल कुमार ने बताया कि मां की इच्छा अनुसार उनकी अस्थियों और राख का विसर्जन सोमवार को परिवार सहित मिलकर सभी सगे सम्बंधियों के साथ खेतों में पानी चलाकर कर दिया गया.
परिवार को पढ़ाया-लिखायाकिशनी देवी एक दृढ़ इच्छाशक्ति और बहुत मेहनतकश महिला थी, जिन्होंने खेतीबाड़ी में मेहनत कर अपने परिवार के सभी बच्चों को पढ़ाया-लिखाया. इनके परिवार में कई बच्चे शिक्षक हैं और उनका छोटा बेटा विमल कुमार भारतीय राजस्व सेवा (आईआरएस) का उच्च अधिकारी है. उनका पौत्र परीक्षित भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) का अधिकारी है.
परिवार के लोगों ने कही ये बातसभी परिवार वालों ने मां की इच्छा अनुसार ही उनकी अस्थियों का खेतों में विसर्जन करने के दौरान बताया कि वे परंपरा के नहीं, बल्कि आडंबर के खिलाफ हैं. लोग दिखावे के चक्कर में कर्मकांड, आडंबर के नाम पर व्यर्थ खर्च करते हैं. अगर खर्च करना ही है, तो बेटियों को शिक्षित करने में करना चाहिए. शिक्षित लोग ही समाज को सुधारने के लिए विभिन्न प्रयास करते हैं.
मृत्यु भोज नहीं कर गांव में करवाएंगे विकासउनके पुत्र विमल कुमार ने Local 18 को बताया कि मृत्यु भोज एक अनावश्यक खर्च है. मृत्यु भोज और अन्य अनावश्यक कर्मकांडों के बजाय, वो बालिका शिक्षा और गांव में पुस्तकालय के विकास पर पैसा खर्च करेंगे. इससे गांव की लड़कियों को पढ़ने का मौका मिलेगा और वह पढ़-लिखकर आगे बढ़ेगी और गांव का नाम रोशन करेंगी.
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FIRST PUBLISHED : December 4, 2024, 09:46 IST