tulsi garlands made in dholpur are being sold across the country including mahakal’s city ujjain and religious city vrindavan, women have become self-reliant

धौलपुर.धौलपुर की पहचान अब सिर्फ लाल बरूआ पत्थर तक सीमित नहीं रहेगी. जिले के सैंपऊ उपखंड के जगरियापुरा गांव की महिलाओं ने अपने कठिन परिश्रम और समर्पण से एक नए लघु उद्योग को जन्म दिया है, जिससे जिले को एक नई पहचान मिल रही है. मंजरी फाउंडेशन और नाबार्ड द्वारा रोजगार की तलाश में जुटी महिलाओं के लिए की जा रही मदद के तहत यहां तुलसी माला बनाने की यूनिट स्थापित की गई है.
नीरजा शर्मा, जो इस यूनिट से जुड़ी महिलाओं में से एक हैं, ने बताया कि वह मंजरी फाउंडेशन और नाबार्ड के साथ पिछले 12 वर्षों से जुड़ी हुई हैं. शुरुआत में उन्होंने एनजीओ और नाबार्ड की आर्थिक सहायता से पशु खरीदे थे, लेकिन बाद में मंजरी फाउंडेशन के प्रशिक्षण शिविर से जुड़कर तुलसी माला बनाने का काम सीखा.
महीने में होती है 6 से 7 हजार रुपए की कमाईआज इस यूनिट में 18 महिलाएं काम कर रही हैं, जो तुलसी से मोती और माला के लिए धागा बनाने का काम करती हैं. यूनिट में 9 मशीनें लगी हुई हैं, जिन्हें खरीदने में एनजीओ और नाबार्ड ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. महिलाएं इस काम से महीने में 6 से 7 हजार रुपए तक की कमाई कर लेती हैं.मछला, जो इस यूनिट की एक अन्य सदस्य हैं, बताती हैं कि वह घर के कामकाज निपटाने के बाद 4 से 5 घंटे तुलसी माला बनाने का काम करती हैं और इससे 6 से 7 हजार रुपए महीने की कमाई होती है.
इस यूनिट में बनाई गई तुलसी मालाएं धार्मिक नगरी वृंदावन और महाकाल की नगरी उज्जैन में बड़ी संख्या में बिकने के लिए जाती हैं. लगातार ऑर्डर मिलने से महिलाओं का रोजगार अब तेजी से बढ़ रहा है.धौलपुर, जो अब तक रेड स्टोन के लिए जाना जाता था, आने वाले दिनों में इन महिलाओं द्वारा बनाई जा रही तुलसी मालाओं से भी अपनी पहचान बनाएगा. यह पहल न केवल इन महिलाओं की आर्थिक स्थिति को सुदृढ़ कर रही है, बल्कि जिले को एक नई पहचान भी दिला रही है.
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FIRST PUBLISHED : August 13, 2024, 11:15 IST