Rajasthan

 unique tradition still prevails in Karauli on Holi, until the shield is filled, the spring of colours remains incomplete.

Last Updated:March 13, 2025, 15:04 IST

Holi 2025: करौली में होली से पहले ही बाजारों में गोबर, मिट्टी और कागज से बनी विशेष ढालें बिकने लगती हैं. यह ढाल परिवार की समृद्धि और सुरक्षा का प्रतीक मानी जाती है.होलिका दहन वाले दिन शुभ मुहूर्त में इन ढालों क…और पढ़ेंX
ढाल
ढाल के बिना अधूरी है करौली में होली 

राजस्थान के करौली में होली का त्योहार एक अनोखी और ऐतिहासिक परंपरा के साथ मनाया जाता है, जिसे ढाल भरने की परंपरा कहा जाता है. यह परंपरा करौली में सदियों पुरानी है. राजशाही जमाने से चली आ रही हैं.

यहीं वजह है कि करौली में होली से पहले ही बाजारों में गोबर, मिट्टी और कागज से बनी विशेष ढालें बिकने लगती हैं. यह ढाल परिवार की समृद्धि और सुरक्षा का प्रतीक मानी जाती है.होलिका दहन वाले दिन शुभ मुहूर्त में इन ढालों को मिठाइयों, लड्डुओं और खासतौर से खांड के खिलौनों जैसे हाथी-घोड़े वाली मिठाई से भरा जाता है. घरों की महिलाएं इन ढालों की पूजा करती हैं. परिवार के बड़े सदस्य इन्हें भरते हैं.

ढाल बनाने की प्रक्रियाकरौली में इस विशेष ढाल को बनाने वाले बहुत कम कारीगर बचे हैं. इसे पूरी तरह से हाथ से तैयार किया जाता है. एक ढाल को बनने में लगभग तीन दिन लगते हैं. यह ढालें मुख्य रूप से कुंभकार समाज के लोग बनाते हैं. होली के समय इनकी मांग बहुत अधिक होती है. बाजार में यह ढाल 20 से 50 रुपये तक बिकती है.

राजशाही युग से चली आ रही परंपरास्थानीय लोगों के अनुसार, यह परंपरा करौली के राजाओं के समय से चली आ रही है. जिस प्रकार युद्ध में सैनिकों की रक्षा के लिए ढाल का उपयोग किया जाता था. उसी तरह इस होली परंपरा में इसे परिवार की रक्षा का प्रतीक माना जाता है. महिलाएं इसे अपने सुहाग और बच्चों की लंबी उम्र के लिए भरती हैं.

फाल्गुन मेला और होली उत्सवकरौली में होली से पहले एक ऐतिहासिक “फाल्गुन मेला” भी लगता है. जिसमें आसपास के इलाकों से व्यापारी और पर्यटक आते हैं. यह मेला कई दिनों तक चलता है और इसमें पारंपरिक वस्त्र, मसाले और सजावटी सामान बेचे जाते हैं.करौली की यह अनोखी होली परंपरा इसे राजस्थान के अन्य शहरों से भी अलग बनाती है.

Location :

Karauli,Rajasthan

First Published :

March 13, 2025, 15:04 IST

homerajasthan

करौली में आज भी कायम है होली पर अनूठा रिवाज़, जब तक न भरे ढाल, अधूरी रहती रंगों की बहार..

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