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बीकानेर. आम तौर पर शादियों में लोग लाखों रुपये खर्च करते हैं. दूल्हा-दुल्हन की पोशाक और जूतों आदि पर सबसे ज्यादा खर्चा किया जाता है. वहीं बारात में दूल्हा घोड़ी पर सवार होकर बारात लेकर दुल्हन के घर पहुंचता है, लेकिन बीकानेर (Bikaner) के पुष्करण समाज (pushkarna samaj) का सावा जिसे शादियों का ओलंपिक भी कहा जाता है. इस दौरान दूल्हा नंगे पैर बारात लेकर ससुराल जाता हैं. वह सूट-बूट की जगह केवल बनियान पहने होता हैं. समाज के लोग आज भी अपनी 300 साल से ज्यादा पुरानी इस परंपरा का निर्वहन कर रहे हैं. बीकानेर में 18 फरवरी शुक्रवार को पुष्करणा सावा पर एक ही दिन में सैकड़ों शादियों (Unique Marriage Tradition of Rajasthan) में यह अनूठी परंपरा का निर्वाह होता दिखता है. दूल्हा जहां विष्णु स्वरूप माना जाता है, दुल्हन लक्ष्मी स्वरूपा. बैंड-बाजा की जगह शंख की ध्वनि और मांगलिक गीत गूंजते हैं.
शादी में खास बात यह रहती है कि पुष्करणा समाज के सभी रीति-रिवाजों और परम्पराओं के अनुसार विवाह की रस्म है. सावा देखने के लिए देश भर से समाज के लोग बीकानेर आते हैं. पुष्करणा सावे में मांगलिक रस्म ‘खिरोड़ा’ होती है जिसमें पापड़ पढ़े जाते है. महिलाएं शुभ मुहूर्त में बड़ पापड़ तैयार करती हैं. इनको कुमकुम से चित्रकारी से सजाती भी है. विवाह की रस्मों में वधू पक्ष की ओर से खिरोड़ा वर पक्ष के यहां पहुंचाया जाता है. वर पक्ष के यहां पूजन कार्यक्रम सम्पन्न होते है. गोत्राचार होता है. खिरोड़ा सामग्री में शामिल बड़ पापड़ को वर-वधू पक्ष के लोग पारम्परिक दोहो का गायन कर पापड़ बांचते हैं. यह महत्वपूर्ण रस्म है.
सबसे पहले बारात लेकर निकलने वाले दूल्हे को मिलता है इनाम
शहर का परकोटा मानो मंडप बना हुआ है, तो शहर के वाशिंदें बराती. हर गली-नुक्कड़ से बारातें निकली. इन बारातियों के स्वागत सत्कार में हर कोई भागीदार बनता है. शहर की तंग गलियों से लेकर मोहल्लों में महिलाओं और पुरुषों की भीड़ के बीच शादी की रस्मों का आयोजन किया गया. सैकड़ों साल पुरानी यह परंपरा सिर्फ बीकानेर में निभाई जाती है. यहां पुष्करणा समाज एक ही डेट पर शादी के योग्य हो चुके अपने बच्चों की शादियां कर देता हैं. इसके पीछे समाज की एक बहुत अच्छी सोच है. सभी घरों में शादी होगी तो किसी एक घर में ज्यादा मेहमान नहीं पहुंचेंगे. कम बाराती पहुंचेंगे, तो बेटी के बाप पर ज्यादा खर्च नहीं आएगा.
एक ही दिन में इतनी शादियां होती हैं कि पूरा शहर बाराती नजर आता है. शादी के इतने मंडप सजते हैं कि पंडित भी नहीं मिल पाते. सरकार ने भी पूरे परकोटे को एक छत घोषित करते हुए इस दिन होने वाली सभी शादियों के लिए अनुदान देने की घोषणा की है. विवाह के दिन बारात लेकर जो दूल्हा सबसे पहले चौक से निकलता है, उसे भी पुरस्कार दिया जाता है. उसी दूल्हे को पुरस्कार मिलता है, जो विष्णु रूप में तैयार होकर जाता है. यह सब शहर की संस्कृति को बनाए रखने के लिए किया जाता है.
पुष्करणा समाज ने पेश किया अच्छा उदाहरण
रियासत काल से शुरू हुई यह परंपरा पहले प्रति 4 साल के अंतराल से होती थी जिसके कारण शादियों का अनूठा आयोजन ओलम्पिक शादियों के नाम से प्रचलित हो गया. लेकिन अब 2 साल से इसका आयोजन किया जा रहा. जहां समाज की कई संस्थाए वैवाहिक कार्यक्रमों से जुड़ी सामग्री भी लोगों को निशुल्क उपलब्ध करवा रही है. इस सावे की खास बात ये है कि इसमें किसी तरह का लेनदेन नहीं होता. दहेज के नाम पर लाखों रुपए लेने वालों के सामने पुष्करणा समाज की यह रीत सबसे बड़ा उदाहरण है. गरीब परिवारों को तो सहायता के लिए हाथ उठते हैं. बड़ी संख्या में गरीब परिवारों को विवाह सामग्री के साथ नगदी भी पहुंचाई जाती है. बड़ी बात है कि सहायता देने वाले अपना नाम कभी सार्वजनिक नहीं करते. सारा काम समाज के नाम पर होता है.
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इस विवाह समारोह में बीकानेर का पूर्व राजपरिवार आज भी अपनी भूमिका निभाता है. परंपरा के अनुसार, ब्राह्मण समाज के विद्वान पहले राज परिवार से सावा आयोजित करने की अनुमति लेने जाते हैं. वर्तमान में राजमाता सुशीला कुमारी इसकी अनुमति देती हैं. इसके बाद विवाह के दिन राजपरिवार सदस्य और वर्तमान में बीकानेर पूर्व से विधायक सिद्धि कुमारी इस आयोजन में शामिल होती हैं. विवाह कर रही हर लड़की को पूर्व राजपरिवार की ओर से गिफ्ट भी पहुंचाया जाता है.
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