जिसने पुरुषों के दबदबे को दी टक्कर, दादा साहब पुरस्कार से हुई सम्मानित… मगर एक हादसे ने उसे सिनेमा से दूर कर दिया!

Last Updated:March 09, 2025, 10:56 IST
देविका रानी भारतीय सिनेमा की पहली सुपरस्टार थीं, जिन्होंने एक्टिंग के साथ निर्देशन और निर्माण में भी योगदान दिया. 1969 में उन्हें दादा साहब फाल्के पुरस्कार मिला.
पहली अभिनेत्री जिसे मिला दादा साहब फाल्के पुरस्कार…(फोटो साभार- file photo)
हाइलाइट्स
देविका रानी भारतीय सिनेमा की पहली सुपरस्टार थीं.1969 में उन्हें दादा साहब फाल्के पुरस्कार मिला.हिमांशु राय के निधन के बाद उन्होंने सिनेमा छोड़ दिया.
नई दिल्ली : आज इंडियन सिनेमा में महिलाएं न सिर्फ एक्टिंग करती हैं, बल्कि निर्देशन, निर्माण और लेखन में भी अपना नाम कमा रही हैं. लेकिन एक समय ऐसा था जब फिल्मों में महिलाओं के रोल भी पुरुष निभाते थे. धीरे-धीरे बदलाव आया और महिलाओं ने सिनेमा में कदम रखा. इन्हीं शुरुआती महिलाओं में से एक थीं देविका रानी जिन्हें भारतीय फिल्म जगत की पहली सुपरस्टार कहा जाता है.
देविका रानी न सिर्फ एक शानदार एक्ट्रेस थीं, बल्कि फिल्म निर्माण में भी उनका बड़ा रोल था. 1969 में उन्हें इंडियन सिनेमा के सर्वोच्च सम्मान दादा साहब फाल्के पुरस्कार से नवाजा गया. आइए, जानते हैं उनके जीवन और फिल्मी सफर के बारे में.
शुरुआती जीवन
देविका रानी का जन्म 30 मार्च 1908 को विशाखापत्तनम (आंध्र प्रदेश) में एक बंगाली परिवार में हुआ था. उनके पिता सुरेंद्रनाथ चौधरी एक बैरिस्टर थे और मां सरला देवी एक लेखिका थीं. कला और साहित्य के माहौल में पली-बढ़ी देविका रानी को बचपन से ही कला में रुचि थी.
उन्होंने पढ़ाई के लिए आयरलैंड और लंदन का रुख किया, जहां उन्होंने रॉयल एकेडमी ऑफ ड्रामेटिक आर्ट (RADA) से अभिनय की शिक्षा ली. यहां से मिली ट्रेनिंग ने उनकी एक्टिंग क्षमता को निखार दिया और आगे चलकर भारतीय सिनेमा में उनकी अलग पहचान बनी.
फिल्मों में करियर की शुरुआत
देविका रानी ने अपने फिल्मी सफर की शुरुआत 1933 में फिल्म ‘कर्मा’ से की. ये भारत की शुरुआती साउंड फिल्मों में से एक थी और इसे उनके पति हिमांशु राय ने निर्देशित किया था. इस फिल्म ने देविका रानी को बड़ी पहचान दिलाई और वे रातों-रात स्टार बन गईं.
इसके बाद, 1934 में उनके पति ने ‘बॉम्बे टॉकीज’ नाम से एक फिल्म स्टूडियो खोला, जिसमें देविका रानी का भी अहम योगदान था. उन्होंने न सिर्फ इसमें काम किया, बल्कि फिल्म निर्माण में भी अपनी भूमिका निभाई.
सुपरस्टार बनने का सफर
1936 में आई फिल्म ‘अछूत कन्या’ ने देविका रानी को इंडस्ट्री की टॉप एक्ट्रेस बना दिया. ये फिल्म सामाजिक मुद्दों पर बनी थी और इसमें उन्होंने एक दलित लड़की का रोल निभाया था. उनकी दमदार एक्टिंग और स्क्रीन पर बेहतरीन मौजूदगी ने उन्हें भारत की सबसे ज्यादा कमाने वाली एक्ट्रेसेस में शामिल कर दिया.
इसके बाद ‘इश्क-ए-दिल’ (1936) जैसी कई हिट फिल्मों से उन्होंने खुद को एक सफल एक्ट्रेस के रूप में स्थापित किया. उस दौर में भारतीय सिनेमा में पुरुषों का चलन था, लेकिन देविका रानी ने अपनी मेहनत और टैलेंट से इस धारणा को तोड़ दिया.
प्रेम और शादी
देविका रानी का निजी जीवन भी उनके करियर की तरह चर्चा में रहा. 1929 में उन्होंने हिमांशु राय से शादी की और दोनों ने मिलकर भारतीय सिनेमा को एक नई दिशा दी. लेकिन 1940 में हिमांशु राय के निधन ने उन्हें गहरे सदमे में डाल दिया.
इसके बाद, उन्होंने फिल्म इंडस्ट्री को अलविदा कह दिया और रूसी पेंटर स्वेतोस्लाव रोरिक से शादी कर ली. दोनों ने बैंगलोर में सादा जीवन बिताया और सिनेमा से दूर हो गए. हालांकि, उन्होंने जो योगदान दिया, वो हमेशा भारतीय फिल्म इंडस्ट्री का अहम हिस्सा बना रहेगा.
देविका रानी की विरासत
देविका रानी ने इंडियन सिनेमा में महिलाओं के लिए एक नई राह बनाई. उस दौर में जब महिलाओं को सिर्फ शोपीस समझा जाता था, उन्होंने साबित किया कि महिलाएं भी सिनेमा में बराबरी की हकदार हैं.
उनके योगदान के लिए 1969 में उन्हें दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया गया. उनकी प्रेरणादायक यात्रा आज भी फिल्मी दुनिया में नई पीढ़ी के कलाकारों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनी हुई है.
Location :
Mumbai,Maharashtra
First Published :
March 09, 2025, 10:56 IST
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