Why 2022 is bad time for Pakistan PM Imran Khan | द वाशिंगटन पोस्ट से… इमरान के लिए क्यों बुरे सपने की शक्ल ले रहा 2022

कुछ विशेषज्ञों का दावा है कि पाकिस्तान दिवालिया हो गया है। सवाल है कि क्या इमरान देश को आर्थिक पतन से बचा सकते हैं अथवा 2023 के अगले चुनाव से पहले उनकी सरकार गिर जाएगी?
नई दिल्ली
Updated: January 13, 2022 01:40:44 pm
हामिद मीर
(पत्रकार व लेखक- द वाशिंगटन पोस्ट) इमरान खान हमेशा ही खुद को पाकिस्तान के रक्षक के रूप में प्रस्तुत करते रहे हैं। उन्हें अक्सर यह दावा करते हुए सुना गया है कि वही देश बहुत ज्यादा कर्ज लेता है जिसके नेता भ्रष्ट होते हैं। पाकिस्तानी भी यह कहने से नहीं चूकते कि कर्ज मांगने के बजाए वह मौत को गले लगा लेंगे। लेकिन 2018 में प्रधानमंत्री बनने के बाद से उन्होंने ऐसा नहीं किया है। 40 बिलियन डॉलर का कर्ज लेकर उन्होंने तीन वर्षों में पिछले सभी रेकॉर्ड तोड़ दिए हैं। अब उनके विरोधी संवेदनाहीन तरीके से मांग कर रहे हैं कि उन्हें अपने शब्दों का सम्मान करना चाहिए और अपना जीवन खत्म कर लेना चाहिए क्योंकि उन्होंने पाकिस्तान की वित्तीय संप्रभुता को अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के हवाले कर दिया है। कुछ विशेषज्ञों का दावा है कि पाकिस्तान दिवालिया हो गया है। सवाल है कि क्या इमरान देश को आर्थिक पतन से बचा सकते हैं अथवा 2023 के अगले चुनाव से पहले उनकी सरकार गिर जाएगी?

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इस हार ने उन्हें दिखा दिया कि ज्यादा समय तक सैन्यबलों के बीच उनकी लोकप्रियता कायम रहने वाली नहीं है। फिर दिसंबर में खैबर पख्तूनख्वा में स्थानीय निकाय चुनाव हुए। इमरान की पार्टी 2013 से ही इस प्रांत पर शासन करती रही है। फिर भी इस चुनाव में उसे प्रांत के लगभग सभी महत्त्वपूर्ण शहरों में पराजय मिली।
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हार के कारणों को समझने के बजाए उन्होंने पार्टी के संगठन को ही भंग कर दिया। इमरान को लगता है कि खैबर पख्तूनख्वा में उनकी पार्टी की हार की वजह सही प्रत्याशियों का चयन न होना था। लेकिन उनके कुछ निकटस्थ अलग सोचते हैं और बढ़ती महंगाई को हार की वजह मानते हैं। दरअसल, दक्षिण एशिया में पाकिस्तान मुद्रास्फीति की उच्चतम दरों का सामना कर रहा है। पाकिस्तानी रुपए ने अमरीकी डॉलर के मुकाबले पिछले सभी रेकॉर्ड तोड़ दिए हैं।
जिन लोगों ने वर्ष 2018 में इमरान खान की पार्टी को वोट दिए थे, वे अब उनके प्रदर्शन से असंतुष्ट हैं। पिछले तीन वर्षों में उनकी सरकार ने चार वित्त मंत्री और छह वित्त सचिव देखे हैं। वह आर्थिक संकट के लिए पिछली सरकारों के भ्रष्टाचार को दोषी ठहराते रहे हैं, पर खुद उनकी सरकार कोई सुधार करने में विफल रही है। उनकी विदेश नीति एक अन्य मुसीबत है। काबुल पर कब्जा किए जाने के बाद उन्होंने तुरंत ही अफगान तालिबान को गले लगा लिया।
उन्होंने इस्लामिक सहयोग संगठन (ओआइसी) की विशेष बैठक इस्लामाबाद में आयोजित करके तालिबान शासन की मदद करने की कोशिश की। पर तालिबान ने न सिर्फ सीमा पर बाड़ लगाने की पाक सेना की कोशिशों में हस्तक्षेप किया है बल्कि कुछ स्थानों पर फायरिंग भी की है। दिलचस्प बात यह है कि अफगान तालिबान का समर्थन कर रहे इमरान को पाकिस्तान में तालिबान समर्थकों का समर्थन नहीं मिल पा रहा है।
कुछ खबरों के मुताबिक, आइएसआइ के नए मुखिया ले.जन. नदीम अहमद अंजुम तटस्थ रहना चाहते हैं। यदि यह सच है तो खान के लिए संसद में अविश्वास प्रस्ताव से पार पाना मुश्किलभरा होगा जहां उनका बहुमत बहुत कम है। इमरान देश के बाहर से फंड अनियमितता मामले में चुनाव आयोग की जांच का भी सामना कर रहे हैं। इमरान के लिए, यह एकमात्र संभावित आपदा नहीं है जिसका कि उन्हें इस साल सामना करना पड़ सकता है।
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