हवेली संगीत: ठाकुरजी की सेवा का अनूठा माध्यम, संरक्षण के लिए प्रयासरत युवा कलाकार
निशा राठौड़/ उदयपुर: हवेली संगीत, जो ठाकुरजी की सेवा का एक प्राचीन और विशेष माध्यम है, आज भी अपने भक्तिमय स्वरूप के कारण आध्यात्मिक अनुभूति कराता है. श्रीनाथजी मंदिर में बांसुरी की मधुर धुनें हवेली संगीत की समृद्ध परंपरा का हिस्सा हैं. लेकिन आधुनिकता के प्रभाव में यह सांस्कृतिक धरोहर लुप्त होने की कगार पर है.
संस्कृति को जीवित रखने का संकल्प उदयपुर के युवा बांसुरी वादक मोहित मेहता ने हवेली संगीत की इस लुप्त होती परंपरा को संजोने और आगे बढ़ाने का बीड़ा उठाया है. वे न केवल स्वयं इस परंपरा का अभ्यास कर रहे हैं, बल्कि इसे नई पीढ़ी को भी सिखा रहे हैं. उनका उद्देश्य है कि हवेली संगीत की यह अनमोल विरासत आने वाले समय में भी जीवित रहे.
क्या है हवेली संगीत? बांसुरी वादक मोहित मेहता ने हवेली संगीत की उत्पत्ति और महत्व पर प्रकाश डालते हुए बताया कि इसकी शुरुआत लगभग 550 वर्ष पूर्व राधावल्लभ संप्रदाय के हरिवंश महाप्रभु ने की थी.– हित 84 ग्रंथ के पदों को स्वामी हरिदास ने सखी परंपरा के माध्यम से गाना शुरू किया.– वर्ष 1669 में मुगल शासक औरंगजेब के मंदिरों को नष्ट करने के फरमान के बाद, भक्तों ने इन निधियों को अपने घरों में छिपाया.– इन घर जैसे मंदिरों को हवेली कहा गया और यहां गाए जाने वाले पद हवेली संगीत के नाम से प्रसिद्ध हुए.
पुष्टिमार्गीय मंदिरों में जारी परंपरा आज भी वल्लभ संप्रदाय के मंदिरों में हवेली संगीत प्रभु सेवा का अभिन्न हिस्सा है.– यह संगीत साधना और समर्पण के साथ प्रस्तुत किया जाता है.– मोहित मेहता के अनुसार, हवेली संगीत सिखाने का उद्देश्य प्रभु सेवा है, न कि व्यावसायिक लाभ.
नई पीढ़ी को जोड़ने का प्रयास मोहित मेहता ने हवेली संगीत के संरक्षण और प्रचार-प्रसार के लिए नई पीढ़ी को प्रशिक्षित करने का काम शुरू किया है.– वे इसे न केवल सांस्कृतिक धरोहर बचाने का माध्यम मानते हैं, बल्कि युवा पीढ़ी को आध्यात्मिकता से जोड़ने का जरिया भी.
सांस्कृतिक और आध्यात्मिक धरोहर हवेली संगीत केवल संगीत का स्वरूप नहीं है, बल्कि यह ठाकुरजी और भक्तों के बीच प्रेम और समर्पण का एक अनूठा सेतु है.– इसे संरक्षित रखना न केवल हमारी सांस्कृतिक बल्कि आध्यात्मिक जिम्मेदारी भी है.– मोहित के प्रयास इस दिशा में प्रेरणादायक हैं, जो नई पीढ़ी को अपनी परंपराओं से जोड़ने का काम कर रहे हैं.
हवेली संगीत की यह अनमोल परंपरा हमारी सांस्कृतिक विरासत की जड़ों को मजबूती देती है और इसे जीवित रखना समय की मांग है.
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FIRST PUBLISHED : November 17, 2024, 13:20 IST