Rajasthan

Daughters of Barmer created a record did research on insects in Bengaluru got job offer under fellowship project

मनमोहन सेजू/बाड़मेर. कहते हैं कि मेहनत और लगन से किए गए काम को मंजिल मिल ही जाती है. भारत-पाकिस्तान सीमा पर बसे बाड़मेर की दो बेटियों ने ऐसा ही कुछ कर दिखाया है. बाड़मेर से हजारों किलोमीटर दूर बेंगलुरु के लिए फेलोशिप प्रोजेक्ट के लिए दो महीने तक बेंगलुरू में रिसर्च के दौरान ही दोनों को कैम्पस जॉब का ऑफर भी मिल गया है. अपने फेलोशिप प्रोजेक्ट से वापस लौटने पर लोकल 18 ने इन दो होनहार बेटियों से खास बातचीत की है.

बाड़मेर के एमबीसी राजकीय कन्या महाविद्यालय की दो छात्राओं बीएससी तृतीय वर्ष की सीमा सिसोदिया और बीएससी द्वितीय वर्ष की रक्षा जांगिड़ ने नेशनल सेंटर फॉर बायोलॉजिकल साइंसेज बेंगलुरू (कर्नाटक) से 2 महीने का फेलोशिप प्रोजेक्ट सफलतापूर्वक पूरा किया है. रिसर्च फेलोशिप प्रोजेक्ट सफलतापूर्वक पूरा करके वापस बाड़मेर लौटी दोनों छात्राओं का एमबीसी राजकीय कन्या महाविद्यालय बाड़मेर में महाविद्यालय परिवार द्वारा अभिनंदन किया गया. इस अवसर पर महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. मुकेश पचौरी ने कहा कि नवीन राष्ट्रीय शिक्षा नीति भी अनुसंधान पर बल देती है.

प्रोजेक्ट को पूरा करके लौटना गौरवमयी क्षणमहाविद्यालय की इन छात्राओं ने विज्ञान व प्रौद्योगिकी विभाग के फेलोशिप कार्यक्रम का लाभ उठाकर अनुसंधान में कदम रखा है, इससे अन्य छात्राओं को भी प्रेरणा मिलेगी. छात्राओं की मार्गदर्शक सहायक आचार्य श्रीमती विमला ने बताया कि बुनियादी विज्ञान में उन्नत क्षेत्रों का अनुभव प्रदान करने और प्रतिष्ठित संस्थानों में उपलब्ध नवीनतम उपकरणों और विशेषज्ञता की मदद से नई समस्याओं पर काम करने के लिए विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा एक फेलोशिप कार्यक्रम ‘युवा उम्मीदवारों में अनुसंधान के माध्यम से ज्ञान संवर्धन (KARYA)’ शुरू किया था, जिसके तहत राजस्थान के चार विद्यार्थियों को चुना गया, जिसमें बाड़मेर कन्या महाविद्यालय की दो छात्राओं का चुना जाना और प्रोजेक्ट को पूरा करके लौटना गौरवमयी क्षण है‌.

लेपिडोप्टेरा कीट की पहचान करना उद्देश्यसीमा सिसोदिया व रक्षा जांगिड़ के मुताबिक फेलोशिप के जरिए रक्षा और सीमा ने विभिन्न लेपिडोप्टेरान कीट के संग्रहण, क्यूरेशन और पहचान की विधियों पर अपनी रिसर्च पूरी की है. परियोजना का उद्देश्य वर्गीकरण उपकरणों और कीज का उपयोग करके लेपिडोप्टेरा कीट की पहचान करना था. पहचान सुनिश्चित होने के बाद फसलों को नुकसान पहुंचाने वाले कीटों का प्रबंधन करना आसान हो जाता है. इसे नियंत्रित करने के लिए विभिन्न प्राकृतिक रासायनिक यौगिकों का उपयोग किया जा सकता है.

Tags: Barmer news, Local18, Rajasthan news, Success Story

FIRST PUBLISHED : August 7, 2024, 14:46 IST

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