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अब खेत में उग रहा है मखाना, जीआई टैग मिलने के बाद बढ़ी विदेश में डिमांड, किसान हुए मालामाल

दरभंगा. बिहार मखानों की खेती के लिए प्रसिद्ध है. यहां बड़े पैमाने पर मखाने की खेती होती है. अभी तक ये सिर्फ तलाब में होती थी. अब खेत में भी मखाने उगाए जा रहे हैं. जीआई टैग मिलने के बाद अंतर्राष्ट्रीय बाजार में इसकी डिमांड और बढ़ गयी है.

बिहार का मखाना अपनी गुणवत्ता के लिए विश्व विख्यात है. सदियों से इसकी खेती सिर्फ बड़े-बड़े तालाबों में ही होती थी. अब मखाने पर नये-नये रिसर्च होने लगे हैं. किसान इसकी खेती अपने खेतों में भी करने लगे हैं. बहादुरपुर प्रखंड के किसान लड्डू मुखिया बताते हैं पहली बार खेतों में मखाने की खेती कर रहे हैं. इसमें आमदनी दोगुनी है. आइए जानते हैं किसान किस प्रकार से खेतों में भी मखाने उपजा रहे हैं.

ऐसे करें मखाने की खेतीलड्डू मुखिया बताते हैं पहली बार एक बीघा खेत में मखाने की बुवाई कर रहे हैं. इससे पहले तालाबों में करते थे. उस वक्त इसके दाम ठीक नहीं मिलते थे. अब GI टैग मिलने के बाद इसकी डिमांड बढ़ी है और इसके दाम में भी इजाफा हुआ है. सबसे पहले खेतों में बोरिंग से पानी डलवाते हैं और फिर मजदूरों से मखाने की रोपाई करवाते हैं. लड्डू मुखिया आगे बताते हैं कि अभी मखाने के पौधों की खेतों में रोपाई कर रहे हैं. दो से तीन महीने में यह तैयार हो जाएगा.

काला दाना पीटकर निकालते हैं मखानाएक बाई एक की खेती में 25 से 30 हजार खर्च हुए हैं. जब यह तैयार हो जाएगा तो 50 रुपए आमदनी होने की उम्मीद है. लड्डू मुखिया बताते हैं मखाने के बीज बाहर से खरीद कर लाते हैं. फिर इसे रोंपते हैं.खेतों में चारों तरफ से मेढ़ बनायी जाती है ताकि पानी इसमें रुका रहे. इससे पानी की खपत कम होगी. जब यह फसल तैयार हो जाएगी तब पानी बहार निकालेंगे. मतलब मखाने के जो काले दाने होते हैं उसे खेत से निकाल लेते हैं. फिर उसे घर पर ला कर पहले भूना जाता है और फिर हाथों से पीट कर लावा बनाया जाता है. यानि मखाना बाहर आ जाता है और काला कवर अलग हो जाता है.

FIRST PUBLISHED : June 8, 2024, 14:54 IST

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