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Rana Sanga Controversy: ’80 घाव लगे थे तन पे, फिर भी व्यथा नहीं थी मन में’, जानें कौन थे वीर राणा सांगा?

Last Updated:March 23, 2025, 11:29 IST

Rana Sanga History : राजस्थान के मेवाड़ के महाराणा संग्राम सिंह को ‘राणा सांगा’ के नाम से जाना जाता है. इतिहासकारों के अनुसार खानवा के युद्ध में उनके शरीर पर 80 घाव लगे थे उसके बावजूद वे मजबूती से लड़ते रहे. रा…और पढ़ें'80 घाव लगे थे तन पे, फिर भी व्यथा नहीं थी मन में', जानें कौन थे राणा सांगा?

राणा सांगा ने मेवाड़ पर वर्ष 1509 से 1528 तक शासन किया था.

हाइलाइट्स

सपा सांसद की टिप्पणी से राणा सांगा पर विवादराणा सांगा ने 1509-1528 तक मेवाड़ पर शासन कियाराणा सांगा ने 80 घावों के बावजूद लड़ाई जारी रखी

उदयपुर. समाजवादी पार्टी के सांसद रामजीलाल सुमन ने महान योद्धा राणा सांगा पर विवादित टिप्पणी कर राजनीति में भूचाल ला दिया है. सुमन की इस टिप्पणी से राणा सांगा की जन्मभूमि राजस्थान में उबाल आ गया है. मेवाड़ के महाराणा संग्राम सिंह को ‘राणा सांगा’ के नाम से पहचाना जाता है. राणा सांगा वह शख्सियत है जिन्होंने 600 साल पहले राष्ट्र एकता की सोच समूचे देश में विकसित कर दी और मेवाड़ के साथ कई रियासतों को मिलाकर एक मजबूत शासक के तौर पर स्थापित हुए.

हिंदू क्षत्रिय नेता के तौर पर अपनी अमिट छाप छोड़ चुके राणा सांगा राणा रायमल के सबसे छोटे पुत्र थे. उनका जन्म 12 अप्रैल 1482 को हुआ और 30 जनवरी 1528 को उनका निधन हुआ. राणा सांगा ने मेवाड़ पर वर्ष 1509 से 1528 तक शासन किया. समूचे देश को जोड़ने की सोच रखने वाले राणा सांगा ने मेवाड़ अंचल को सुरक्षित रखने के लिए कई रियासतों को अपने साथ जोड़ा.

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राणा सांगा ने हर घर से बड़े बेटे को सेना में जोड़ने की शुरुआत की थीराणा सांगा की मजबूत शख्सियत के चलते जागीरदारों ने भी उन पर विश्वास किया और वह उनके साथ जुड़ते गए. इससे विदेशी आक्रांता कमजोर हुए और राणा सांगा उन्हें कई बार पराजित करने में भी सफल हुए. राणा सांगा ने अपनी सेना को मजबूत करने के लिए एक विशेष अभियान चलाया था. इसके लिए उन्होंने हर घर से बड़े बेटे को सेना में जोड़ने की शुरुआत की. इससे सेना में एक बड़ा जन समूह जुड़ा और विदेशी आक्रांताओं से लोहा लेने में मदद मिली.

राणा सांगा को सैनिकों का भग्नावशेष भी कहा जाता हैइतिहासकारों और इतिहास कि किताबों के अनुसार राणा सांगा इतने वीर थे कि एक भुजा, एक आंख और एक पैर खोने के साथ ही अनगिनत जख्मों के बावजूद उन्होंने अपना महान पराक्रम नहीं खोया. सुलतान मोहम्मद शाह को मांडू के युद्ध में हराने और बंदी बनाने के बावजूद भी उन्हें उनका राज्य उदारता के साथ वापस सौंप दिया था. यह उनकी बहादुरी और उदारता को दर्शाता है. खानवा की लड़ाई में राणा सांगा को लगभग 80 घाव लगे थे. राणा सांगा को सैनिकों का भग्नावशेष भी कहा जाता है.

…तो मुगलों का राज्य हिंदुस्तान में जमने न पाताइतिहासकारों के मुताबिक बाबर ने भी अपनी आत्मकथा मैं लिखा है कि “राणा सांगा अपनी वीरता और तलवार के बल पर अत्यधिक शक्तिशाली हो गया है. वास्तव में उसका राज्य चित्तौड़ में था. मांडू के सुल्तान के राज्य के पतन के कारण उसने बहुत-से स्थानों पर अधिकार जमा लिया. उसका मुल्क 10 करोड़ की आमदनी का था. उसकी सेना में एक लाख सवार थे. उसके साथ 7 राव और 104 छोटे सरदार थे. उसके तीन उत्तराधिकारी भी यदि वैसे ही वीर और योग्य होते तो मुगलों का राज्य हिंदुस्तान में जमने न पाता”.

राणा सांगा लोदी को अकेले ही दो बार युद्ध में पराजित कर चुके थेमेवाड़ के इतिहासकार चंद्रशेखर शर्मा ने बताते हैं कि ऐसा कोई प्रमाण प्राप्त नहीं होता है जिसके आधार पर सांगा पर जो आरोप बाबर की ओर से लगाए गए वो सिद्ध होते हैं. एक मात्र बाबरनामा के आधार पर जो कि बाबर की आत्मकथा है उसके आधार पर जो आरोप लगाए गए हैं वो तर्क की कसौटी पर खरे नहीं उतरते. शर्मा ने कहा जिस इब्राहिम लोदी को हराने के लिए बाबर ने सांगा के सहयोग की बात कही और विश्वासघात का आरोप लगाया उस इब्राहिम लोदी को सांगा अकेले ही दो बार युद्ध में पराजित कर चुके थे.

मेवाड़ राज्य की सीमाएं आगरा और दिल्ली तक टकराने लगी थीशर्मा के अनुसार मेवाड़ राज्य की सीमाएं आगरा और दिल्ली तक टकराने लगी थी. इसलिए इब्राहिम लोदी को हराने के लिए उल्टे बाबर ने सहयोग मांगा. इब्राहिम लोदी को परास्त करने के बाद बाबर का सांगा के साथ युद्ध होना और उसमें बाबर का पराजित होना यह सिद्ध करता है कि जो आरोप बाबर की ओर से लगाए गए वे अगर सही होते तो सांगा के साथ बाबर का संघर्ष नहीं हुआ होता. बाबरनामा के अलावा अन्य किसी समकालीन स्रोत में इस बात का कहीं जिक्र नहीं किया गया है. इस नाते यह सभी बातें निराधार और निर्मूल हैं.

राणा सांगा ने पूरे देश को एक कर दिया थाराणा सांगा पर दिए बयान के बाद उनके वंशजों में जबर्दस्त आक्रोश व्याप्त है. राणा सांगा के वंशजों में आने वाले वीरमदेव सिंह कृष्णावत का कहना है कि जिस महाराणा ने 600 साल पहले राष्ट्र एकता की बात की उनके लिए ऐसी अनर्गल टिप्पणी करना कतई बर्दाश्त नहीं की जाएगी. उन्होंने मेवाड़ के महाराणाओं पर टिप्पणी करने वाले नेताओं को इतिहास की जानकारी जुटाने की सलाह दी. राणा सांगा के वंशज हनुवंत सिंह बोहेड़ा ने भी कहा कि राणा सांगा ने पूरे देश को एक कर दिया था. राणा सांगा ने बाबर को कतई निमंत्रण नहीं दिया.

मेवाड़ को सॉफ्ट टारगेट ना बनाएंउन्होंने इतिहास पर टिप्पणी करने वाले राजनेताओं को कड़ी चेतावनी दी के वे लोग मेवाड़ को सॉफ्ट टारगेट ना बनाएं. उनका कहना है कि मेवाड़ पर और यहां के राजा तथा इतिहास पर बोलकर सस्ती लोकप्रियता प्राप्त करना लोगों ने अपना काम बना लिया है. दूसरी तरफ पूर्व विधायक और राणा सांगा के वंशज रणधीर सिंह भिंडर का कहना है कि इब्राहिम को राणा सांगा खुद पराजित कर चुके थे. राणा सांगा ने बाबर को भी युद्ध के मैदान में पराजित करने में सफलता प्राप्त की थी.

खाचरियावास बोले-टिप्पणी माफी योग्य भी नहीं हैपूर्व मंत्री प्रताप सिंह खाचरियावास ने भी महाराणा सांगा के बयान पर सपा सांसद को घेरते हुए कहा कि ऐसी अमर्यादित टिप्पणी बेहद दुर्भाग्यपूर्ण और निंदनीय है. खाचरियावास ने कहा कि राणा सांगा के ”अस्सी घाव लगे थे तन पे, फिर भी व्यथा नहीं थी मन में”. मातृभूमि की रक्षा में अपना सम्पूर्ण जीवन अर्पण करने वाले अदम्य साहस, वीरता, त्याग और स्वाभिमान के प्रतीक वीर शिरोमणि महाराणा सांगा पर सासंद सुमन टिप्पणी माफी योग्य भी नहीं है. उन्होंने कहा कि सांसद पर सख्त करवाई होनी चाहिए. बकौल खाचरियावास मैं भारत सरकार से अपील करूंगा कि संसद में ऐसा प्रस्ताव लेकर आए जिससे इतिहास के महापुरुषों पर अमर्यादित टिप्पणी करने वालों की संसद सदस्यता रद्द की जा सके.


Location :

Udaipur,Udaipur,Rajasthan

First Published :

March 23, 2025, 11:29 IST

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