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संजौली मस्जिद विवाद पर चढ़ने लगा है राजनीतिक रंग, कोर्ट से मिल रही केवल तारीख | – News in Hindi

हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला में माहौल गरम है. मसला एक मस्जिद का है. संजौली में बनी एक मस्जिद का. शिमला जिले के संजौली की इस मस्जिद को ग‍िरा देने की मांग करते हुए बुधवार को बड़ी संख्या में लोग सड़कों पर उतर गए. धारा-44 (पांच से ज्यादा लोगों के एक जगह जमा होने पर रोक) लगी होने के बावजूद ये लोग मस्जिद के करीब जाने पर अड़े थे. इन्हें रोकने के लिए पुलिस ने पानी की बौछार और लाठियों से वार किया. इस दौरान कुछ लोग जख्मी भी हुए. कोई बड़ी अनहोनी होने से बच गई. पर, कब तक?

यह मामला जिस तरह गरमा रहा है और दो समुदायों की लड़ाई के रूप में गंभीर होता जा रहा है, उसे देखते हुए इस बात की आशंका से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि अगर समय रहते समाधान नहीं हुआ तो कहीं उग्र भीड़ बेकाबू होकर मस्जिद गिराने की मांग खुद न पूरी कर ले. अयोध्या में भी ऐसा ही हुआ था. कोर्ट में गारंटी देने के बावजूद सरकार विवादित ढांचे को उग्र भीड़ से नहीं बचा सकी थी.

46 बार सुनवाई हुई लेकिन…

संजौली के मामले में एक अच्छी बात यह है कि सरकार के पास वक्‍त है, मसले का हल निकालने का. और यह भी, कि मामले पर चढ़ा राजनीतिक रंग ज्यादा गहरा नहीं हुआ है. सरकार को चाहिए कि वह इसका फायदा समय रहते उठाए और मसले का हल निकाले. यह संकेत अच्छा नहीं है कि कोर्ट में 46 बार सुनवाई होने के बावजूद अभी तक तारीख ही मिल रही है.

ताजा आग कैसे भड़की?

पुरानी कहानी जानने से पहले यह जानते हैं कि ताजा आग क्यों भड़की हुई है. 30 अगस्त को करीब आधे दर्जन लोगों ने मलयाना इलाके में कुछ व्यवसायियों पर कथित रूप से हमला किया. इसमें चार व्यवसायी जख्मी हो गए थे. जिन छह मुस्लिम लोगों पर केस हुआ उनमें से पांच उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर के बताए जाते हैं. एक आरोपी रिहान देहरादून का बताया जाता है. इस घटना के बाद ही पीड़ित पक्ष की ओर से हिंदुओं ने विरोध प्रदर्शन शुरू किया और मस्जिद ढहाए जाने की मांग जोर पकड़ने लगी.

करीब एक हफ्ता पहले (5 सितंबर) को भी संजौली का माहौल बेहद गर्म हो गया था. दो हिन्दू संगठनों की अपील पर मेन मार्केट के इलाके में सैकड़ों लोग जमा हो गए थे और मस्जिद ढहाने की मांग करने लगे थे. उनका कहना था कि मस्जिद में बाहरी लोगों को पनाह दी गई है.

आगे भी विरोध प्रदर्शन करने की घोषणा की गई तो शिमला (शहरी) क्षेत्र के कांग्रेसी विधायक हरीश जनार्थ ने विधानसभा में यह मुद्दा उठाया और मुख्यमंत्री के दखल की मांग रखी. 10 सितंबर को मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने विधानसभा में भरोसा भी दिया था कि कानून हाथ में लेने की इजाजत किसी को नहीं दी जाएगी.

मस्जिद को लेकर क्या विवाद है?

मस्जिद को लेकर सारा विवाद कानूनी-गैर कानूनी का है. हिन्दू संगठनों का कहना है कि मस्जिद गैर कानूनी है, इसलिए इसे ढहा दिया जाए. मस्जिद पर कई अतिरिक्त मंज‍िलें बनी हैं. यह मामला कोर्ट में भी है.

मस्जिद के मौलवी शहजाद इमाम का कहना है कि यह मस्जिद देश कि आजादी के समय की ही बनी है. 2007 के बाद इसमें और निर्माण कार्य हुआ. बीते 14 सालों में चार मंज‍िलें बना दी गईं. 2010 में मस्जिद को अवैध बताते हुए केस दर्ज हुआ. लेकिन, इसका कोई हल नहीं निकल पाया. बताया जाता है नगर निगम आयुक्त कि अदालत में 45 बार से ज्यादा मामले की सुनवाई कि जा चुकी है, पर फैसला नहीं आ पाया है. तारीख ही मिल रही है, बस. अगली तारीख पांच अक्तूबर की मिली है.

राज्य वक्फ बोर्ड ने कोर्ट में बताया है कि मस्जिद इसकी जमीन पर बनी है, पर उसे यह नहीं पता कि इस पर चार मंज़िलें किसने बनवा दी. स्थानीय लोगों का कहना है कि जमीन सरकार की है, वक्फ बोर्ड ने इस पर कब्जा कर लिया है. मस्जिद के ऊपर बनी चार मंजिलों को स्थानीय लोग अवैध बताते हैं और ढहाए जाने की मांग कर रहे हैं.

राजनीतिक रंग भी चढ़ा

कोर्ट में गए पक्ष मानते हैं कि मसला कानूनी है, लेकिन मामले ने राजनीतिक रंग ले लिया है, इससे इंकार नहीं किया जा सकता. विपक्षी भाजपा के विधायक जयराम ठाकुर के एक बयान से भी ऐसा ही संकेत मिलता है.

जयराम ठाकुर सीएम सुक्खू को उनका एक पुराना बयान (2022 विधानसभा चुनाव के बाद का) याद दिलाते हैं- एक ऐसे राज्य में जहां 97 फीसदी हिन्दू आबादी है, हमने हिंदूवादी पार्टी को हराया है.

ठाकुर का कहना है कि ऐसे बयानों से समाज के एक तबके को कुछ न कुछ कदम उठाने के लिए सोचना पड़ता है. हालांकि, ठाकुर का यह भी कहना है कि विरोध प्रदर्शन में कोई राजनीतिक नेता शामिल नहीं है, लोग अपने आप इसके लिए एकत्र हुए थे.

हिमाचल सरकार में ग्रामीण विकास मंत्री अनिरुद्ध सिंह ने भी संजौली में बनी मस्जिद को अवैध बताते हुए जांच की मांग कर दी. इस पर असदुद्दीन ओवैसी का भी बयान आ गया कि उन्हें हैरानी हो रही है कि हिमाचल में कांग्रेस सरकार चला रही है या बीजेपी.

ऐसे में हिमाचल का भला इसी में है कि सरकार जल्द से जल्द झगड़े का फैसला कराए और मामले की आड़ में राजनीति करने वालों पर अंकुश लगा कर रखे.

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