Rajasthan

मॉर्डन युग में भी जीवित है मेवात की गूदड़ी परंपरा, महिलाओं ने संभाल रखी है विरासत, जानें बनाने की पूरी प्रक्रिया

अलवर. राजस्थान के अलवर जिला अंतर्गत मेवात क्षेत्र में ग्रामीण जीवन अपनी पुरानी सांस्कृतिक विरासत और परंपराओं के लिए जाना जाता है. इन्हीं परंपराओं में एक है पुराने कपड़ों का उपयोग कर हाथ से गूदड़ी बनाना. यह न सिर्फ मेवाती संस्कृति का हिस्सा है, बल्कि महिलाओं की हुनरमंदी और मेहनत का भी प्रतीक माना जाता है. वर्षों से चली आ रही यह परंपरा आज भी कई गांवों में जीवित है, जहां महिलाएं फुर्सत के समय में पुराने कपड़ों को जोड़कर सुंदर, आकर्षक और टिकाऊ गूदड़ियां तैयार करती हैं.

सर्दियों के मौसम में जब अधिकांश ग्रामीण कार्य धीमे पड़ जाते हैं, तब महिलाएं घर में उपलब्ध पुराने कपड़ों को इकट्ठा कर गूदड़ी बनाने की प्रक्रिया शुरू करती हैं. भले ही बाजार में तरह-तरह की चादरें, बेडशीट और कंबल आसानी से उपलब्ध है, लेकिन मेवात के कई घरों में आज भी हाथ की बनी गूदड़ी का ही महत्व है. यह परंपरा धीरे-धीरे आधुनिकता की चमक के बीच धूमिल होती दिख रही है, लेकिन ग्रामीण महिलाएं अभी भी अपने घरों के लिए पारंपरिक गूदड़ी तैयार करना नहीं छोड़ रही हैं.

एक गुदड़ी तैयार करने में लगता है दो दिन का वक्त

गूदड़ी बनाने की प्रक्रिया बेहद मेहनत और कौशल से भरी होती है. सबसे पहले महिलाएं अलग-अलग रंगों और डिजाइनों वाले कपड़ों को एक समान आकार में काटती हैं. इसके बाद रेशमी धागों और सुई की मदद से इन टुकड़ों को जोड़कर गूदड़ी का लेवा यानी ऊपर का कवर तैयार किया जाता है. लेवा तैयार होने के बाद इसके अंदर पुराने, मुलायम कपड़ों या फटे कंबलों को भरकर इसे समतल किया जाता है. फिर मजबूती से सिलाई कर पूरी गूदड़ी तैयार की जाती है. एक गूदड़ी बनाने में लगभग दो दिन का समय लगना सामान्य बात है.

पर्यावरण संरक्षण का भी है शानदार तरीका

अलवर के मेवात में गूदड़ी सिर्फ उपयोग का सामान नहीं, बल्कि भावनाओं और परंपरा से जुड़ा उपहार भी है. यहां की लड़कियां विवाह के समय अपने मायके से दहेज में गूदड़ी ले जाने की विशेष इच्छा रखती हैं. शादी की तैयारियों के दौरान वे खुद भी गूदड़ी बनाती हैं और इसे ससुराल ले जाना अपना गर्व समझती हैं. यह परंपरा आज भी कई गांवों में उतनी ही मजबूत है, जितनी पहले थी. पुराने कंबलों और कपड़ों का पुनः उपयोग कर गूदड़ी बनाना न केवल आर्थिक दृष्टि से फायदेमंद है, बल्कि पर्यावरण संरक्षण का भी एक सुंदर तरीका है.

महिलाओं ने परंपरा को रखा है जीवित

बाजार में दरी, चटाई, बेडशीट और कंबलों की कीमतें बढ़ने के कारण महिलाएं घर पर ही उच्च गुणवत्ता की गूदड़ी तैयार कर परिवार के उपयोग में ला रही हैं. मेवाती गूदड़ी अपनी गर्माहट, मजबूती और आकर्षक डिजाइन के लिए जानी जाती है तथा सर्दी और गर्मी दोनों मौसम में उपयोगी रहती है. बाजार की आधुनिक सुविधाओं के बीच भी मेवात की यह परंपरा ग्रामीण संस्कृति को जीवित रखे हुए है. महिलाओं की मेहनत, उनकी रचनात्मकता और पारंपरिक ज्ञान आज भी गूदड़ी को हर घर की पहचान बनाए हुए है.

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