The symbol of Gangaur, Gawar-Isar, is worshipped across the seven seas in foreign countries as well. Statues worth crores of Gawar-Isar made in Marwar are being exported.

Last Updated:March 24, 2025, 16:13 IST
गणगौर के अवसर पर गवर माता व ईसरजी की प्रतिमाओं की देश-विदेश में डिमांड बढ़ी है. खास बात यह है कि इनको बनाने के लिए भी विशेष तकनीक का उपयोग किया जाता है. विदेशों में रहने वाले प्रवासी राजस्थानी भी इस पर्व को अपन…और पढ़ेंX
मारवाड़ में बनी गवर-ईसर की करोडो की प्रतिमाएं हो रही एक्सपोर्ट
हाइलाइट्स
गणगौर पर्व पर गवर-ईसर की प्रतिमाओं की विदेशों में भारी मांग है.जोधपुर से गवर-ईसर की प्रतिमाएं 20 से अधिक देशों में निर्यात होती हैं.आम और सागवान की लकड़ी से बनी प्रतिमाएं दो से तीन दशक तक चलती हैं.
जोधपुर:- मारवाड़ में एक कहावत प्रचलित है, फागन मर्दों का तो चेत लुगाइयों का. होली के बाद मारवाड सहित पूरे प्रदेश में गणगौर महिलाओं का प्रमुख पर्व माना जाता है. चैत्र माह की शुक्ल पक्ष की तीज से शुरू होने वाला गणगौर का पूजन 16 दिनों तक चलता है. गणगौर के प्रतीक गवर-ईसर की सात समंदर पार विदेशों में भी पूजा होती है. इसके लिए दुनियाभर में लकड़ी के हैंडीक्राफ्ट उत्पादों के निर्यात के लिए प्रसिद्ध जोधपुर से गवर-ईसर की प्रतिमाएं भेजी जाती हैं. विदेशों में रहने वाले प्रवासी राजस्थानी व भारतीय लोग गणगौर पर इन प्रतिमाओं की पूजा करते हैं.
ऐसे में गणगौर के अवसर पर गवर माता व ईसरजी की प्रतिमाओं की देश-विदेश में डिमांड बढ़ी है. खास बात यह है कि इनको बनाने के लिए भी विशेष तकनीक का उपयोग किया जाता है. विदेशों में रहने वाले प्रवासी राजस्थानी भी इस पर्व को अपनी परंपराओं के लिहाज से आज भी वहां मनाते हैं. उसी के चलते गणगौर के अवसर पर करोडों रूपए की मूर्तियां जोधपुर और पूरे राजस्थान के अलग-अलग जिलों से एक्सपोर्ट हो रही हैं.
इस विशेष लकड़ी से तैयार होती है प्रतिमाएंगवर माता की छोटे कद से लेकर आदमकद तक की प्रतिमाओं को बारीक कलाकारी से तैयार करने में कई दिन लगते हैं. गवर-ईसर की प्रतिमा को तैयार करने में आम व सागवान की लकड़ी का उपयोग होता है. पहले लकड़ी से प्रतिमाओं को आकार देकर सुखाया जाता है, जिससे लकड़ी जितनी फटनी होती है, उतनी फट जाती है. फिर इन दरारों में मिक्सर भरकर उन्हें पक्का रूप दिया जाता है. जोधपुर का हैंडीक्राफ्ट विदेशों तक अपनी मजबूती के लिए पहचान रखता है. खास बात यह है कि इस तरीके से बनी प्रतिमाएं दो से तीन दशक तक चलती हैं.
सात समंदर पार इन देशों में बढ़ी डिमांडमारवाड़ के गवर-ईसर का अमेरीका, ऑस्ट्रेलिया, इटली, फ्रांस, जापान, इंग्लैण्ड, यूरोप, कनाडा, गल्फ व घाना सहित करीब बीस से अधिक देशों में निर्यात होता है. वहीं भारत के विभिन्न राज्यों में भी इन प्रतिमाओं की मांग के अनुसार सप्लाई की जाती है. होली के पहले से ही इसका निर्माण व निर्यात शुरू हो जाता है. पिछले दो वर्ष पहले की बात की जाए, तो बकायादा लंदन में विशेष आयोजन किया गया था, जिसमें गणगौर की सवारी निकाली गई थी और उस वक्त भी प्रतिमाएं राजस्थान के जोधपुर से ही एक्सपोर्ट हुई थी.
करोडों रूपए की प्रतिमाएं होती हैं एक्सपोर्टएक्सपोर्टर गिरीश जैन ने कहा कि हर बार सीजन में 100 से 200 प्रतिमाएं जाती हैं. हजारों रूपए से लेकर लाखों रूपए तक इसकी कीमत है. खास बात यह है कि सामान्य लकड़ी की प्रतिमाओं पर सोने का घोल तक लेपा जाता है. गवर-ईसर की प्रतिमा को तैयार करने में आम व सागवान की लकड़ी का उपयोग होता है. अमेरीका, ऑस्ट्रेलिया, इटली, फ्रांस, जापान, इंग्लैण्ड, यूरोप, कनाडा में इसकी डिमांड ज्यादा रहती है.
Location :
Jodhpur,Rajasthan
First Published :
March 24, 2025, 16:13 IST
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गवर-ईसर की विदेशों में भी पूजा, मारवाड़ में बनी करोडों की प्रतिमाएं एक्सपोर्ट