यह है चलता फिरता देसी फ्रिज…चिलचिलाती धूप में गले को दे राहत, जानें बनाने का तरीका

Last Updated:April 12, 2025, 16:26 IST
जालौर में गर्मी के चरम पर छागल या दिवड़ी की मांग बढ़ी. यह पारंपरिक जलपात्र सूती कपड़े से बना होता है, जो पानी को ठंडा रखता है. ग्रामीण क्षेत्रों में इसकी प्राथमिकता बढ़ी है.X
पखाल में प्राकृतिक तरीके से ठंडा होता पानी….
जालौर : जालौर की तपती धरती पर जब गर्मी अपने चरम पर होती है और पारा 43 डिग्री को पार कर जाता है, तब ठंडे पानी की अहमियत और बढ़ जाती है. ऐसे में इस इलाके की एक पारंपरिक चीज़ फिर से सड़कों चौराहों पर झूलती दिख रही है. इसे स्थानीय भाषा में छागल या दिवड़ी कहा जाता है, लेकिन प्राचीनकाल में इसका नाम ‘पखाल’ हुआ करता था.
इसे बेचने वाले घेवर वगेरा ने लोकल 18 को बताया कि…यह कोई आम बोतल नहीं, बल्कि विशेष किस्म के सूती कपड़े से तैयार एक थैला होता है. इसका एक सिरा बोतल के ढक्कन जैसा गोल आकार का होता है, जिसे लकड़ी के टुकड़े से बंद किया जाता है ताकि पानी गिरने न पाए. खास बात यह है कि यह कपड़ा पानी को भीतर लंबे समय तक ठंडा बनाए रखता है, क्योंकि हवा से संपर्क में आने पर पानी धीरे-धीरे वाष्पित होता है और अंदर की ठंडक बनी रहती है. इसे कांधे पर टांगा जा सकता है, जिससे चलते-फिरते भी ठंडा पानी सहजता से उपलब्ध रहता है.
गांवों में यह छागल कभी हर यात्री, किसान और पशुपालक के साथ दिखाई देता था. बदलते समय के साथ यह चलन कम हो गया, लेकिन अब जालौर जैसे गर्म इलाकों में यह दोबारा लौट रहा है. खासतौर पर ग्रामीण क्षेत्र के लोग आज भी इसे प्राथमिकता दे रहे हैं. न बिजली की जरूरत, न प्लास्टिक की बोतल- यह शुद्ध देसी तरीका आज भी लोगों को राहत दे रहा है.
छागल सिर्फ एक जलपात्र नहीं, बल्कि हमारी सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा है। यह हमें बताता है कि हमारे पूर्वजों की सोच कितनी व्यावहारिक, पर्यावरण के अनुकूल और विज्ञानसम्मत थी। आज जब गर्मी चरम पर है, तो यह ‘पखाल’ फिर से एक बार जीवनदायी साबित हो रहा है
पकाल के साथ-साथ सड़कों पर इन। दिनों सूत की बनी बोतलें और डिब्बे जिन्हें गेलनिये भी कहा जाता है। बहुत ही पसंद किए जा रहे हैं यह भी गर्मी में पानी ठण्डा करने में सहायक है।
Location :
Jalor,Rajasthan
First Published :
April 12, 2025, 16:26 IST
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यह है चलता फिरता देसी फ्रिज…चिलचिलाती धूप में गले को दे राहत, ऐसे होती तैयार