120 governments flats worth 20 crore got dilapidated just negligence of 20 Lakh nullah

श्याम बिश्नोई.
जालोर. जालोर जिले में लापरवाह सिस्टम की वजह से सरकार के करोड़ों रुपये को पानी में बह गए. साल 2001-02 में सरकारी कर्मचारियों के रहने के लिए फ्लैट बनाए गए थे लेकिन यह फ्लैट डूब क्षेत्र में बने और उसके बाद वहां पर किसी भी प्रकार की व्यवस्था ही नहीं की गई. लगातार 10 साल से यहां चारों तरफ गंदे पानी से घिरे होने की वजह से 120 से अधिक फ्लैट अलॉमेंट से पहले ही खंडहर में तब्दील हो गए. सात से अधिक ऑफिस गिरने की कगार पर हैं. यानी 20 लाख रुपये के नाले के अभाव में 20 करोड़ से अधिक रुपये की सरकारी संपत्ति को लापरवाह सिस्टम ने बर्बाद कर दिया.
जालोर जिला मुख्यालय पर महिला व बाल विकास का ऑफिस पिछले 7 सालों से टापू में तब्दील हो चुका है. चारों तरफ पानी से घिरे होने की वजह से मच्छरों का प्रकोप तो है ही, बिल्डिंग भी अब खंडहर में तब्दील हो चुकी है. ऐसा नहीं है कि विभाग की ओर से स्थानीय नगर परिषद या विभागीय अधिकारी को नहीं बताया गया. कई बार लेटर लिखे गए लेकिन किसी भी तरीके की व्यवस्था नहीं हुई. नतीजा यह हुआ कि अब बिल्डिंग गिरने की कगार पर है. वहीं कर्मचारियों के आने-जाने के लिए वहां पर रेत डलवाकर के वैकल्पिक रास्ता बनाया गया ताकि ऑफिस आया जा सके. गाड़ियां ऑफिस तक नहीं पहुंचती दूर छोड़नी पड़ती हैं.
पीडब्ल्यूडी अधिकारियों के पास दस्तावेज भी उपलब्ध नहीं है. जिले के सामतीपुरा रोड पर बनाए गए
सरकारी क्वार्टर की जानकारी को लेकर जब NEWS18 ने अधिकारियों से बातचीत करने की कोशिश की तो उन्होंने दो दिन तक दस्तावेज़ ढूंढने का बहाना बनाया. नतीजा ये हुआ कि उनके पास एक भी दस्तावेज भी नहीं मिला. सरकारी संपत्ति की मॉनिटरिंग करना तो दूर वहां के दस्तावेज भी उपलब्ध नहीं है. आय-व्यय का ब्योरा भी उपलब्ध नहीं है. इतना जरूर कहा कि यह अभी तक किसी के अलॉटमेंट नहीं हुए हैं, ऐसे में अंदाजा लगाया जा सकता है कि जालौर में किस तरीके से सरकारी सिस्टम सरकार के पैसों का दुरुपयोग कर रहे हैं और विभाग के बड़े अधिकारी मौन धारण कर बैठ चुके हैं.
पूरे मामले को लेकर जब हमारी टीम ने पानी निकासी को लेकर जिम्मेदार नगर परिषद के अधिकारियों से जवाब मांगा तो उन्होंने आनन-फानन में मौके पर जाकर के नाले की सफाई तो शुरू कर दी लेकिन किसी भी तरीके से पानी निकासी को लेकर प्रबंधन नहीं किया गया. नगर परिषद से सवाल किया कि पिछले 10 सालों से यहां पर पानी इकट्ठा था, सरकारी संपत्ति को बर्बाद किया जा रहा है, तो इसके बारे में नगर परिषद के पास कोई जवाब तक नहीं था.
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