Rajasthan

आओ फैलाएं माटी की गंध | Patrika Group Editor In Chief Gulab Kothari Special Article 7 March On 69th Foundation Day Of Patrika

समय की कसौटी पर एक और वर्ष पत्रिका की यात्रा में जुड़ गया। पत्रिका प्रत्येक दिन पर्व की भांति मनाते हुए नवीन उत्साह और नए संकल्पों का सूत्रपात करता रहा है। पाठकों के स्नेह ने संकल्पों को दृढ़ता का आधार दिया। मुझे यह कहते हुए गर्व है कि पत्रिका आज भी अपनी वही पहचान बनाए हुए हैं जिसको लेकर इसकी शुरुआत हुई थी।

गुलाब कोठारी
समय की कसौटी पर एक और वर्ष पत्रिका की यात्रा में जुड़ गया। पत्रिका प्रत्येक दिन पर्व की भांति मनाते हुए नवीन उत्साह और नए संकल्पों का सूत्रपात करता रहा है। पाठकों के स्नेह ने संकल्पों को दृढ़ता का आधार दिया। मुझे यह कहते हुए गर्व है कि पत्रिका आज भी अपनी वही पहचान बनाए हुए हैं जिसको लेकर इसकी शुरुआत हुई थी। इसका अर्थ यह भी है कि एक संकल्प था जो जनतंत्र में भागीदारी निभाना चाह रहा था-जनता के लिए और जनता के द्वारा। संकल्प टूटते रहते हैं-यदि व्यक्ति या संस्थान की इच्छाशक्ति कमजोर पड़ जाए। पत्रिका में ऐसा नहीं हुआ। कई परीक्षाएं ईश्वर ने ली, कई प्रलोभन पत्रिका के सामने आए। समय के साथ पत्रकारिता के आयाम भी बदले। आज तो स्वयं मीडिया ही चौथा पाया बन बैठा है। यह कहना मुश्किल हो गया है कि आने वाले समय में मीडिया की नई परिभाषा क्या होगी?

एक तरफ हम देखते हैं कि संवाद के बिना जीवन चलता ही नहीं है। मीडिया, संवाद का उद्योग है। साथ में यह भी दिखाई देने लगा है कि मीडिया किसको संबोधित कर रहा है और क्यों? एक समय था जब मीडिया के सामने लक्ष्य था, समाज के विकास में भागीदारी का संकल्प था। मीडिया यह जानने की भी कोशिश करता था कि वह जो संदेश पाठकों को दे रहा है वह पाठकों के पास उनकी ही भाषा में पहुंच रहा है या नहीं। मीडिया यह भी ध्यान रखता था कि उसके संदेश की पाठकों में क्या प्रतिक्रिया है? इस प्रतिक्रिया से वह अपनी विश्वसनीयता का आकलन भी करता रहता था। पत्रिका का अमृतं जलम् अभियान तो उदाहरण मात्र है। पत्रिका ने जनभागीदारी का आह्वान किया तो जो प्रतिक्रिया पाठकों ने दिखाई और जो परिणाम सामने आए वे प्रमाणित कर रहे हैं कि पत्रिका के जनभागीदारी के हर प्रस्ताव पर जनता तुरंत जुड़ाव दिखाती है। मीडिया की यही तो एक सार्थकता है। इस दृष्टि से मीडिया केवल समाचार का स्रोत ही नहीं है बल्कि जनशिक्षण का भी एक बड़ा माध्यम है। इसके बिना मीडिया की आवश्यकता ही क्या रह जाती है? आप कुछ कहो और सुनने वाला आपकी बात पर भरोसा ही नहीं करे तो कहने वाले की इज्जत क्या रह जाती है?

इस देश की संस्कृति हजारों-हजार साल बाद भी जीवित है तो वह केवल मीडिया की विश्वसनीयता के कारण। पहले मास मीडिया नहीं था और न ही संचार के इतने साधन थे फिर भी त्रेता युग के राम आज भी जनजीवन का अंग हैं, यह हाल ही पूरे देश ने देखा है। महाभारत दूसरा प्रमाण है, गीता प्रमाण है और छोटे-छोटे समुदायों के सांस्कृतिक धरातल की संवाद परंपरा प्रमाण है। कथकली, भरतनाट्यम, गवरी, नौटंकी आदि इस बात के साक्षी रहे हैं। आज मानव अति शिक्षित है, तकनीक में बहुत आगे है। पहुंच बहुत बढ़ गई है पर विश्वसनीयता उतनी ही खो गई है। लोग मीडिया का कितना अनुसरण कर पाते हैं-प्रतिदिन देखा जा सकता है। समय के साथ हमारी इस नई सभ्यता ने ऐसा क्या दिया कि आज आदमी का आदमी से विश्वास घटता ही जा रहा है। तब मीडिया राष्ट्र के विकास में अपनी भागीदारी कैसे निभाएगा?

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जब मीडिया चौथा स्तंभ बनकर सरकार का अंग बन जाता है तब तो भागीदारी की उम्मीद ही नहीं कर सकते। मीडिया उतावला है- सरकारों के साथ हाथ मिलाकर चलने को। पत्रकारों से ज्यादा प्रकाशक उतावले हैं। ऐसे परिवेश में पत्रिका अपने हर दायित्व को उसी संकल्प के साथ पूरा कर रहा है जिस संकल्प के साथ इसकी शुरुआत हुई थी। पत्रिका पूरे देश के लिए मंगलकामना करता है और उसी को ध्यान में रखकर संवाद करता है। पत्रिका, बुद्धि और मन के साथ-साथ आत्मा के धरातल पर संवाद करता है। यह पहली शर्त है मीडिया के प्रभावी होने की। आज की शिक्षा ने इस धरातल को उलट दिया। जो पत्रकार आजादी से पहले देश के लिए जान देने को तैयार था वह आज खुद सरकारों से अपेक्षा रखता है। नौकरी अखबार की करता है और सुविधाएं सरकारों से मांगता है। तब वह समाज का शुभचिंतक कैसे माना जाएगा?

जनभागीदारी का संकल्प
पत्रिका विश्वसनीयता का प्रकाश स्तंभ है। पिछले विधानसभा चुनावों में भी यह प्रमाणित हो गया। चुनावों में सकारात्मक भूमिका के लिए देश के निर्वाचन आयोग ने राजस्थान पत्रिका को सम्मानित भी किया। पिछले साल हमारे खाते में कई उपलब्धियां रहीं हैं। राजस्थान में मतदान की तिथि बदलने की बात हो या फिर मध्यप्रदेश में मतदाता सूचियों में गड़बड़ियों को उजागर करने की। हमारी खबरों ने जिम्मेदारों को सचेत किया। राजस्थान में तो पिछली सरकार के कार्यकाल में भ्रष्टाचार के मामलों में पकड़े जाने वाले अफसरों का फोटो नहीं छापने का आदेश तक जारी हो गया था। पत्रिका ने इसे मुद्दा बनाया तो यह फरमान वापस लेना पड़ा। मध्यप्रदेश में मिनी ब्राजील के नाम से पहचाने जाने वाले शहडोल के एक गांव के खिलाड़ियों की व्यथा पत्रिका ने प्रकाशित की तो प्रधानमंत्री खुद खिलाड़ियों से मिलने जा पहुंचे। छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में लौह अयस्क के खनन में जुटे श्रमिकों को रेल पटरी पार कर जाने की जोखिम से छुटकारा भी पत्रिका की खबरों से ही मिल पाया।

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ये तो उदाहरण मात्र हैं जो पत्रिका की विकास में जनभागीदारी निभाने के संकल्प के साथ-साथ सरकारों की जनविरोधी नीतियों को उजागर करने वाले हैं। समाज की विभिन्न समस्याओं पर निरंतर समाचार अभियान चलाकर शासन को सचेत करने और समाधान तक संघर्ष करने के प्रयासों के कई हल निकले हैं। पत्रिका ने कभी व्यापार को प्राथमिकता नहीं दी। जनता ही उसकी प्राथमिकता में है। पाठक ही पत्रिका का ईश्वर है। पाठक बड़ा होगा तो पत्रिका अपने आप ही बड़ा हो जाएगा। इसी भाव के साथ पत्रिका पाठकों से जुड़ा है। विकास के हर कदम पर पत्रिका की भूमिका रहती है।

लोकतंत्र की मशाल का प्रकाश फैलाने का अवसर भी आने वाले दिनों में आम चुनाव के रूप में आने वाला है। अकर्मण्यता, भ्रष्टाचार, अपराध और राष्ट्र और समाज के स्वरूप को आघात पहुंचाने वाली ऐसी प्रत्येक गतिविधि पर सतर्क नजर और उसे उजागर करने का दौर भी सामने है। पाठकों का विश्वास कायम रहे। वे पत्रिका को अपना हितैषी, मार्गदर्शक और आत्मीय सखा के तौर पर अपने निकट पाते रहेें, ऐसा संकल्प चरितार्थ होता रहे। यही इस अवसर पर विनम्र कामना है। पत्रिका के पाठक संस्कारों में कहीं आगे रहें, अपनी माटी से जुड़े रहें और माटी का कर्ज चुकाने की उन्हें चिंता बनी रहे यही हमारा उद्देश्य है। आइए, आप और हम मिलकर माटी की इस गंध को चहुंओर फैलाएं। नमस्कार।

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