इस वजह से नर्सिंग कर्मी बन गया किसान, दोस्त की सलाह पर शुरू की काले गेंहू खेती, अब खेत पर आने लगे हैं खरीदार

Last Updated:March 23, 2025, 16:58 IST
कोरोना काल में डॉक्टर दंपत्ति की मौत ने नर्सिंग कर्मी को झकझोर दिया. इम्यूनिटी का महत्व को समझते हुए दोस्त की सलाह पर काले गेहूं की खेती करने लगे. इसके लिए नर्सिंग कर्मी रामकिशोर ने 12 बीघा जमीन खरीदा. अभी पांच…और पढ़ेंX
नर्सिंग कर्मी का काम छोड़ यह व्यक्ति बने किसान
हाइलाइट्स
नर्सिंग कर्मी रामकिशोर ने काले गेहूं की खेती शुरू की.कोरोना काल में डॉक्टर दंपत्ति की मौत से प्रेरित हुए.काले गेहूं की खेती से इम्यूनिटी बढ़ाने पर जोर.
पाली. हमारे जीवन में कुछ घटनाएं ऐसी घटती है, जो कई तरह की सीख देकर जाती है. उसी सीख के चलते एक नर्सिंग कर्मी के जीवन में इस तरह का परिवर्तन आया कि आज वह युवा किसान बन गया. इसके पीछे का कारण है कोरोना का वह काल जिसको वह भूल नहीं सका है. कोरोना काल में डॉक्टर दंपत्ति की मौत ने नर्सिंग कर्मी को झकझोर दिया. नर्सिंग कर्मी डॉ. दंपत्ति के अस्पताल में ही काम करता था. कोरोना काल में इम्यूनिटी का महत्व पता चला.
इसके बाद नर्सिंग कर्मी किसान बन गया और काले गेहूं की खेती करने लगे. मूलरूप से अलवर जिले के रहने वाले रामकिशोर ने पाली के बाली में फालना रेलवे स्टेशन से 2 किलोमीटर दूर खुडाला गांव में काले गेहूं की खेती की है. उनके माता-पिता हरियाणा में किसान हैं.
कोरोना काल में इस कारण बंद हुआ अस्पताल
फालना के व्यास अस्पताल में कोरोना महामारी के दौरान व्यास दंपत्ति की मौत हो गई और अस्पताल भी बंद हो गया. रामकिशोर ने बताया कि एक बार चाय की दुकान पर मेरी मुलाकात किसान राकेश ठकराल से हुई. राकेश खेती में नवाचार के लिए जाने जाते हैं. बातचीत के क्रम में उनसे दोस्ती हो गई. उन्होंने सुझाव दिया कि काला गेहूं की खेती करो, इससे लाखों में इनकम होगी. तब से तय कर लिया कि काले गेहूं की खेती करेंगे. रामकिशोर ऑर्गेनिक तरीके से काले गेहूं की खेती करना शुरू किया. खरीदार अभी से एडवांस बुकिंग देने को तैयार हैं और 8 हजार रुपए प्रति क्विंटल का भाव दे रहे हैं.
दोस्त ने दिखाया खेती का रास्ता
रामकिशोर ने बताया कि 10वीं में जब पढ़ाई कर रहे थे, तब माता-पिता हरियाणा के रेवाड़ी में खेती-बाड़ी करते थे. पढ़ाई के साथ पिता का मदद भी करते थे. जब नौकरी लगी तो माता-पिता सहित पूरा परिवार अलवर आकर शिफ्ट हो गए. अब फालना में पूरी तरह खुद खेती कर रहे हैं. दोस्त ने जब काले गेहूं की खती करने को कहा तो सबसे पहले 12 बीघा जमीन खरीदा. इस बार 5 बीघा में काले गेहूं की खेती कर रहे हैं. खेत में सिर्फ गाय का गोबर और और अन्य आर्गेनिक खाद का ही प्रयोग किया है और गेहूं की फसल 5 फीट का हो गया है.
इस वजह से कर रहे हैं काले गेहूं की खेती
रामकिशोर ने बताया कि कोरोना काल में इम्यूनिटी कमजोर होने के कारण दंपत्ति की मौत हुई, इसलिए यह देखना जरूरी है कि हमारा खानपान कितना बेहतर है, क्योंकि उसी पर इम्यूनिटी निर्भर करती है. रामकिशोर बताते हैं कि खुद नर्सिंग कर्मचारी रहे हैं, इसलिए हेल्थ के लिए क्या जरूरी है, यह समझते हैं. हम बच्चों को डीएपी यूरिया का जहर क्यों खिलाएं, इसलिए नजदीकी गांव कुडाला से ही गोबर की खाद लाते हैं. किसानों से अपील है कि वे देसी खाद का इस्तेमाल करें. इससे न जमीन खराब होगी न फसल और लोगों की सेहत से भी खिलवाड़ नहीं होगा. काले गेहूं की रोटी खाने से इम्यूनिटी बेहतर होती है. डायबिटीज के मरीज के लिए काला गेहूं फायदेमंद है. इसमें फाइबर की मात्रा ज्यादा होती है. पेट संबंधित रोगों के लिए यह रामबाण है. इस गेहूं का काला रंग एंथ्रोसाइनिन पिगमेंट के कारण होता है.
मेडिकल फील्ड में है पूरा परिवार
रामकिशोर का पूरा परिवार मेडिकल लाइन से जुड़ा है. उनकी पत्नी भतेरी देवी कोट बालियान में नर्स के पद पर कार्यरत हैं और कभी-कभी खेती में भी हाथ बंटाती हैं. बेटे सौरभ ने जोधपुर में एमबीबीएस की पढ़ाई की है और वर्तमान में जयपुर में आगे की तैयारी कर रहे हैं. बेटी निकिता अजमेर के महिला चिकित्सालय में डॉक्टर के पद पर कार्यरत हैं.
First Published :
March 23, 2025, 16:58 IST
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नर्सिंग कर्मी बन गया किसान, शुरू की काले गेंहू खेती, खेत पर आने लगे हैं खरीदार