Health

बहुत घातक है यह दुर्लभ बीमारी, गर्भ में ही हो जाता शुरू, इलाज नहीं हुआ तो जवानी से पहले बेकाम, एक्सपर्ट से जानें परिणाम

हाइलाइट्स

एसएमए बीमारी इतनी घातक है कि अगर समय पर इसका इलाज न किया जाए तो अधिकांश मामलों में मौत निश्चित है.
टाइप 1 एसएमए 6 महीने से कम समय के बच्चे में विकसित हो जाता है और यह सबसे गंभीर है.

What is Spinal Muscular Atrophy: इस बीमारी का नाम है स्पाइल मस्कुलर अट्रॉफी यानी एसएमए (Spinal muscular atrophy-SMA). यह बहुत दुर्लभी बीमारी है जो जीन से संबंधित है. यह बीमारी कई हजार लोगों में किसी एक को होता है. हालांकि भारत में हर साल करीब साढ़े तीन हजार एसएमएस से पीड़ित बच्चे पैदा ले रहे हैं. एसएमए ऐसी बीमारी है जिसमें मसल्स इतने कमजोर हो जाते हैं कि मरीज को खुद से कुछ भी काम करना संभव नहीं हो पाता है. यह बीमारी मां के गर्भ में ही शिशु को हो जाती है लेकिन जन्म के बाद यह धीरे-धीरे विकसित होती है. शुरुआत में इसके कोई लक्षण नहीं दिखते लेकिन 6-7 महीने बाद से इसके लक्षण विकसित होने लगते हैं.

एसएमए बीमारी इतनी घातक है कि अगर समय पर इसका इलाज न किया जाए तो अधिकांश मामलों में मौत निश्चित है. अगर बीमारी की गंभीरता कम है तो वयस्क होने तक इसके लक्षण विकसित हो सकते हैं. चूंकि यह बीमारी जीन से संबंधित है और इस मामले में किसी साधारण डॉक्टर के पास बमुश्किल ही कुछ जानकारी होती है, इसलिए हमने इसके लिए सर गंगाराम अस्पताल में इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल जेनेटिक्स एंड जीनोमिक्स की चेयरपर्सन डॉ. रत्ना दुआ पुरी से बात की.

क्या है यह बीमारी और क्या है इसके लक्षण

डॉ. रत्ना दुआ पुरी ने बताया कि एसएमए मसल्स से संबंधित बीमारी है, इसलिए इस बीमारी में मसल्स बहुत ही कमजोर हो जाते हैं. इसमें एसएमएन1 जी (सर्वाइवल मोटर न्यूरॉन 1 जीन) जीन मीसिंग हो जाती है. यह जीन मसल्स को मजबूत रखने के लिए जिम्मेदार होती है. यही जीन पूरे शरीर में मोटर न्यूरॉन को मैंटेन करती है. मोटर न्यूरॉन हाथ-पैर के मूवमेंट के लिए जरूरी है. जीन का एक छोटा भाग मिसीग. ठीक तरीके से काम नहीं करते. मरीज के मसल्स कमजोर हो जाते हैं. इसलिए अगर यह बीमारी बहुत गंभीर है तो बच्चे के पैदा लेने के कुछ ही दिनों बाद लक्षण दिखने लगते हैं.

इसमें बच्चे को सांस लेने में दिक्कत होने लगती है. बच्चे को दूध पिलाना मुश्किल हो जाता है. बच्चा हाथ-पैर कम मारता है. चलने के लिए बहुत जद्दोजेहद करना पड़ता है. वजन ठीक से नहीं बढ़ता. इसमें बच्चा मैंटली तो अलर्ट होता है, वह सब कुछ बोलने भी लगता है, सब कुछ ठीक से समझता है लेकिन बैठने में, चलने में दिक्कत होती है. कुछ बच्चों में इसके लक्षण शुरुआत में दिखने लगते हैं तो कुछ में 6-8 महीनों के बाद तो कई बार 2-3 साल के बाद. कुछ मामलों में वयस्क होने के बाद भी यह बीमारी विकसित हो सकती है. यह इस बात पर निर्भर करता है कि बीमारी की गंभीरता कितनी है. अगर बीमारी टाइप 1 प्रकृति की है और इसका इलाज नहीं किया गया तो मौत निश्चित है. कम गंभीर बीमारी वाले बच्चों में अलग-अलग उम्र में लक्षण दिख सकते हैं. बाद में होने वाली बीमारी में सबसे ज्यादा स्पाइन की दिक्कत होती है.

स्पाइल मस्कुलर अट्रॉफी के प्रकार

एसएमए चार प्रकार के होते हैं. टाइप 1 सबसे खतरनाक और घातक है. टाइप 1 एसएमए 6 महीने से कम समय के बच्चे में विकसित हो जाता है और यह सबसे गंभीर है. अगर इलाज नहीं किया गया तो मौत लगभग तय है. टाइप 2 एसएमए के लक्षण 7 से 18 महीने के बच्चों में दिखते हैं. यह टाइप 1 से थोड़ा गंभीर है. टाइप 3 के लक्षण 18 महीने के बाद दिखते हैं जो बच्चों में सबसे कम गंभीर है. वहीं टाइप 4 एसएमए वयस्क होने पर विकसित होता है.

कैसे पता करें कि बच्चे एसएमए है

डॉ. रत्ना दुआ पुरी ने बताया कि इसे पता करने के दो तरीके हैं. अगर महिला का पहले का बच्चा एसएमए से पीड़ित है तो अगला बच्चे में इस बीमारी के होने का खतरा ज्यादा रहता है. उस स्थिति में प्रेग्नेंसी के दौरान जांच की जा सकती है. वहीं कपल कैरियर स्क्रीनिंग टेस्ट दूसरा तरीका है. इसमें पति-पत्नी का ब्लड टेस्ट किया जाता है. इसमें अगर पता चल जाए कि माता-पिता इस जीन का कैरियर है तो 11 सप्ताह बाद पेट में ही बच्चे का टेस्ट किया जाता है. अगर शुरुआत में इसका पता चल जाए तो बीमारी को मैनेज करना आसान होता है.

क्या है इसका इलाज

डॉ. रत्ना दुआ पुरी कहती हैं कि अगर शुरुआत में इसका पत चल जाए तो इसका तीन तरह से इलाज किया जा सकता है. हालांकि इसे पूरी तरह से ठीक करना मुश्किल है लेकिन अब कई तरह के इलाज आ गए हैं जिनसे इस बीमारी को मैनेज किया जा सकता है. कुछ ऐसे उपकरण हैं जिनकी मदद से जीवन को आसान किया जा सकता है. वहीं फिजियोथेरेपी इसका सबसे बेस्ट इलाज है. कुछ दवाइयां भी हैं जिनकी मदद से इस गलत जीन को ठीक करने की कोशिश की जाती है. अगर बीमारी की गंभीरता ज्यादा है तो इसमें सर्जरी भी मदद कर सकती है.

जागरूकता ज्यादा जरूरी

डॉ. रत्ना दुआ पुरी कहती हैं चूंकि यह बीमारी बहुत रेयर हैं और काफी गंभीर भी, इसलिए माता-पिता के पास इस बात की जानकारी होनी जरूरी है. जब यह बीमारी होती है तो ज्यादातर लोग इसे सामान्य कमजोरी या हड्डियों की कमजोरी मान लेते हैं. ऐसे में वे इलाज सही से नहीं करा पाते. साधारण डॉक्टर इस बीमारी का इलाज नहीं कर पाते. इसके लिए एक्सपर्ट डॉक्टर के पास जाना जरूरी होता है. इसलिए पैरेंट्स को चाहिए कि उपर के लक्षण दिखने पर तुरंत बच्चे को एक्सपर्ट डॉक्टर के पास ले जाएं. इसमें मल्टी डिसिप्लिनरी केयर की जरूरत होती है. अगर बीमारी की पकड़ शुरुआत में हो जाए तो इसका मैनेजमेंट आसान हो जाता है. वहीं बाहर के देशों में बच्चे के पैदा लेते ही न्यूबोर्न स्क्रीनिंग टेस्ट किया जाता है. इससे बच्चे में अगर किसी भी तरह की बीमारी या जीन से संबंधित बीमारी है तो इसका पता चल जाता है.

इसे भी पढ़ेंब्रेन को सुपर शार्प बनाने में यह खास कंपाउड अमृत समान, हार्वर्ड हेल्थ के वैज्ञानिकों ने बताए राज, आप भी बना सकते हैं पावरफुल मेमोरी

इसे भी पढ़ेंमाधुरी दीक्षित के डॉक्टर पति श्रीराम नेने ने नाश्ते को पौष्टिक बनाने के लिए दिए गजब के ये 5 टिप्स, बीमारियों से निजात दिलाएंगे ये नुस्खे

Tags: Health, Health tips, Lifestyle

Source link

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button

Uh oh. Looks like you're using an ad blocker.

We charge advertisers instead of our audience. Please whitelist our site to show your support for Nirala Samaj