Tribute to Swara Kokila Lata Mangeshkar death singing Son Chirayya nodakm – लता मंगेशकर को श्रद्धांजलि : उड़ गई सुर की ‘सोन चिरैय्या’ | – News in Hindi

पंछी उड़ गया… शाख हिलती रही… फूल मुरझा गया… खुशबू बहती रही. सुर की सोन चिरैय्या ने आज अनंत में ऐसी ही उड़ान भरी है. बाकी रह गए मौसिकी के महकते हुए बेशुमार मंज़र. एक आवाज़ गगन में गूंजी रही है- ‘रहें न रहें हम, महका करेंगे, बन के कली, बन के सबा, बाग़-ऐ-वफ़ा में’. लता मंगेशकर ने इस दुनिया-ऐ-फ़ानी को अलविदा कह दिया.
सरगम के सात सुरों का कोई मीठा-लरजता हुआ सा सुर खामोश हो गया. सुर की देवी अपने अहसासों के पवित्र आंचल में सारी कायनात को पनाह देती शून्य में विलीन हो गई. क्या ही अजीब संयोग कि वसंत की पंचमी वाणी की इस दैवीय अवतार का आखरी दिन और अगली सुबह महाप्रस्थान. नियति को यही मुहूर्त मुक़र्रर था. आशंकाओं पर विराम लगा और एक निर्मम सच पर दुनिया यकीन करने को विवश है.
बड़ा कठिन होता है, ऐसे वक़्त पर उस शख्स पर लिखना, जिसके पैमाने आसमान, समंदर, और हिमालय सा शिखर हो. लफ़्ज़ों में लता जैसी किवदंती पर कुछ कहना आसान नहीं, लेकिन इस समय उनकी जिस्मानी मौत पर जब करोड़ों रूहें उन्हें याद करते हुए बिलख रही हैं तब उन धड़कनों की ओर से श्रद्धा में माथा तो झुकाया जा सकता है.
पार्श्व गायन की कला को तमाम पैमानों से ऊपर उठकर एक ऐसे मुकाम पर लता मंगेशकर ने पहुंचाया, जहां जीवन और प्रकृति की सारी-धड़कनों को आध्यात्मिक सौंदर्य और मीठी मादकता में बहते रहने का सुकून तथा आनंद पाया जा सकता है. इस सुर साम्राज्ञी का हासिल वो करोड़ों प्रशंसक हैं, जिनकी आत्मा का रस भाव इस कंठ में छलकता रहा.
हज़ारों गीत लता का कंठहार बने. उनका लेखा-जोखा लेकर बैठें तो जीवन ही कम है, लेकिन रत्नगर्भा भारत की मिटटी धन्य है जहां प्रतिभाएं किसी दिव्या चेतना की तरह अपना उजाला बिखेरती हैं और समय के पार अपनी अमरता का उद्घोष करती हैं. लता मंगेशकर स्वर की एक ऐसी शाष्वत अमृत धरा हैं. उनका निधन दुनिया की एक महान क्षति है.
आने वाली पीढ़ियां इस बात पर रश्क करेंगी कि हिन्दुस्तान की सरज़मीं पर एक स्त्री संगीत के सात सुरों का दिलकश दरिया लिए अपनी पुरकशिश आवाज़ का तिलिस्म जगाती रही.
28 सितम्बर 1929 को इंदौर के सिख मोहल्ले में अपनी मौसी के घर लता ने जन्म लिया. शनिवार का दिन था. यह भी अजीब संयोग कि शनिवार ही उनके जीवन का आखरी दिन रहा. पिता दीनानाथ मंगेशकर से मिले संगीत के सबक लता ने आखरी सांस तक मेहफ़ूज़ रखे. वे इस ऋण को धारण किये धन्यता से भरी रही.
चित्रपट और उससे परे हिंदी और अनेक भाषाओं में गाये गीतों की फेहरिस्त पर निगाह जाती है तो अजूबे कि तरह उनका योगदान दिखाई देता है. नब्बे के आसपास की उम्र ने देह को भले थका दिया हो, लेकिन ईश्वर के प्रति गहरी आस्था और आध्यात्मिक शक्ति को संचित करते हुए वे सारी दुनिया के अमन, चैन की प्रार्थना में अपनी आवाज़ का अलख जगाने की कामना से भरी रहीं.
तभी तो माया गोविन्द ने कहा था- ‘ये संसार वृक्ष श्रुतियों का, तुम सरगम की लता सरीखी. कोमल शुद्ध तीव्र पुष्पों की छंद डोर में स्वर माला सी. तेरे गान वंदना जैसे, ईश्वर में ज्यों ईश्वर हो. वे जीवन के गहरे संतोष से भरी रहीं. एक साक्षात्कार में उन्होंने कहा था ‘आज मुझे लगता है कि हे प्रभु! तुमने जो भी दिया, बहुत दिया; दूसरों से कहीं ज़्यादा दिया. कृपा की जैसी मुझे छांह दी है, वैसे ही हर कलाकार और नेक इंसान के ऊपर भी रखना. यही प्रार्थना है.’
वाक़ई लता जी को वो सब मिला, जिसकी वे हकदार थीं. 2001 में सर्वोच्च नागरिक अलंकरण भारत रत्न से लेकर पद्मभूषण और सिनेमा के इलाके से जुड़े सैंकड़ों सम्मान और उपलब्धियां. उनका मानना था कि सम्पूर्णता आतंरिक भाव है, जो किसी भी पुरस्कार या परिस्थिति से जन्म नहीं लेता. वह भीतर से आता है. आपकी अपनी-भक्ति और विश्वास भी उसमें सहायक होते हैं.
वाकई, लताजी का आंतरिक मनोबल ऐसे ही आध्यात्मिक भाव तत्वों से मिलकर तैयार हुआ. जीवनभर गाते रहने के बाद भी लता जी को यह लगता रहा कि कुछ बाकी है जो स्वर में ना आ सका. वो क्या था? समीक्षक अजात शत्रु ने जब एक दफा यह सवाल किया था तो लता जी ने कहा था – ‘खामोशी’. अनहद के आसमान में उड़ चली सुर की इस सोन चिरैय्या के लिए अब अपनी ख़ामोशी को गाना शायद आसान होगा, लेकिन दुर्भाग्य कि हम उसे सुन न सकेंगे.
(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए News18Hindi किसी भी तरह से उत्तरदायी नहीं है)

विनय उपाध्यायकला समीक्षक, मीडियाकर्मी एवं उद्घोषक
कला समीक्षक और मीडियाकर्मी. कई अखबारों, दूरदर्शन और आकाशवाणी के लिए काम किया. संगीत, नृत्य, चित्रकला, रंगकर्म पर लेखन. राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उद्घोषक की भूमिका निभाते रहे हैं.
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