Rajasthan

ऋषि का श्राप और इंद्र की परियां बन गईं थी यह…700 साल पुरानी मान्यता, प्रसाद में चढ़ाई जाती है तांबे और चांदी की जीभ

Last Updated:March 05, 2025, 11:48 IST

Jaipur’s Mahamaya Temple : जयपुर के पास सामोद गांव में 700 साल पुराना महामाया मंदिर है, जिसे बच्चों वाली देवी का मंदिर कहा जाता है. यहां तुतलाते बच्चों की बोली सुधारने के लिए चांदी और तांबे की जीभ चढ़ाई जाती है…और पढ़ेंX
महामाया
महामाया माता मंदिर 

हाइलाइट्स

सामोद गांव में 700 साल पुराना महामाया मंदिर हैबच्चों की बोली सुधारने के लिए चढ़ाई जाती है चांदी और तांबे की जीभइंद्र की परियों को ऋषि ने श्राप देकर महामाया बनाया

जयपुर. राजधानी जयपुर से 48 किलामीटर दूर सामोद गांव में 700 साल पुराना एक महामाया मंदिर का मंदिर मौजूद है. महामाया माता को बच्चों वाली देवी कहा जाता है. इस मंदिर से जुड़ी अनेकों मान्यताएं भी हैं. इस मंदिर में दिल्ली, हरियाणा, गुजरात सहित अनेक राज्यों से भक्त अरदास लेकर आते हैं. इस मंदिर तक पहुंचने के लिए रेतीले और पहाड़ी क्षेत्र से गुजरना पड़ता है. यहां पर हर साल लाखों भक्त जात और जड़ूले के लिए आते हैं.

चांदी और तांबे की चढ़ाई जाती है जीभ  पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस मंदिर में सबसे बड़ा चमत्कार उन बच्चों के लिए देखा जाता है, जो बच्चे बचपन से तुतला कर बोलते हैं या फिर बोली नही आती है. इस तरह के बच्चों की 7 बार यहां जात लगाई जाती है. इसके साथ ही चांदी और तांबे की धातु की जीभ बनाकर इस मंदिर में चढ़ाने से बच्चों की बोली सही हो जाती है. इसी कारण महामाया माता को बच्चों वाली देवी कहा जाता है. दूर दराज से हर साल अपने बच्चों को लेकर यहां आते.

वहीं, इस मंदिर को लेकर एक और मान्यता है कि इस माता के मंदिर में पालना लटकाने से बीमार बच्चे ठीक हो जाते हैं. चैत्र वैशाख के नवरात्रों व भाद्रपद महीने में यहां पर श्रद्धालुओं की काफी भीड़ देखने को मिलती है. करीब 700 वर्ष पहले बने इस मंदिर का गुणगान आज भी श्रद्धालु करते हैं.

इंद्र की परियां ऋषि से श्राप से बनी महामाया बताया जाता है कि 700 साल पहले महामाया मंदिर के स्थान पर द्वारका दास महाराज तपस्या करते थे. संत की तपस्या के दौरान इन्द्रलोक से इंद्रदेव कि 7 परियां तपस्या स्थल के समीप स्थित बावडी में स्नान करने आती थी. स्नान करते समय इंद्र की 7 परियां बहुत शोरगुल एवं अठखेलियां करती रह रही थी. परियों की अठखेलियों और शोरगुल से संत द्वारका दास की तपस्या में व्यवधान पड़ता था.

तपस्वी द्वारका दास ने कई बार परियों को शोर गुल करने से मना किया, लेकिन इंद्र की परियों ने शोरगुल बन्द नहीं किया. जिससे एक दिन एक दिन द्वारका दास जी को क्रोध आ गया औरउन्होंने परियों को सबक सिखाने की ठान ली. इंद्र की परिया रोजाना की तरह अगले दिन भी नहाने के लिए अपने वस्त्र उतार कर बावड़ी में उतर गई और तेज तेज शोरगुल करने लगी.

तभी तपस्वी द्वारका दास महाराज बावड़ी के पास आए और परियों के वस्त्र छुपा दिये. परियां जब स्नान करके ऊपर आई तो उन्हें अपने वस्त्र नहीं मिले. परियों ने जब तपस्वी के पास अपने वस्त्र देखे तो अपने वस्त्र मांगने लगी, लेकिन तपस्वी ने परियों को वस्त्र वापस नहीं दिए और परियों को हमेशा के लिए यही आबाद रहने का श्राप दे दिया. तपस्वी ने कहा कि आज से तुम सातो यही बस जाओ और लोगो कि सेवा करो, सच्चे मन से जो भी यहां आये उनकी मुरादे पूरी करो. तब से ये सातों परियां यही निवास करती हैं. जो भी यहां आस्था श्रद्धा के साथ मनोकामना लेकर आता है उसकी मनोकामना पूर्ण होती है.


Location :

Jaipur,Rajasthan

First Published :

March 05, 2025, 11:42 IST

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