Uttarkashi Tunnel Crash: क्या होती है रैट माइनिंग, जिससे बचेगी 41 मजदूरों की जान

उत्तरकाशी के सिलक्यारा टनल हादसे के 17वें दिन रेस्क्यू टीम को सफलता मिली है। मंगलवार को रेस्क्यू ऑपरेशन का काम अंतिम चरणों में पहुंच चुका है। 57 मीटर की ड्रिलिंग के बाद रेस्क्यू टीम को ब्रेकथ्रू मिला और अब 45 फीट से आगे की खुदाई हाथों के जरिए रैट माइनर्स कर रहे हैं।
भारी भरकम मशीनों के फेल हो जाने के बाद अब सुरंग के अंदर फंसे मजदूरों को बाहर निकालने के लिए रैट माइनर्स को लगाया गया है जो चूहे की तरह कम जगह में तेज खुदाई करने वाले विशेषज्ञों की एक टीम है। ये लोग आगे की खुदाई हाथ से कर रहे हैं जिसके लिए इनके पास हथौड़ा, साबल और खुदाई करने वाले कई टूल्स हैं।
क्या होता है रैट माइनिंग?
सिल्क्यारा सुरंग में सभी मशीनों के फेल होने के बाद हॉरिजॉन्टल खुदाई करने का फैसला किया गया, जो कि मैनुअल विधि से पूरी की गई। दरअसल, इसके लिए सुरंग बनाने वाले कुशल कारीगरों की जरूरत होती है। इन कारीगरों को रैट माइनर्स कहा जाता है। रैट माइनर्स को संकीर्ण सुरंग बनाने के लिए तैयार किया जाता है। इनका काम मेघालय जैसे इलाकों में कोयला निकालने के लिए किया जाता है। यह माइनर्स हॉरिजॉन्टल सुरंगों में सैकड़ों फीट तक आसानी से नीचे चले जाते हैं।
कैसे होती है रैट माइनिंग
दरअसल, इस प्रक्रिया में आमतौर पर एक व्यक्ति के लिए पर्याप्त गड्ढा खोदा जाता है। एक बार गड्ढा खोदे जाने के बाद मजदूर रस्सी या बांस की सीढ़ियों के सहारे सुरंग के अंदर जाते हैं और फिर फावड़ा और टोकरियों जैसे उपकरणों के माध्यम से मैनुअली सामान को बाहर निकालते हैं।
9 साल पहले बैन की गई प्रक्रिया
साल 2015 में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने मजदूरों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए इस विधि पर प्रतिबंध लगा दिया था। हालांकि, इसके बाद भी कई इलाकों में रैट माइनिंग जारी है, जो कि अवैध माना जाता है। मेघालय में सबसे ज्यादा रैट माइनिंग होती है, जिसके कारण न जाने कितने ही मजदूरों को अपनी जान गंवानी पड़ जाती है।
मजदूरों के निकालने में लग सकती है पूरी रात
वहीं, बचाव कार्य पर जानकारी देते हुए एनडीएमए के सदस्य लेफ्टिनेंट जनरल सैयद अता हसनैन (सेवानिवृत्त) ने बताया कि मेरे मुताबिक, इस ऑपरेशन को पूरा करने में पूरी रात लग जाएगी।
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