पगार में पुरुषों से पीछे हैं 67 फीसदी महिलाएं
जयपुर . वेतन या मजदूरी में असमानता लोकतंत्र को चोट पहुंचा रही है। संविधान में समानता का अधिकार होने के बावजूद देश में 67 प्रतिशत महिलाएं पुरुषों के मुकाबले कम पगार पर काम करने को मजबूर हैं, यह अंतर युवा महिलाओं के साथ अधिक है। मुस्लिम तथा अनुसूचित जाति व जनजाति के लोगों को भी असमानता झेलनी पड़ती है।वेतन या मजदूरी में असमानता ग्रामीण महिलाओं के साथ अधिक है पर शहर में भी समस्या है। ऑक्सफैम इंडिया की बुधवार को जारी ‘भारत में असमानता-2022’ रिपोर्ट श्रम व वेतन में भेदभाव पर आधारित है, जिससे लोकतंत्र पर प्रहार करती वेतन में असमानता का खुलासा हुआ है। रिपोर्ट के अनुसार 2019-20 में 60% से अधिक वयस्क पुरुषों के पास रोजगार था, जबकि ऐसी महिलाओं का प्रतिशत 19 था।
रिपोर्ट में रखा 15 साल का लेखा-जोखा
वर्ष 2004-05 से 2019-20 तक के आंकड़ों पर रिपोर्ट तैयार की गई। इसके अनुसार गावों में कामगार महिलाएं मजदूरी में असमानता झेल रही हैं, जबकि शहरों में 98 प्रतिशत कामगार महिलाओं की यह स्थिति है। नियोक्ताओं के पूर्वाग्रह से 67 प्रतिशत महिलाओं को भेदभाव झेलना पड़ रहा है, वहीं 33 प्रतिशत महिलाओं को अनुभव की कमी से कम वेतन मिलता है।
समुदायों में भी भेदभाव
शहरी क्षेत्रों में सामान्य श्रेणी के व्यक्तियों की आय अनुसूचित जाति-जनजाति के कामगारों से 25 प्रतिशत अधिक थी। सामान्य श्रेणी के व्यक्तियों को औसत 20,000 रुपए मिल रहे थे तो अनुसूचित जाति-जनजाति वालों की आमदनी 15,000 रुपए थी। स्वरोजगार से जुड़े सामान्य श्रेणी के व्यक्तियों की औसत कमाई 16,000 रुपए थी, जो एससी-एसटी के लिए 11,000 रुपए थी। मुस्लिम परिवारों को भी भेदभाव का सामना करना पड़ा।
पुरुषों की कमाई ढाई गुना अधिक
स्वरोजगार से जुड़ी महिलाओं की औसत आय 6626 रुपए थी, जबकि पुरुषों की ढाई गुना 15,996 थी।