पापड़ इतना स्वाद भरा…क्या है इसका राज भला
इस तरह तैयार होती है पापड़ की साजी
1. साजी के पौधे काटकर सुखाते हैं।
2. भट्टीनुमा गढ्डे में जलाया जाता है।
3. तरल पदार्थ गढ्डे में जम जाता है।
4. ठंडा होने में 20 दिन लगते हैं, उसके बाद यह ठोस अर्थात पत्थर बन जाती है।
जाली के ऊपर साजी एकत्रित होती है, जबकि जाली के नीचे चौवा जमा होता है। चौवे का उपयोग आयुर्वेदिक दवाओं में किया जाता है। साजी का चूण पानी में मिलाकर छानते हैं। साजी का पानी ही पापड़ को जायकेदार व कड़क बनाता है।
खड़ी फसल का होता है सौदा
पापड़ के लिए साजी का अहम योगदान है, लेकिन इसको बेचने के लिए कोई मंडी नहीं है। बीकानेर के व्यापारी किसानों से सीधे सम्पर्क कर साजी की खड़ी फसल का सौदा कर लेते हैं और अपने स्तर पर तैयार करवाते हैं। १५ हजार प्रति बीघा के हिसाब से इसका सौदा होता है, जबकि साजी बनने के बाद इसकी कीमत ३० से ४० हजार रुपए प्रति क्विंटल तक पहुंच जाती है। जानकारों की मानें तो एक बीघा में करीब एक क्विंटल साजी बन जाती है।
साल में एक ही फसल, अधिक पानी की जरूरत नहीं
बंजर पड़ी क्षारीय व अनुपजाऊ भूमि में साजी की फसल को लेकर किसानों का रुझान बढ़ा है। वर्ष में केवल एक ही फसल होती है। बीते साल सितंबर -अक्टूबर में साजी की कटाई के बाद फरवरी माह में फिर से फुटान हो गया है। यह फसल आगामी सितंबर-अक्टूबर महीने में फिर से कटाई योग्य हो जाएगी। साजी की पैदावार शुष्क मौसम में अधिक होती है। इसकी बुवाई बरसात से पहले जमीन में बीजों का छिड़काव कर की जाती है। पौधा तैयार कर पौधरोपण भी किया जाता है। क्यारियां बनाकर या गढ्डे खोदकर भी इसकी बुवाई की जाती है। अधिक बरसात होने पर इसकी पैदावार कम होती है।
पांच साल का फसल चक्र
साजी झाड़ प्रकृति की फसल है। इसके लिए शुष्क जलवायु और क्षारीय भूमि उपयुक्त रहती है। बिजाई खरीफ में और कटाई रबी के सीजन में होती है। इसकी बार-बार बिजाई नहीं करनी पड़ती है। ऊपर से काटते हैं तो फिर से फुटान हो जाता है। इसका पांच साल का फसल चक्र होता है।
सत्यपाल सहारण, सहायक कृषि अधिकारी (उद्यान) रायसिंहनगर