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मिल्खा सिंह ने पाकिस्तानी फील्ड मार्शल के उड़ा दिए थे होश, जानिए बंटवारे से लेकर बुलंदियों तक की कहानी

मिल्खा सिंह का एक महीने तक कोरोना संक्रमण से जूझने के बाद शुक्रवार देर रात 11:30 बजे चंडीगढ़ में निधन हो गया।

नई दिल्ली। फ्लाइंग सिख मिल्खा सिंह (Milkha Singh Death) आखिरकार शुक्रवार को कोरोना से जिंदगी की रेस हार गए हैं। 91 साल की उम्र में उनका निधन हो गया। भारतीय इतिहास में जब-जब महान धावकों को याद किया जाएगा लोगों के जहन में सबसे पहले ‘फ्लाइंग सिख’ मिल्खा सिंह का नाम आएगा।

पाकिस्तान में जन्मे थे मिल्खा सिंह
पद्मश्री से सम्मानित धावक मिल्खा सिंह ने एथलेटिक्स में दुनियाभर में भारत का नाम रोशन किया। उनका जन्म 20 नवंबर, 1929 को पाकिस्तान के गोविंदपुरा में हुआ था। मिल्खा का एक महीने तक कोरोना संक्रमण से जूझने के बाद शुक्रवार देर रात 11:30 बजे चंडीगढ़ में निधन हो गया।

 

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ऐसे सबसे बड़े मेडल से चूके
भारत के मिल्खा सबसे बड़ा ट्रैक और फील्ड मेडल जीता सकते थे। लेकिन वह रोम ओलंपिक में कास्य पदक से 0.1 सेकंड से चूक गए थे। दरअसल, मिल्खा सिंह की आदत थी कि वह दौड़ते वक्त एक बार पीछे मुड़कर जरूर देखते थे। रोम ओलिंपिक में वह पदक के बहुत करीब थे, लेकिन उन्होंने हमेशा की तरह पीछे मुड़कर देखा और अपनी लय खो बैठे। इस रेस में कांस्य पदक विजेता का समय 45.5 था और मिल्खा ने 45.6 सेकेंड में दौड़ पूरी की थी।’ इस रेस में 250 मीटर तक मिल्खा पहले स्थान पर भाग रहे थे। लेकिन इसके बाद उनकी गति कुछ धीमी हो गई और बाकी के धावक उनसे आगे निकल गए थे। मिल्खा ने अपने कॅरियर में भारत के लिए एशियाई खेलों में 4 स्वर्ण पदक और राष्ट्रमण्डल खेल में एक गोल्ड मेडल जीता था।

बंटवारे ने दिया गहरा जख्म
भारत-पाकिस्तान बंटवारे ने बहुत लोगों को अनाथ और बेघर कर दिया था। उन्हीं में से एक थे मिल्खा सिंह। बंटवारे के दौरान उनके माता—पिता की मौत हो गई थी। जिसके बाद वह अपनी बहन के साथ भारत में आ गए थे और एथलीट के रूप में सेना में शामिल हो गए। 1947 में बंटवारे के दो दिन बाद मिल्खा के गांव में दंगे हो गए। उनके पिता ने मिल्खा को मुल्तान भेजा, जहां उनके बड़े भाई माखन सिंह तैनात थे। माखन सिंह तीन दिन बाद कोट अड्डू अपनी यूनिट के साथ पहुंचा। लेकिन तब तक मिल्खा के माता-पिता और दो भाइयों को दंगाइयों ने मार डाला था।

महिला बोगी के डिब्बे में छिपकर पहुंचे थे भारत
माता—पिता को खोने के बाद मिल्खा सिंह पाकिस्तान से महिला बोगी के डिब्बे में बर्थ के नीचे छिपकर दिल्ली पहुंचे। अपने भाई मलखान सिंह के कहने पर उन्होंने सेना में भर्ती होने का निर्णय लिया और चौथी कोशिश के बाद साल 1951 में सेना में भर्ती हो गए।

आजाद भारत को दिलाया पहला गोल्ड मेडल
बात वर्ष 1958 की जब भारत आजाद हो चुका था। उस दौरान राष्ट्रमंडल खेल के दौरान मिल्खा सिंह एक अपरिचित नाम था। लेकिन इसी पंजाब के लड़के ने बिना किसी प्रॉपर ट्रेनिंग के साउथ अफ्रीका के मैक्लम स्पेंस को पछाड़ते हुए इतिहास रच दिया था। मिल्खा ने राष्ट्रमंडल खेल में आजाद भारत को पहला गोल्ड मेडल दिलाया था।

400 मीटर रेस में नेशनल रिकॉर्ड
मिल्खा सिंह ने 1958 में एशियन गेम्स में नेशनल रिकॉर्ड बनाया। उन्होंने 400 मीटर की दौड़ बहुत पसंद थी। यहां उन्होंने 47 सेकंड में गोल्ड मेडल हासिल किया। सिल्वर मेडल जीतने वाले पाब्लो सोमब्लिंगो से करीब दो सेकंड कम वक्त लिया था मिल्खा सिंह ने।

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200 मीटर में अब्दुल खालिद को दी मात
200 मीटर रेस में अपने चिर प्रतिद्वंद्वी और पाकिस्तान के अब्दुल खालिद को मात देखकर भारत को दूसरा गोल्ड मेडल दिलाया। खालिद को एशिया का सर्वश्रेष्ठ फर्राटा धावक कहा जाता था। लेकिन मिल्खा सिंह ने महज 21.6 सेकंड में गोल्ड मेडल जीतकर एशियन गेम्स का नया रेकॉर्ड बना दिया।

पाकिस्तानी फील्ड मार्शल अयूब खान को उड़ा दिए थे होश
पाकिस्तान में एक प्रतियोगिता के दौरान मिल्खा को दौड़ते हुए देख पाकिस्तानी फील्ड मार्शल अयूब खान के होश उड़ गए थे। मिल्खा की टैलेंट को देखते हुए अयूब ने उन्हें ‘फ्लाइंग सिख’ का खिताब दिया था।







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