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350 साल पुरानी है यह कला, राम सोनी मिनटों में बना देते हैं आकर्षक कलाकृति, पीएम मोदी भी हैं मुरीद

Last Updated:March 09, 2025, 14:10 IST

Ancient Shanji Art: यूनेस्को और नेशनल अवॉर्ड विनर कलाकार राम सोनी ने सांझी कला को सहेजने का प्रयास कर रहे है. सांझी कला 350 वर्ष पुरानी है और यह मुख्य रूप से प्रकृति पर आधारित है. राम सोनी के परदादा और दादा ने …और पढ़ेंX
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एक नई कलाकृति बन जाती है. इसे वे सांझी कला कहते है.

हाइलाइट्स

सांझी कला 350 साल पुरानी है.राम सोनी मिनटों में कागज से कलाकृति बनाते हैं.पीएम मोदी भी राम सोनी की कला के मुरीद हैं.

बीकानेर. राजस्थान के बीकानेर में इन दिनों चल हैंडीक्राफ्ट प्रदर्शनी में सांझी आर्ट के कलाकार राम सोनी आए हुए हैं, जो अपनी आर्ट से हर किसी को आश्चर्य चकित कर रहे हैं. वे एक कागज पर कैंची से इस तरह बारीकी से कटिंग करते हैं, जिससे एक नई कलाकृति बन जाती है. इसे वे सांझी कला कहते है. इसमें प्रकृति से जुड़े रंग और आकृति करते हैं.  फूल और पत्ती के अलावा झरने और कई अन्य चीजों की कलाकृति भी बनाते हैं.

बीकानेर में हर कोई इनकी इस कला को देखने के लिए आ रहे है. सांझी आर्ट के राम सोनी कुछ मिनटों में कागज पर नई आकृति बना देते है. अब तक प्रधानमंत्री मोदी सहित विदेश की कई हस्ती भी इनकी सांझी कला की तारीफ कर चुके है. राम सोनी ने कई नेशनल अवॉर्ड भी जीत चुके है. अब वे सांझी आर्ट में नई नई डिजाइन तैयार कर रहे है.

350 साल पुरानी है सांझी कला

यूनेस्को और नेशनल अवॉर्ड विनर कलाकार राम सोनी ने बताया कि यह पारंपरिक कला है. इसे हमारे दादा और परदादा ने यह काम शुरू किया था. परिवार में डिजाइन करना पहले सिखाई जाती है. अब सोने और चांदी का इतना प्रचलन नहीं है. इस कला का उपयोग मंदिर में पेंटिंग के रूप में करते थे. इसे सांझी कला कहते है. यह कला करीब 350 साल पुराना है और इसे पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ा रहे हैं. अब इस कला को नए तरीके से बाजार में लेकर आए हैं. इसे हम प्रकृति के साथ लेकर चल रहे हैं.यह कला पूरी तरह से डिजाइन पर निर्भर करता है. इसमें एक घंटे से लेकर एक महीना तक तैयार होती है. उन्होंने बताया किअलग तरीके से काम करते हैं और नए डिजाइन को विकसित करने की कोशिश करते हैं. उन्होंने बताया कि जन्म मथुरा में हुआ है, लेकिन पिछले 40 वर्षो से अलवर में ही रह रहे हैं.

सांझी कला को सहेजने का कर रहे हैं प्रयास

कलाकार राम सोनी ने बताया कि राधा और उनकी सहेलियों ने भगवान कृष्ण का स्वागत करने के लिए फूलों के साथ जमीन पर सुंदर पैटर्न तैयार किए हैं. जब वो शाम को अपनी गायों को चराने से लौटे थे. सांझ जिसे हिंदी में संध्या कहते हैं, यहीं से सांझी शब्द और सांझी कला की उत्पत्ति हुई है. लुप्त होने की कगार पर पर आ चुकी इसी सांझी कला को सहेजने का प्रयास कर रहे हैं. सांझी कला में फूल, पत्तियां, रंगीन पत्थर और मिट्टी से बने प्राकृतिक रंगों का इस्तेमाल किया जाता है. इसके अलावा सांझी कला में रंगीन कागज़ का इस्तेमाल किया जाता है तथा सांझी कला में भगवान कृष्ण, उनकी गायें, मोर, और पेड़ जैसे रूपांकन होते हैं.


Location :

Bikaner,Rajasthan

First Published :

March 09, 2025, 14:10 IST

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350 साल पुरानी है यह कला, सहेजने में जुटा है यह अवार्ड विनर कलाकर

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