गर्माहट से भरपूर है यह रजाई…हाथों से होती है तैयार, सर्दी रहती है दूर, मजबूती में है बेजोड़

करौली. राजस्थान के करौली में सर्दी के मौसम में हाथों से तैयार होने वाली एक खास रजाई ऐसी है, जो पुराने समय से अपनी गर्माहट के लिए जानी जाती है. करौली में हाथों से तैयार होने वाली इस देसी रजाई की ख्याति भी दूर-दूर तक फैली हुई है. सर्दी की दस्तक के साथ ही करौली में इस देसी रजाई का कारोबार तेजी से शुरू हो जाता है. इस देसी रजाई का कारोबार करौली में सदियों पुराना बताया जाता है. इस रजाई को बनाते-बनाते करौली में सैकड़ो परिवारों की कई पीढ़ियां भी अब तक गुजर चुकी है. यहां कर्ण राजपूत ( कंड़ेरा ) समाज के लोग इस रजाई को आज भी हाथों से भरकर बड़ी मेहनत से तैयार करते हैं. इस रजाई के दीवानों का कहना है कि ऐसी रजाई कहीं पर नहीं मिलती है. यह केवल करौली में ही सर्दी के मौसम में भरी जाती है.
खराब होने पर दोबारा हो जाती है सही करौली की देसी देसाई की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यें खराब होने के बाद भी वापस से नए सिरे से रुई भरने पर नई बन जाती है. करौली में वर्षो से इस रजाई को काम करती आ रही सोमा देवी बताती है कि यह रजाई एक बार खराब होने पर दोबारा काम आ जाती है. और ओढ़ने में एकदम गरम भी होती है. उनका कहना है कि एक बार भरने के बाद 5-6 साल तक इस रजाई का कुछ भी नहीं बिगड़ा है और कंबल से तो यह गर्माहट में कई गुना अच्छी होती है.
बहुत पुराना है करौली में देसी रजाई का कारोबार : इस रजाई को करौली में बनाने वाले कारीगर बताते हैं कि देसी रजाई का कारोबार सैकडों साल पुराना हैं. सर्दी के मौसम में हर साल देसी रजाई का काम भी करौली में बड़े स्तर पर होता है. इसे हाथों से बनाने वाले कारीगर बताते हैं कि यह रजाई शरीर को सर्दी में एकदम गर्म रखती है. और कड़ाके की ठंड में भी ओढ़ने के बाद ही गर्माहट पैदा कर देती है.
श्री गंगानगर की रुई से होती है तैयार कारीगर राजू कुमार बताते हैं कि यह देसी रजाई श्रीगंगानगर की खास रुई से तैयार की जाती है. इस रुई में गर्माहट भी ज्यादा होती है जिसके कारण यह रजाई भी गर्म बनी रहती है. हालांकि कारीगरों का यह भी कहना है कि कंबलों की वजह से इस रजाई का काम पहले की तुलना में बहुत कम हो गया हैं.
मजबूती में जयपुरिया रजाई को भी देती है मातइस रजाई को करौली में तैयार करने वाले कारीगरों का कहना है कि करौली की देसी रजाई जयपुरिया रजाई को भी मजबूती में मात देती है. क्योंकि जयपुरिया रजाई मशीनों से तैयार की जाती है और करौली की देसी रजाई हाथों से तैयार की जाती है. इसमें धागे हाथ से डाले जाते हैं और उसमें धागे मशीन से डाले जाते हैं जिसके कारण जयपुरिया रजाई जल्दी टूट जाती है. कारीगरों का कहना है कि हाथ से धागा डलने के कारण इसकी मजबूती और भी बढ़ जाती है. इसी वजह से करौली की देसी रजाई आराम से 5 से 6 साल चल जाती है.
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FIRST PUBLISHED : January 1, 2025, 11:00 IST